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परिवार संग भोजन करने से बढ़ता है अपनापन, दूर होता है तनाव
परिवार संग भोजन करने से बढ़ता है अपनापन, दूर होता है तनाव
Authored By: अंशु सिंह
Published On: Saturday, December 21, 2024
Updated On: Saturday, December 21, 2024
डिजिटल एवं आभासी दुनिया के मकड़जाल में फंसी पीढ़ी का अपने परिवार के साथ संवाद ज्यों-ज्यों कम होता जा रहा है, उतना ही उनमें तनाव, अवसाद एवं अकेलेपन की समस्या घर करती जा रही है। इस मानसिक जकड़न से निकलने का एक ही उपाय है कि परिवार के लोग साथ में क्वालिटी समय बिताएं। यहां भोजन एक सूत्रधार की भूमिका निभा सकता है। रात्रि भोजन के अलावा वीकेंड्स पर जब सब साथ बैठकर भोजन करेंगे, अपनी बातें, अनुभव शेयर करेंगे, तो उससे मन हल्का होगा और एक-दूसरे से सीखने को मिलेगा।
Authored By: अंशु सिंह
Updated On: Saturday, December 21, 2024
अमेरिकी शेफ थॉमस केलर के अनुसार, एक रेसिपी की कोई आत्मा नहीं होती है, जब तक उसे बनाने वाला उसमें आत्मा अथवा प्राण ऊर्जा का प्रवाह नहीं करता। हम सब देखते हैं कि कैसे पर्व-त्योहारों व खास उत्सवों पर लोग एक-दूसरे से मिलना-जुलना, साथ में लजीज खाने का आनंद लेना पसंद करते हैं। क्योंकि कुछ समय के लिए ही सही, अपने करीबियों से मिलने का अवसर मिलता है। आपस के संबंध गहरे होते हैं। सभी अपने गम और तकलीफ को एक किनारे रख, सभी खास आयोजन का आनंद लेते हैं। पारुल और सौरभ की इस छोटी-सी गुफ्तगू का भी यही सार निकलता है कि आज के दौर की हांफती-भागती जिंदगी में अपनों के साथ बिताए जाने वाले छोटे-छोटे पल मन को कितना हल्का रखते हैं।
भोजन की वजह से बेटा और पिता आए करीब
जाने-माने शेफ सदफ की कोशिश रहती है कि काम की व्यस्तता के बावजूद वे रात का डिनर परिवार के साथ करें। लेकिन कोरोना काल में मां को हमेशा के लिए खो देने के बाद उनका जीवन अचानक से बदल गया। पिता के साथ बैठना, बातें करना सब बंद हो गया। दोनों गुमसुम से रहने लगे। सदफ बताते हैं, ‘जिंदगी बड़ी बोझिल लगने लगी थी। खुद को काम में झोंक देने के बावजूद मन को सुकून नहीं मिल रहा था। मैंने तय किया कि पहले की तरह पिता के साथ डिनर करूंगा। उन्हें राजी किया। इस दौरान हम डिशेज के ऊपर, नए प्रोजेक्ट्स के ऊपर चर्चा करते। वे मुझे नई रेसिपीज बनाने की विधि बताते। तभी पता चला कि मां की तरह उन्हें भी कुकिंग का शौक था। आहिस्ता-आहिस्ता हम दोनों ने मन पर चढ़े तमाम बोझ को एक-दूजे के संग साझा करना शुरू किया। हम दोनों करीब आते गए। कुछ ही समय के बाद स्थिति सामान्य होने लगी और जिंदगी की गाड़ी दोबारा से पटरी पर लौट आई।‘
परिवार संग भोजन करने के भावनात्मक फायदे
कई शोध इस ओर इशारा करते हैं कि परिवार के संग खाने से न सिर्फ रोजमर्रा के तनाव को नियंत्रित करने में मदद मिलती है, बल्कि खाने की आदतों में सुधार भी आता है। जो लोग नियमित रूप से परिवार संग भोजन करते हैं, उससे उन्हें शारीरिक, सामाजिक, भावनात्मक व शैक्षणिक फायदे मिलते हैं। एक व्यक्ति (बच्चे या व्यस्क) जब शांत वातावरण में अपनों के संग खाने का मजा लेता है, तो उससे उसका आत्मसम्मान और आत्मविश्वास दोनों बढ़ जाते हैं। डिप्रेशन काबू में रहता है। संतुलित भोजन करने से इटिंग डिसॉर्डर, मोटापे आदि की समस्या नहीं होती है। वैसे, जानकारों का कहना है कि हर परिवार में फैमिली मील का उद्देश्य अलग होता है। कहीं अभिभावक बच्चों को टेबल मैनर्स सिखाने के मकसद से साथ में खाने पर जोर देते हैं। वहीं, कुछ को लगता है कि इकट्ठे लंच या डिनर करने से आपसी संवाद अच्छा होता है। सभी एक-दूसरे को ध्यान से सुनते हैं।
टीवी और मोबाइल देखकर भोजन करने का बढ़ा चलन
मनोचिकित्सक डॉ. एल.सी. सुंदा की मानें, तो फैमिली मील का अर्थ सिर्फ ये नहीं होता है कि आप किस चीज का सेवन कर रहे हैं, बल्कि इसका उद्देश्य होता है कि घर के सदस्यों ने एक-दूसरे के लिए समय निकाला। आधे घंटे भी साथ खाने और बातें करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। आपसी रिश्तों में गर्माहट आती है। मेज के चारों ओर परिवार के साथ खाने की परंपरा वैसे भी सदियों पुरानी है। यह एक-दूसरे के साथ एकता और संचार का प्रतिनिधित्व करती है। विभिन्न संस्कृतियों में भोजन के माध्यम से लोगों के जुड़ने के उदाहरण मिलते हैं। लेकिन विडंबना ये है कि आज बच्चे अभिभावकों के साथ बैठने की बजाय टीवी या मोबाइल फोन देखते हुए भोजन करते हैं। यह समस्या एकल परिवारों में अधिक है। विशेषकर जहां माता-पिता दोनों कामकाजी हैं और उनके पास साथ बैठकर खाने का समय नहीं है।
प्यार से बनाए गए मां के भोजन का अलग होता स्वाद
होम शेफ सीमा सेठी की मानें, इन दिनों रेस्टोरेंट में खाने का चलन भी काफी बढ़ गया है। बच्चों को घर का खाना पसंद नहीं आता। इसके अपने कारण हैं। एकल परिवार के दौर में जहां माता-पिता दोनों वर्किंग हैं, वहां फैमिली मील के लिए समय ही बमुश्किल निकल पा रहा है। कामकाजी महिलाओं के ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ इतना होता है कि वे भोजन तैयार करने के लिए मेड पर निर्भर हो गई हैं। भोजन तो जैसे-तैसे बन जाता है। लेकिन उसमें न वेरायटी होती है, न प्यार, न भावना और न सकारात्मक ऊर्जा। इसलिए बच्चे-बड़ों सभी को घर के खाने से अरुचि होने लगती है। जबकि मां के हाथ से बने भोजन का अपना स्वाद होता है, क्योंकि वह बच्चों के लिए दिल से और प्यार से उसे तैयार करती है।
सीमा कहती हैं, ‘आज अगर मैं अपने व्यवसाय में सफल हूं, तो उसके पीछे भी यही वजह है। कुकिंग मेरे लिए एक जुनून की तरह है। सारे काम दिल से करती हूं। जब से खाना बनाना शुरू किया, उसे पूरे दिल से बनाया। कभी पापा ने एक सीख दी थी कि भोजन को पहले नजरों से खाते हैं, फिर मुख से। इसलिए प्रेजेंटेशन पर काफी ध्यान देती हूं।‘ सीमा का मानना है कि व्यंजन को जितना आकर्षक तरीके से पेश किया जाता है, उससे वह सीधे खाने वाले के दिल को स्पर्श करता है।
संयुक्त परिवार में बची हुई है साथ खाने की परंपरा
प्यार से बनाए गए भोजन की ऊर्जा शक्ति इतनी अधिक होती है कि व्यक्ति वर्षों खाने का स्वाद नहीं भूलता। उसमें भी पूरे परिवार के साथ भोजन करने का अपना अलग ही आनंद है। इससे न सिर्फ तन, बल्कि मन भी स्वस्थ एवं तनावरहित रहता है। अगर संयुक्त परिवारों की बात करें, तो वहां आज भी भोजन बनाते समय विविधता, स्वच्छता एवं पौष्टिकता का खास खयाल रखा जाता है। घर की महिलाएं बेहद प्यार से इसे तैयार करती हैं। व्यंजनों के प्रेजेंटेशन पर भी कुछ इस कदर ध्यान देती हैं कि पसंद न होते हुए भी सदस्यों को उस चीज का सेवन करना पड़ता है, जो सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं। इसके अलावा, जैसा कि हम जानते हैं कि बच्चों के लिए बड़े ही उनके आइडल होते हैं। उन्हें देखकर वह सीखते हैं। ऐसे में जब वे पैरेंट्स या बड़े-बुजुर्गों को अमुक आहार लेते देखते हैं, तो उसका स्वाद चखने के लिए प्रेरित होते हैं।