एथलीट्स ने क्यों पहनना बंद किया वायरलेस हेडफोन? डॉक्टर ने बताई असली वजह
Authored By: Galgotias Times Bureau
Published On: Thursday, December 18, 2025
Updated On: Thursday, December 18, 2025
हाल ही में सामने आए एक वीडियो में दावा किया गया कि कई एथलीट ईएमएफ के डर की वजह से वायरलेस ब्लूटूथ हेडफोन का इस्तेमाल बंद कर रहे हैं. लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इसकी असली वजह डर नहीं, बल्कि कानों की सेहत, सुरक्षा और मानसिक शांति से जुड़ी चिंताएं हैं.
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Updated On: Thursday, December 18, 2025
Wireless Headphones Health Risks: एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें दावा किया गया है कि कई प्रोफेशनल एथलीटों ने वायरलेस ब्लूटूथ हेडफोन पहनना बंद कर दिया है. वीडियो में कहा गया है कि ऐसा उन्होंने इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड यानी ईएमएफ से होने वाले संभावित नुकसान के डर से किया है. इस दावे के बाद लोगों के बीच बहस छिड़ गई है. यह वीडियो 11 दिसंबर को X पर वाइड अवेक मीडिया नाम के अकाउंट से शेयर किया गया था. वीडियो में सवाल उठाया गया है कि आखिर इतने सारे खिलाड़ी अचानक वायरलेस हेडफोन क्यों नहीं पहन रहे हैं.
दो दिनों में यह वीडियो 8.5 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है. इसमें कई बड़े और मशहूर खिलाड़ियों के नाम दिखाए गए हैं, जैसे डेवोंटे एडम्स, पुका नाकुआ, बेन स्कारानिक और ए-रॉड. वीडियो में दावा किया गया है कि ये खिलाड़ी वायरलेस हेडफोन की जगह वायर्ड या फिर बिना किसी ऑडियो डिवाइस के रहना पसंद करते हैं. कहा जा रहा है कि वे ऐसा वाई-फाई और मोबाइल टावर के सिग्नल से अपने दिमाग को सुरक्षित रखने के लिए कर रहे हैं. वीडियो के नैरेटर ने कहा कि दिमाग की सुरक्षा जरूरी है और इसके पीछे वैज्ञानिक वजहें हैं. कुछ यूजर्स ने सहमति जताई, जबकि किसी ने कहा कि वायरलेस इयरफोन बार-बार चार्ज करना भी झंझट भरा होता है.
कान की सेहत और सुरक्षा बनी वजह
डॉक्टरों का कहना है कि एथलीटों द्वारा वायरलेस हेडफोन छोड़ना किसी अफवाह या डर की वजह से नहीं है, बल्कि सेहत से जुड़ी असली चिंताओं के कारण है. भुवनेश्वर के मणिपाल अस्पताल के ईएनटी डॉक्टर आरवीएस कुमार के मुताबिक, खिलाड़ियों का कठिन ट्रेनिंग माहौल, जैसे ज्यादा पसीना, गर्मी और लंबे समय तक अभ्यास वायरलेस ईयरबड्स के साथ मिलकर परेशानी बढ़ा देता है.
वायरलेस ईयरबड्स कान के अंदर गर्मी और नमी को फंसा लेते हैं, जिससे बैक्टीरिया और फंगस पनपने लगते हैं. इसी वजह से अब धावकों, साइकिल चालकों और जिम जाने वालों में कान के इंफेक्शन के मामले बढ़ रहे हैं. इसके अलावा, ये हेडफोन आसपास की आवाज को भी रोक देते हैं, जिससे बाहर ट्रेनिंग के दौरान हादसे का खतरा बढ़ जाता है.
डॉक्टरों ने यह भी बताया कि लंबे समय तक तेज आवाज में संगीत सुनने से धीरे-धीरे सुनने की क्षमता कम हो सकती है. इसी कारण अब कई एथलीट ओपन-ईयर हेडफोन, बोन-कंडक्शन डिवाइस या बिना हेडफोन के ही ट्रेनिंग करना ज्यादा सुरक्षित मान रहे हैं.
मानसिक शांति को दी जा रही है अहमियत
डॉक्टरों का कहना है कि हेडफोन न पहनने का फैसला सिर्फ शारीरिक सेहत से जुड़ा नहीं है, बल्कि इसका सीधा संबंध एथलीटों के मानसिक स्वास्थ्य और प्रदर्शन से भी है. बेंगलुरु के एस्टर सीएमआई अस्पताल की मनोचिकित्सक डॉ. दिव्या श्री के.आर. के मुताबिक, लगातार कानों में आवाज रहने से दिमाग हर समय सतर्क रहता है, जिससे चिंता बढ़ सकती है और भावनाओं को समझने की क्षमता कम हो जाती है.
उन्होंने बताया कि पहले खिलाड़ी प्रेरणा या अकेलेपन के लिए हेडफोन का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब उन्हें एहसास हो रहा है कि लगातार तेज आवाज़ दिमाग को थका देती है. इसलिए कई एथलीट अब अभ्यास और मैच से पहले शांति को चुन रहे हैं. शांत माहौल दिमाग को आराम देता है, ध्यान बढ़ाता है और शरीर की बेहतर समझ विकसित करता है.
डॉ. दिव्या श्री ने कहा कि बिना हेडफोन के खिलाड़ी अपने आसपास के माहौल, टीम और अपनी सांसों से बेहतर जुड़ पाते हैं. इससे तनाव कम होता है और प्रदर्शन का दबाव संभालना आसान हो जाता है. कुल मिलाकर, यह बदलाव तकनीक से दूर जाने के बजाय एक शांत, संतुलित और बेहतर मानसिक स्थिति पाने की कोशिश है.
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