स्वास्थ्य सेवाएं और बीमा पॉलिसी: नागरिकों को मिले राहत

स्वास्थ्य सेवाएं और बीमा पॉलिसी: नागरिकों को मिले राहत

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Published On: Wednesday, December 18, 2024

Updated On: Thursday, December 19, 2024

Swasthya sevaayein aur bima policy se nagrikon ko rahat
Swasthya sevaayein aur bima policy se nagrikon ko rahat

अच्छी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत हर किसी को होती है। यह सरकार का दायित्व है कि वह इस तरह की स्वास्थ्य सेवाएं अपने नागरिकों को आसानी से उपलब्ध कराएं। वैसे तो केंद्र और राज्य सरकारें इस दिशा में लगातार प्रयास करती हैं, पर आमतौर पर सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएं और संसाधन नहीं होते। एम्स जैसे कुछ बड़े अस्पताल साधन संपन्न तो हैं, पर मरीजों की भारी भीड़ के कारण सभी को प्राथमिकता के आधार पर इलाज नहीं उपलब्ध हो पाता। जरूरत इस बात की है कि सरकार अपने दायित्व को समझते हुए अपने अस्पतालों को उन्नत और सक्षम बनाने पर ध्यान दे, ताकि हर नागरिक को आवश्यकतानुसार समुचित इलाज की सुविधा मिल सके...

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Updated On: Thursday, December 19, 2024

हाइलाइट्स

  • स्वास्थ्य बीमा करवाने पर वर्तमान में 18 प्रतिशत जीएसटी लागू होता है, जो मरीजों के लिए एक अतिरिक्त वित्तीय बोझ है।
  • जीएसटी काउंसिल सहमति के बावजूद अभी तक स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी खत्म करने या कम करने पर कोई फैसला नहीं कर सकी है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार को अपने अस्पतालों की क्षमता बढ़ाने और मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने की जरूरत है।

आज के समय में स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर और नागरिकों को उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं का विषय बहस का प्रमुख मुद्दा बन चुका है। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की जिम्मेदारी राज्य यानी सरकारों पर है, लेकिन हाल के वर्षों में यह देखने को मिला है कि सरकारें इस जिम्मेदारी से बचने के लिए स्वास्थ्य बीमा जैसी योजनाओं का सहारा ले रही हैं। एक उदाहरण है आयुष्मान भारत योजना, जिसे देश की बड़ी आबादी तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के उद्देश्य से लागू किया गया है। इस योजना के तहत हर परिवार को 5 लाख रुपये तक की बीमा सुविधा दी गई है। हालांकि सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य संस्थानों की हालत पर नजर डालें तो पता चलता है कि वहां सुविधाओं की भारी कमी है। जनसंख्या के अनुपात में न तो अस्पताल पर्याप्त हैं ना ही डॉक्टर्स और ना ही अन्य चिकित्सा संसाधन। मसलन किसी मरीज को गंभीर बीमारी के लिए सर्जरी करवानी हो तो उसे वर्षों इंतजार करना पड़ता है। कैंसर जैसे गंभीर मामलों में भी कई साल बाद की तारीख दी जाती है।

सवाल यह है कि क्या इतने लंबे इंतजार में मरीज जीवित रह सकेगा? हालांकि सरकार ने इस समस्या का समाधान बीमा के जरिए निकालने की कोशिश करके एक अच्छी पहल की है। आयुष्मान भारत योजना जैसे कार्यक्रमों के तहत नागरिकों को यह भरोसा दिया गया कि वे प्राइवेट अस्पतालों में भी मुफ्त इलाज करा सकते हैं। वैसे एक आदर्श स्थिति में सरकार को अपने स्वास्थ्य संस्थानों को इतना सक्षम और सुसज्जित बनाना चाहिए कि नागरिकों को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण इलाज वहीं मिल सके। बीमा योजनाएं यह धारणा स्थापित करती हैं कि सरकार अपने अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने में असमर्थ है।

बीमा कंपनियां जो प्राइवेट संस्थाएं हैं, सीमित कवरेज और शर्तों के साथ काम करती हैं। यह बीमा का लाभ उठाने वाले मरीजों और प्राइवेट अस्पतालों दोनों पर अतिरिक्त दबाव डालता है। बीमा योजना लागू होने के बाद शुरू में प्राइवेट अस्पतालों में इलाज की प्रक्रिया सरल लगती थी। मरीजों को लगता है कि अब सरकारी अस्पतालों की भीड़ और झंझट से बचा जा सकता है। लेकिन धीरे-धीरे बीमा कंपनियों ने इलाज की शर्तों पर सख्ती शुरू कर दी। उदाहरण के लिए अब कई बीमारियों के लिए बीमा के तहत सीमित दिन ही भर्ती रहने की अनुमति है। इसके अलावा, बीमा कवरेज की राशि को भी सीमित कर दिया गया है। यदि मरीज को बीमा कवरेज से अधिक खर्च उठाना पड़ता है तो उसका भार या तो मरीज खुद उठाता है या प्राइवेट अस्पतालों पर पड़ता है। इसके चलते प्राइवेट अस्पताल भी कई बार मरीजों को उचित सुविधाएं देने में हिचकिचाते हैं।

बीमा पर जीएसटी से जल्द मिले राहत

प्राइवेट कंपनियों से प्रीमियम स्वास्थ्य बीमा करवाने पर वर्तमान में 18 प्रतिशत जीएसटी लागू होता है, जो मरीजों के लिए एक अतिरिक्त वित्तीय बोझ है। हालांकि इस पर जीएसटी काउंसिल में लंबे समय से चर्चा चल रही है और इसे खत्म या कम करने पर सहमति भी बन गई है, पर अभी तक इसे लागू करने की पहल नहीं की जा सकी है। सवाल यह उठता है कि जब सरकार नागरिकों के स्वास्थ्य का जिम्मा उठाने का दावा करती है, तो बीमा पॉलिसी पर जीएसटी क्यों लगाया जाता है? अगर सरकार वास्तव में नागरिकों को राहत देना चाहती है, तो मेडिक्लेम पॉलिसी पर जीएसटी को शून्य कर देना चाहिए।

स्वास्थ्य हर नागरिक का मौलिक अधिकार

स्वास्थ्य हर नागरिक का मूल अधिकार है। सरकार का यह दायित्व है कि वह हर नागरिक को गुणवत्तापूर्ण और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करे। स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार को अपने अस्पतालों की क्षमता बढ़ाने और मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने की जरूरत है। बीमा जैसी योजनाएं नागरिकों को अस्थायी समाधान तो देती हैं, लेकिन दीर्घकालिक समाधान नहीं। सरकार को चाहिए कि वह बीमा योजनाओं पर निर्भर रहने के बजाय स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करे। सरकारी अस्पतालों की क्षमता बढ़ाई जाए, उन्हें आधुनिक सुविधाओं से लैस किया जाए और पर्याप्त डॉक्टरों व स्टाफ की भर्ती की जाए। साथ ही, बीमा योजनाओं पर लगने वाला जीएसटी खत्म किया जाए ताकि नागरिकों पर वित्तीय बोझ कम हो। स्वास्थ्य हर नागरिक का अधिकार है और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इसे सुनिश्चित करे। बीमा योजना समाधान का एक हिस्सा हो सकती है, लेकिन इसे मूल समाधान नहीं माना जा सकता। जब तक सरकारी अस्पतालों की स्थिति में सुधार नहीं होता, तब तक नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाओं का पूरा लाभ मिल पाना मुश्किल है

अरुण श्रीवास्तव पिछले करीब 34 वर्ष से हिंदी पत्रकारिता की मुख्य धारा में सक्रिय हैं। लगभग 20 वर्ष तक देश के नंबर वन हिंदी समाचार पत्र दैनिक जागरण में फीचर संपादक के पद पर कार्य करने का अनुभव। इस दौरान जागरण के फीचर को जीवंत (Live) बनाने में प्रमुख योगदान दिया। दैनिक जागरण में करीब 15 वर्ष तक अनवरत करियर काउंसलर का कॉलम प्रकाशित। इसके तहत 30,000 से अधिक युवाओं को मार्गदर्शन। दैनिक जागरण से पहले सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल (हिंदी), चाणक्य सिविल सर्विसेज टुडे और कॉम्पिटिशन सक्सेस रिव्यू के संपादक रहे। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, करियर, मोटिवेशनल विषयों पर लेखन में रुचि। 1000 से अधिक आलेख प्रकाशित।

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