Lifestyle News
सुप्रीम कोर्ट : गया का विष्णुपद मंदिर किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं है, क्या है इस मंदिर की महत्ता
सुप्रीम कोर्ट : गया का विष्णुपद मंदिर किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं है, क्या है इस मंदिर की महत्ता
Authored By: स्मिता
Published On: Thursday, August 8, 2024
Updated On: Thursday, August 8, 2024
मोक्ष प्राप्ति की आशा में भक्तगण गया के विष्णुपद मंदिर आते हैं। 16 वेदी वाला होने के कारण यह मंदिर किसी की निजी संपत्ति नहीं हो सकता है। सभी लोगों पर विष्णु जी की समान कृपा बरसने के कारण यह सार्वजनिक मंदिर है। सुप्रीम कोर्ट भी कुछ ऐसा ही कहती है। जानते हैं इस आलेख के माध्यम से विष्णुपद मंदिर की महत्ता।
Authored By: स्मिता
Updated On: Thursday, August 8, 2024
मान्यता है कि ब्रह्माजी ब्रह्माण्ड के रचयिता हैं, तो शिव संहारक हैं। ब्रह्माण्ड के संरक्षक और रक्षक हैं विष्णु। इसलिए उनकी भूमिका संकटमोचक की होती है। जब-जब पृथ्वी पर संकट गहराता है, वे यहां अवतरित होते हैं। वे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक हैं। विष्णु की पूजा-अर्चना के लिए भारत भर में कई मंदिर हैं। विष्णु जी के प्रमुख मंदिरों में से एक है बिहार के गया स्थित विष्णुपद मंदिर। हाल में विष्णुपद चर्चा में आ गया। विष्णुपद के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने यहां के के पंडों से यह स्पष्ट कहा कि यह विश्वविख्यात मंदिर किसी भी पंडा की निजी संपत्ति नहीं हो सकता है। यह सार्वजनिक मंदिर है।
विष्णुपद मंदिर के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
विष्णुपद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि विष्णुपद मंदिर गयापाल पंडों की निजी संपत्ति नहीं है। पंडा इसे वेदी मान रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने इसे वेदी मानने से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि यहां पिंडदान होता है, पर यह वेदी नहीं मंदिर है। यह हज़ारों साल पुराना सार्वजनिक मंदिर है। पिंडदान के कारण विष्णुपद का विशेष महत्व है। पिंडदान में वेदी का महत्व भी बहुत आधिक है। विष्णुपद में भगवान विष्णु सहित अन्य देवताओं के नाम से 16 वेदी हैं। इन्हें देव परिधि कहा जाता है। पिंडदान कर्मकांड शुरू करने से पहले इन 16 वेदियों पर जाने की प्रथा रही है। यहां आकर सभी देवताओं को याद किया जाता है। देव परिधि स्थित वेदी का आकार हाथी की तरह है। एक बड़े चट्टान पर 16 बेदी है जहां 16 खंबे भी हैं।
दर्शन करने पर मोक्ष की प्राप्ति
मंदिर के निर्माण की तिथि तो अब तक नहीं जानी जा सकी है। माना जाता है कि सीता के साथ रामजी भी इस स्थान पर आये थे। इंदौर की शासक देवी अहिल्या बाई होल्कर ने वर्तमान संरचना का पुनर्निर्माण वर्ष 1787 में फल्गु नदी के तट पर कराया था।विष्णुपद मंदिर का शाब्दिक अर्थ है ‘विष्णु के पैरों का मंदिर’। यह भगवान विष्णु को समर्पित बहुत पुराना हिंदू मंदिर है। यह गया (बिहार) में फल्गु नदी के तट पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर राक्षस गयासुर के शरीर पर बनाया गया है। विष्णु जी ने इस असुर का वध कर उसे जमीन के अंदर दबा दिया था। एक बार गयासुर ने घोर तपस्या की और वरदान मांगा कि जो कोई भी उसके दर्शन करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। मोक्ष की प्राप्ति के लिए भक्तगण यहां आते हैं। मंदिर में 40 सेमी का भगवान विष्णु का पदचिह्न है, जिसे बेसाल्ट के एक खंड में उकेरा गया है। इसे धर्मशिला के रूप में जाना जाता है। जब विष्णुदेव ने गयासुर की छाती पर पैर रखकर जमीन के अंदर दबा दिया, तो उनके पद चिह्न संरक्षित हो गए।
विष्णुपदम की आध्यात्मिक ऊर्जा
विष्णुपद मंदिर श्राद्ध अनुष्ठानों का केंद्र है। ब्रह्म कल्पित ब्राह्मण, जिन्हें गयावाल ब्राह्मण या गयावाल तीर्थ पुरोहित या गया के पंडा के रूप में भी जाना जाता है। ये मंदिर के पारंपरिक पुजारी हैं। इनके लिए ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विष्णुपद मंदिर निजी संपत्ति नहीं हो सकता है। मंदिर के निर्माण की तिथि तो अब तक नहीं जानी जा सकी है। माना जाता है कि सीता के साथ रामजी भी इस स्थान पर आये थे। हालांकि रोज गया आकर विष्णुपद की पूजा करना संभव नहीं है। इसलिए प्रतीक स्वरुप उपलब्ध विष्णुपद की भी पूजा की जा सकती है। इस पवित्र वस्तु को पूजा कक्ष में रखा जा सकता है। यह पूजा और ध्यान के लिए एक दिव्य केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करता है। विष्णु पदम की शुभ ऊर्जा और आध्यात्मिक महत्व को अपनाया जा सकता है। इससे मन शांत और शुद्ध हो सकता है।