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मोकामा का ‘बाहुबली’ समीकरण: क्या खत्म हो गया मोकामा में अनंत सिंह का दबदबा या होगी जोरदार वापसी?
Authored By: Nishant Singh
Published On: Monday, November 3, 2025
Last Updated On: Monday, November 3, 2025
Anant Singh Jail: बिहार की सियासत में फिर मचा है बवाल. मोकामा में बाहुबली अनंत सिंह की गिरफ्तारी और दुलारचंद यादव हत्याकांड ने चुनावी समीकरणों को हिला कर रख दिया है. अब मैदान में भूमिहार बनाम यादव, अगड़ा बनाम पिछड़ा का संग्राम तेज़ है. क्या इस बार जेल से चुनाव लड़ते हुए अनंत सिंह फिर जीत का झंडा लहराएंगे या सियासी हवा बदल चुकी है? जानिए पूरी कहानी…
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Monday, November 3, 2025
Anant Singh Jail: बिहार की राजनीति का ‘मिनी बिहार’ कहा जाने वाला मोकामा एक बार फिर सुर्खियों में है. कभी विकास से नहीं, बल्कि बाहुबल और जातीय समीकरणों से राजनीति तय होती रही इस धरती पर अब सवाल उठ रहा है कि क्या अनंत सिंह के जेल जाने से चुनावी मैदान पूरी तरह बदल गया है? या फिर यह वही पुराना खेल है जिसमें आखिरी बाज़ी जनता ही पलट देती है?
दुलारचंद हत्या और मोकामा की सियासी भूचाल
30 अक्टूबर की दोपहर मोकामा में एक गोली चली और राजनीति हिल गई. जन सुराज प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी और जेडीयू प्रत्याशी अनंत सिंह के समर्थकों के बीच हुई झड़प में दुलारचंद यादव की मौत हो गई. हत्या का आरोप सीधे अनंत सिंह और उनके करीबियों पर लगा, जिसके बाद पुलिस ने अब तक 81 लोगों को गिरफ्तार किया है. अनंत सिंह को भी 1 नवंबर की आधी रात हिरासत में ले लिया गया.
यह वही अनंत सिंह हैं जो पहले भी जेल से चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन इस बार का मामला अलग है-हत्या, जाति और सत्ता- तीनों एक साथ मिलकर सियासत को नया मोड़ दे रहे हैं.
अगड़ा बनाम पिछड़ा: मोकामा का नया नैरेटिव
मोकामा में जातीय राजनीति हमेशा निर्णायक रही है.
- दुलारचंद यादव – पिछड़े वर्ग (ओबीसी) से
- अनंत सिंह – भूमिहार समाज से (अगड़ा)
हत्या के बाद इस घटना को अगड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है. यादव और ओबीसी वर्ग के वोट अब आरजेडी प्रत्याशी वीणा देवी की तरफ झुकते दिख रहे हैं, वहीं भूमिहार वोटरों में ‘अनंत सिंह’ के लिए सहानुभूति की लहर बन रही है.
यानी सियासी पारा इस बार सिर्फ अपराध पर नहीं, जातीय एकजुटता पर भी चढ़ चुका है.
अनंत सिंह की गिरफ्तारी: जनता या ‘जनादेश’?
गिरफ्तारी के बाद अनंत सिंह ने फेसबुक पर लिखा – “सत्यमेव जयते, मुझे मोकामा की जनता पर पूरा भरोसा है, चुनाव अब जनता लड़ेगी.”
ये लाइनें भले भावनात्मक लगें, लेकिन इनके पीछे छिपा राजनीतिक संदेश साफ ह- वो खुद जेल में रहेंगे, पर खेल बाहर होगा.
पिछले चुनावों की तरह इस बार भी अनंत सिंह अपने प्रभाव और भूमिहार वोट बैंक के सहारे मैदान में हैं. मगर इस बार उनके दो सबसे भरोसेमंद रणनीतिकार – मणिकांत ठाकुर और रणजीत राम भी जेल में हैं, जो उनके लिए बड़ा झटका है.
मोकामा में तीन तरफा मुकाबला
- अनंत सिंह (जेडीयू) – बाहुबली छवि, भूमिहार समाज की पकड़
- वीणा देवी (आरजेडी) – सूरजभान सिंह की पत्नी, यादव-ओबीसी वोट बैंक
- पीयूष प्रियदर्शी (जन सुराज) – युवा चेहरा, विकास और बदलाव की राजनीति
यह तिकड़ी मोकामा में हर समीकरण को उलझा रही है.
जहां अनंत सिंह अपनी ‘दबंग’ छवि पर चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं वीणा देवी जातीय एकजुटता का कार्ड खेल रही हैं. दूसरी तरफ, पीयूष प्रियदर्शी खुद को ‘नया विकल्प’ बताकर युवाओं को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.
जातीय गणित: कौन कितना भारी?
मोकामा की वोटर प्रोफ़ाइल अपने आप में दिलचस्प है-
- भूमिहार: 30%
- यादव: 20%
- राजपूत: 10%
- कुर्मी-कोइरी और अन्य ओबीसी: 20–25%
- दलित: 16–17%
- मुस्लिम: 5%
कुल वोटर: 2.84 लाख
भूमिहार और यादव वोट इस सीट पर निर्णायक हैं. विश्लेषकों का कहना है कि भूमिहार वोटों में अनंत सिंह और सूरजभान (वीणा देवी के पति) दोनों की पकड़ है, जिससे वोट बंटने की संभावना थी, लेकिन अब अनंत सिंह की गिरफ्तारी से उनके लिए ‘सहानुभूति वोट’ बनता दिख रहा है.
मोकामा का इतिहास: सिंह बनाम सिंह की राजनीति
मोकामा की सियासत पिछले तीन दशकों से ‘सिंह वर्सेस सिंह’ रही है.
- 1990: दिलीप सिंह (अनंत के भाई) विधायक बने
- 2000: सूरजभान सिंह ने सिंह परिवार को हराया
- 2005: अनंत सिंह ने वापसी की और जीत का सिलसिला शुरू किया
- 2020: आरजेडी टिकट पर फिर जीते
- 2022: सजा के चलते सदस्यता गई
अब 2025 में फिर जेल से चुनाव, लेकिन इस बार विपक्ष और हालात दोनों अलग हैं.
कौन जीतेगा ‘मोकामा की गद्दी’?
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि इस बार मुकाबला बेहद करीबी रहेगा.
- यादव वोट वीणा देवी के पक्ष में एकजुट हो रहे हैं.
- भूमिहार वोटों में अनंत सिंह को भावनात्मक समर्थन मिल सकता है.
- वहीं पीयूष प्रियदर्शी ओबीसी और युवा वोटरों को साधने की कोशिश में हैं.
यानी मैदान में हर किसी की चाल शतरंज की बिसात पर सोच-समझकर चल रही है.
‘बाहुबली बनाम भावनाओं’ की लड़ाई
मोकामा की लड़ाई सिर्फ नेताओं की नहीं, जातीय समीकरण और जनता की सोच की भी परीक्षा है. अनंत सिंह के जेल जाने से जहां विपक्ष को हवा मिली है, वहीं समर्थकों के बीच सहानुभूति का माहौल भी बन रहा है.
अब देखना ये है कि क्या मोकामा की जनता एक बार फिर अपने ‘छोटे सरकार’ के साथ खड़ी होती है या इस बार सियासी हवा किसी और दिशा में बहती है. सवाल अब ये है कि क्या जेल की सलाखें अनंत सिंह की राजनीति को रोक पाएंगी, या मोकामा फिर कहेगा – “छोटे सरकार अमर रहे.”
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