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क्यों आज भी आपातकाल कांग्रेस के लिए बना हुआ है राजनीतिक परेशानी का कारण
क्यों आज भी आपातकाल कांग्रेस के लिए बना हुआ है राजनीतिक परेशानी का कारण
Authored By: सतीश झा
Published On: Tuesday, June 24, 2025
Last Updated On: Tuesday, June 24, 2025
भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला अध्याय - आपातकाल (Emergency) - आज भी भारतीय राजनीति में एक जीवंत मुद्दा बना हुआ है. 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) द्वारा घोषित किया गया आपातकाल, न केवल नागरिक स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध का प्रतीक बन गया, बल्कि यह कांग्रेस पार्टी के लिए अब तक का सबसे विवादास्पद निर्णय भी रहा है.
Authored By: सतीश झा
Last Updated On: Tuesday, June 24, 2025
Emergency 1975: 2025 में आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर भाजपा (BJP) ने इसे देश को जागरूक करने का अवसर बनाया है. पार्टी पूरे देश में विविध कार्यक्रम आयोजित कर रही है, जिसमें आपातकाल की घटनाओं, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियों, मीडिया सेंसरशिप, और लोकतंत्र की लड़ाई को याद किया जा रहा है. भाजपा इसे “लोकतंत्र बचाओ सप्ताह” के रूप में मना रही है.
कांग्रेस के लिए क्यों बनता है आपातकाल आज भी समस्या?
आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों का निलंबन, प्रेस की आज़ादी पर नियंत्रण, राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारियां और न्यायपालिका पर दबाव जैसे मुद्दे आज भी कांग्रेस की छवि पर असर डालते हैं. भले ही कांग्रेस पार्टी ने बार-बार इसे “उस समय की परिस्थितियों में लिया गया निर्णय” बताया हो, लेकिन कभी माफ़ी नहीं मांगने की रणनीति ने इसे विपक्ष के लिए एक स्थायी हथियार बना दिया है.
भाजपा और अन्य विपक्षी दल समय-समय पर कांग्रेस को “तानाशाही प्रवृत्ति”, “लोकतंत्र विरोधी मानसिकता” जैसी उपाधियाँ देकर जनता के सामने चुनौती देते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह कई बार संसद और मंचों से कांग्रेस को आपातकाल के लिए आड़े हाथों ले चुके हैं.
आपातकाल की 50वीं बरसी पर बीजेपी मनाएगी ‘संविधान हत्या दिवस’
भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 25 जून 2025 को आपातकाल की 50वीं बरसी को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का ऐलान किया है. इस अवसर पर पार्टी देशभर के जिला और बूथ स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करेगी, जिनका उद्देश्य देश की नई पीढ़ी को 1975 में लगाए गए आपातकाल के काले अध्याय से परिचित कराना है.
BJP नेताओं ने कहा कि आपातकाल केवल राजनीतिक विरोध को दबाने का प्रयास नहीं था, बल्कि यह भारत के संविधान, लोकतंत्र पर सीधा हमला था. पार्टी इस दिन आम नागरिकों से संवाद स्थापित कर उन्हें यह बताना चाहती है कि कैसे उस समय मौलिक अधिकारों को कुचला गया, मीडिया की आवाज दबा दी गई. हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया.
क्या होंगे कार्यक्रम?
- जिला और मंडल स्तर पर जन संवाद, प्रदर्शनियां, फोटो गैलरी, और डॉक्यूमेंट्री फिल्में दिखाई जाएंगी.
- बीजेपी कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को आपातकाल के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी देंगे.
- पूर्व लोकतंत्र सेनानियों को सम्मानित करने के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे.
- सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यम से भी एक संगठित जागरूकता अभियान चलाया जाएगा.
नई पीढ़ी को बताएगी काले अध्याय की सच्चाई
- BJP प्रवक्ताओं का कहना है कि, “हमारी नई पीढ़ी को जानना चाहिए कि किस तरह से लोकतंत्र को कुचलने का प्रयास किया गया था. यह न केवल कांग्रेस की तानाशाही प्रवृत्ति को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस तरह से सत्ता के लिए संविधान तक को ताक पर रखा गया था.”
- BJP द्वारा 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा ने एक बार फिर से आपातकाल बनाम लोकतंत्र के पुराने विमर्श को जीवित कर दिया है.
भाजपा की रणनीति: “स्मरण से शिक्षा तक”
भाजपा आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ को केवल राजनीतिक प्रचार का अवसर नहीं, बल्कि “लोकतंत्र की रक्षा” के संकल्प के रूप में पेश कर रही है. पार्टी की योजना है कि देशभर के स्कूल-कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और सार्वजनिक मंचों पर संगोष्ठियों, नाटकों, चित्र प्रदर्शनी और जन संवाद के माध्यम से आपातकाल की सच्चाइयों को नई पीढ़ी के सामने रखा जाए. भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि लोकतंत्र को कमजोर करने वाली किसी भी प्रवृत्ति के खिलाफ हमेशा सतर्क रहना आवश्यक है. पार्टी इसे “जन चेतना अभियान” की तरह चला रही है.
आपातकाल एक ऐसा इतिहास बन गया है, जिसे कांग्रेस भुलाना चाहती है और भाजपा बार-बार जनता को याद दिलाना चाहती है. यह मुद्दा अब केवल अतीत की घटना नहीं, बल्कि राजनीतिक विमर्श का स्थायी तत्व बन गया है. भाजपा आपातकाल को कांग्रेस की “लोकतांत्रिक असहिष्णुता” के उदाहरण के तौर पर पेश करके अपने नैतिक उच्च धरातल को स्थापित करना चाहती है. इस 50वें वर्ष में, आपातकाल न केवल एक स्मृति है, बल्कि राजनीतिक नैरेटिव गढ़ने का एक सशक्त माध्यम बन चुका है.