मन के रोग : कहीं मौसम तो आपके अवसाद का कारण नहीं बन रहा ?

मन के रोग : कहीं मौसम तो आपके अवसाद का कारण नहीं बन रहा ?

Authored By: अंशु सिंह

Published On: Monday, December 9, 2024

Updated On: Monday, December 9, 2024

seasonal depression mental health
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क्या आपने सोचा है कि मौसम भी आपकी खुशी एवं चैन को छीन सकता है? जी हां, यह एक कड़वा सच है, जिसका सामना बहुसंख्यक लोग अनजाने में ही करते रहते हैं। उन्हें मालूम ही नहीं होता कि जीवन में आई उदासी या अवसाद किसी व्यक्ति नहीं, अपितु बदलते मौसम की देन हो सकती है....

Authored By: अंशु सिंह

Updated On: Monday, December 9, 2024

‘आज मेरा मूड अच्छा नहीं है। मुझे किसी के घर नहीं जाना है। बात करने की बिल्कुल इच्छा नहीं हो रही। पता नहीं ये बर्फबारी और कितने दिनों तक चलेगी?’ कुछ वर्ष पहले ही भारत से डबलिन शिफ्ट हुए मयूर ने जब अपने दोस्त रोहन से उदासी भरे स्वर में ये बात कही, तो वे थोड़े हैरान हो गए कि आखिर इस बर्फबारी का मूड से क्या संबंध है? वे सोचने लगे कि मयूर को क्या हो गया है? क्यों उनका मूड इतना खराब रहने लगा है, जबकि वे एक खुशमिजाज एवं जिंदादिल व्यक्ति रहे हैं? रोहन ने बिना समय गंवाए अपने एक मनोचिकित्सक मित्र से बात की। उन्हें जानकर आश्चर्य हुआ कि मौसम भी मूड स्विंग का प्रमुख कारण हो सकता है। सर्दी के मौसम में दिन वैसे ही छोटे होते हैं। उस पर से अगर बर्फबारी हो रही हो, तो ज्यादा समय घर के अंदर बीतता है। पर्याप्त धूप न मिलने से आलस और तनाव दोनों घेर लेते हैं।

मल्टीनेशनल कंपनी में एनालिस्ट सौरभ को अक्सर काम के सिलसिले में अमेरिका एवं अन्य मुल्कों में जाना होता है। वे बताते हैं कि, ‘शुरू में विदेशी मुल्क आपको आकर्षित करता है। लेकिन जब कड़ाके की सर्दी पड़ती है और कई दिनों तक सूरज के दर्शन नहीं होते हैं, तो मन में अजीब-सी उदासी छाने लगती है। रोने का मन करता है। बहुत अकेलापन महसूस होता है।‘ रिसर्च भी इशारा करते हैं कि करीब 10 से 15 लोगों को मौसमी मूड स्विंग की समस्या हो सकती है। विशेषकर ठंडे प्रदेशों, देशों एवं ध्रुवीय इलाकों में रहने वालों को इस प्रकार की समस्या अधिक होती है।

सर्दियों में क्यों हों ‘सैड’

वैसे, तो अधिकांश रिसर्च में मनोवैज्ञानिक एवं बायोलॉजिकल पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है। इस बात पर फोकस कम होता है कि पर्यावरणीय, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारणों से भी अवसाद एवं अन्य मानसिक समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन स्कॉटलैंड स्थित ग्लासगो यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड वेलबींग में मौसम परिवर्तन के कारण व्यक्ति विशेष पर होने वाले प्रभाव को लेकर एक अध्ययन हुआ। ‘जर्नल ऑफ अफेक्टिव डिसॉर्डर’ में प्रकाशित इस शोध रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं मौसम में होने वाले बदलावों से अधिक प्रभावित होती हैं। खासकर सर्दियों में महिलाएं छोटे दिन एवं ठंडे तापमान के कारण ‘सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर’ (सैड) की शिकार हो जाती हैं। इस स्थिति को ‘विंटर ब्लू’ भी कहा जाता है। इसमें मूड खराब रहने लगता है। व्यवहार में चिड़चिड़ापन एवं थकावट जैसी समस्याएं होती हैं। अकेलेपन का एहसास कई बार महिलाओं को अवसाद की ओर धकेल देता है।

वरिष्ठ मनोचिकित्सक गगनदीप कौर के अनुसार, सैड की समस्या दिन के छोटा होने से शुरू होती है। दिसंबर से फरवरी तक के महीने में यह अधिक बढ़ जाती है। वसंत के मौसम में इसमें थोड़ा सुधार आता है। भारत में करीब 10 मिलियन से अधिक महिलाएं ‘सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर’ की शिकार बताई जाती हैं। उनमें सुस्ती, उदासी, चिड़चिड़ेपन की समस्या होती है। हालांकि इसका कोई प्रामाणिक कारण नहीं पता चल सका है। लेकिन अत्यधिक सर्दी, गर्मी या बरसात के कारण लोगों को कई प्रकार की दिक्कतें होती हैं।

ग्लोबल वॉर्मिंग ने बढ़ाई चुनौतियां

मौसम में बदलाव एक प्राकृतिक चक्र है। लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण इसमें आए अकल्पनीय बदलाव ने गृहिणियों, कामकाजी व पेशेवर महिलाओं से लेकर खिलाड़ियों तक, हर किसी को प्रभावित किया है। देहरादून की धावक ज्योत्सना रावत अपने अनुभव कुछ यूं बताती हैं, ‘किसी भी आउटडोर या एडवेंचर स्पोर्ट्स में मौसम की बड़ी भूमिका होती है। खिलाड़ियों को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ज्यादा बारिश हुई, तो समय पर अभ्यास नहीं कर पाते हैं। चिलचिलाती धूप में दौड़ने से सनबर्न हो जाता है। मैंने भी माउनटेनियरिंग एवं पहाड़ों में लंबी दूरी की मैराथन करते हुए यह सब झेला है। फिर भी सनस्क्रीन के प्रयोग की जरूरत महसूस नहीं हुई। लेकिन हर गुजरते साल के साथ ये चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं।

ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन शारीरिक एवं मानसिक दोनों रूप से हमें प्रभावित कर रहा है। पहले रास्ते की सुरक्षा का ही ध्यान रखना होता था। अब तो मौसम भी असुरक्षित महसूस कराने लगा है। पहाड़ों का मौसम तेजी से बदल रहा है। तीन-चार बजे की धूप इतनी तीखी होती है कि बाहर अभ्यास करने से लेने के देने पड़ सकते हैं। स्किन एलर्जी से लेकर दूसरी समस्याएं हो रही हैं। दिल्ली जैसे महानगरों में हालात और गंभीर हैं। थेरेपी के सिलसिले में तीन महीने वहां रहना मेरी सेहत पर भारी पड़ा। गले से लेकर छाती का संक्रमण झेलने को मजबूर हुई।‘

मौसम के प्रभाव के प्रति लानी होगी जागरूकता

हम सब देख रहे हैं कि कैसे मौसम अचानक करवट ले लेता है। कभी एकदम से तापमान बढ़ जाता है। कभी ठंड का एहसास होने लगता है। बेमौसम की बारिश तो पूरी दिनचर्या को ही बदल कर रख देती है। खानपान, व्यायाम या वॉक पर जाने का रूटीन एवं अन्य गतिविधियां सब प्रभावित होने लगती हैं। यह सब कहीं न कहीं व्यक्ति को मानसिक रूप से अस्थिर करता है। डॉक्टरों के अनुसार, आज अधिकांश लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि मौसम परिवर्तन मानसिक रोग का एक बड़ा कारक है। ऐसे में उन्हें जागरूक बनाना होगा।

हर मौसम का अपना प्रभाव

सवाल है कि क्या मौसम परिवर्तन से जीवन पर सिर्फ नकारात्मक प्रभाव होते हैं या सकारात्मक भी होते हैं? आमतौर पर माना जाता है कि गर्मी के मौसम में लोगों के मूड में एक आक्रामकता आ जाती है। अत्यधिक गर्मी सहन न कर पाने के कारण बेचैनी होने लगती है। लेकिन कुछेक अध्ययनों एवं शोधों से पता चलता है कि जिन्हें गर्मी का मौसम पसंद होता है, उनका मूड भी बढ़ते तापमान के बावजूद अच्छा रहता है। वे ऊर्जावान महसूस करते हैं। वहीं, ऐसे लोग भी हैं जिनके लिए बारिश का मौसम मायूसी नहीं, खुशी का अवसर होता है। रिमझिम शुरू होते ही दिल की बांछें खिल जाती हैं। ट्रैवलर कोयल को तो मॉनसून का खास इंतजार रहता है। कहती हैं, ‘मैंने देश-विदेश की काफी यात्राएं की हैं। लेकिन बारिश के दिनों में यात्रा करने का अपना रोमांच है। ऐसा लगता है कि प्रकृति की हरियाली मेरे तन-मन के अंदर आ बसी हो। जिस प्रकार बारिश की बूंदें पेड़-पौधों, पत्तों पर जमी धूल को धो डालती हैं, लगता है वैसे ही यह मेरे मन की सारी उदासी एवं उसमें जमी नकारात्मकता की मैल को भी साफ कर देती है। ऐसा मेरा अपना अनुभव एवं सोच है।‘

‘सैड’ से निकलें बाहर

  • सुबह की सैर करना न भूलें। इससे फील गुड सेरोटोनिन हॉरमोन का स्त्राव होगा और आप अच्छा महसूस करेंगी।
  • हर रात को एक निर्धारित समय पर सोने एवं अगली सुबह तय वक्त पर उठने का प्रयास करें।
  • अगर पर्याप्त धूप नहीं मिलती है, तो डॉक्टर से परामर्श कर विटामिन-डी को आहार में शामिल करें।
  • प्राकृतिक रोशनी में ज्यादा से ज्यादा समय बिताने या काम करने का प्रयास करें। हर संभव तरीके से सुबह की धूप जरूर लें।
  • परिवार एवं दोस्तों के साथ क्वालिटी टाइम व्यतीत करें। घूमने जाएं। अपने शौक को तलाश उसे पूरा करें।
  • मौसम के बदलाव के समय संतुलित आहार लेना अच्छा रहेगा।
  • शारीरिक एक्सरसाइज के साथ अपनी दिनचर्या में ध्यान व मेडिटेशन को शामिल करें।
About the Author: अंशु सिंह
अंशु सिंह पिछले बीस वर्षों से हिंदी पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं। उनका कार्यकाल देश के प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण और अन्य राष्ट्रीय समाचार माध्यमों में प्रेरणादायक लेखन और संपादकीय योगदान के लिए उल्लेखनीय है। उन्होंने शिक्षा एवं करियर, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक मुद्दों, संस्कृति, प्रौद्योगिकी, यात्रा एवं पर्यटन, जीवनशैली और मनोरंजन जैसे विषयों पर कई प्रभावशाली लेख लिखे हैं। उनकी लेखनी में गहरी सामाजिक समझ और प्रगतिशील दृष्टिकोण की झलक मिलती है, जो पाठकों को न केवल जानकारी बल्कि प्रेरणा भी प्रदान करती है। उनके द्वारा लिखे गए सैकड़ों आलेख पाठकों के बीच गहरी छाप छोड़ चुके हैं।

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