Sustainable Living trend : प्रकृति के बीच रहने का बढ़ा ट्रेंड, ग्रीन बिल्डिंग के निर्माण पर भी जोर
Sustainable Living trend : प्रकृति के बीच रहने का बढ़ा ट्रेंड, ग्रीन बिल्डिंग के निर्माण पर भी जोर
Authored By: अंशु सिंह
Published On: Tuesday, April 1, 2025
Updated On: Tuesday, April 1, 2025
Sustainable Living Trend : विश्व भर में ‘सस्टेनेबल लिविंग’ (प्रकृति के संग सहवास) पर जोर बढ़ रहा है, ताकि प्रकृति एवं पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सके. इससे ग्रीन बिल्डिंग्स एवं ग्रीन होम्स की मांग बढ़ रही है. ऐसे घर न सिर्फ ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करते हैं, बल्कि लोगों के तन-मन को स्वस्थ रखने में भी कारगर होते हैं. वर्ल्ड ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल के अनुसार, ग्रीन अथवा इको फ्रेंडली बिल्डिंग्स की डिजाइन, कंस्ट्रक्शन एवं ऑपरेशन इस तरह से होते हैं कि वह पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन पर होने वाले नकारात्मक प्रभाव को कम कर सकते हैं. यही वजह है कि आने वाले समय में देश में ग्रीन होम प्रोजेक्ट्स के 28 से 55 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना जतायी जा रही है.
Authored By: अंशु सिंह
Updated On: Tuesday, April 1, 2025
Sustainable Living trend: ‘सस्टेनेबल लिविंग’ एक ऐसी जीवनशैली है, जिसमें इंसान प्रकृति के संग अधिक सद्भावपूर्ण तरीके से जीवन जीता है. प्रकृति से प्राप्त होने वाली चीजों का कम से कम दोहन करता है. तभी इसे लिविंग विद नेचुरल हारमनी भी कहा जाता है. लोग अपने वातावरण को प्रदूषित नहीं करते और उन वस्तुओं से परहेज करते हैं, जिनसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. वैश्विक जलवायु संकट को देखते हुए इसे अपनाने वाली मिसालें दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं. सिलीगुड़ी की पर्यावरण प्रेमी एवं लाइफकोच वर्षा को ही लें. इन्होंने अपने घर की दीवारों में ईंट की जगह मिट्टी एवं क्ले ब्लॉक्स का प्रयोग किया है. उस पर कोई प्लास्टर या पेंट नहीं लगाया है. ऐसा हानिकारक लेड के इस्तेमाल से बचने के लिए किया गया है. फर्श भी कोटा एवं क्ले टाइल्स से बनाए गए हैं. सोलर पैनल्स से ही ऊर्जा की जरूरतें पूरी होती हैं. वे कहती हैं, पर्यावरण संरक्षण के प्रति व्यापक समाज की जिम्मेदारी और भी गंभीर हो गई है. हमें गो ग्रीन, रिड्यूस, रीयूज, रीसाइकिल.. जैसे नारों या विकल्पों से आगे निकलकर इसे अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाना होगा. मैंने अपने स्तर पर परिवर्तन लाए हैं. इको फ्रेंडली घर में रहती हूं. किचन गार्डन में ही उपयोग लायक सब्जियां उगाती हूं. खाद का इंतजाम भी घर के कचरे से कर लेती हूं.
जंगल के बीच रहते हैं हरि और आशा
केरल के कन्नुर जिले के निवासी हरि एवं आशा एक ऐसा आशियाना बनाना चाहते थे, जो प्रकृति से जुड़ा हो और टिकाऊ भी. उनकी इस ख्वाहिश को एक आर्किटेक्ट मित्र ने पूरा कर दिखाया. जंगल के मध्य, हरियाली के बीच एक ऐसे घर का निर्माण हुआ, जिसकी दीवारें मिट्टी की बनी थीं. जहां बिजली के पंखों की आवश्यकता महसूस नहीं होती थी. पर्याप्त रौशनी थी. इस तरह बीते कई वर्षों से दोनों इस घर में आनंदपूर्वक रह रहे हैं. हरि के घर में सोलर पैनल लगे हैं, जिससे टीवी,कंप्यूटर एवं अन्य उपकरण चलते हैं. रसोई भी बायोगैस से संचालित होती है. कचरे से ही ईंधन तैयार कर लिया जाता है. इसके अलावा, सब्जियां आदि खुद ही उगा लेते हैं. जब आहार स्वस्थ एवं श्वास लेने के लिए हवा शुद्ध मिले, तो बीमारी भी नहीं सताती. कई वर्ष हो गए, दवा की जरूरत तक नहीं पड़ी.
बैंबू से इको फ्रेंडली घरों का करते निर्माण
एक खास किस्म का घास है बैंबू, जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता. अन्य पौधों एवं वृक्षों की अपेक्षाकृत इसका विकास जल्दी (चार वर्ष में) होता है. इससे वनों की कटाई जैसी समस्या नहीं आती.यह मिट्टी के कटाव को रोकता है. इसी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2006 में हैदराबाद के प्रशांत लिंगम एवं अरुणा ने ‘बैंबू हाउस इंडिया’ की स्थापना की थी. यहां ये बांस की मदद से इकोफ्रेंडली एवं एनर्जी एफिशिएंट घरों का निर्माण करते हैं. प्रशांत के अनुसार, बीते कुछ वर्षों में निश्चित तौर पर सस्टेनेबल निर्माण एवं लिविंग को लेकर एक उत्सुकता देखी जा रही है. लेकिन बैंबू के घर को लेकर लोगों में अब भी उतना भरोसा उत्पन्न नहीं हो सका है. वे इसे एक सस्ता टिंबर मानते हैं, जो शायद उतना टिकाऊ नहीं हो सकता. इसलिए ऐसे घरों के निर्माण पर अधिक ध्यान नहीं देते, जबकि यह धारणा बिल्कुल गलत है. बैंबू के घर न सिर्फ 20 से 25 वर्ष तक टिक सकते हैं, बल्कि इसके निर्माण एवं देखरेख पर न्यूनतम खर्च आता है. कंक्रीट की अपेक्षाकृत ये घर अधिक ठंडे (2 से 3 डिग्री कम होता है तापमान) भी होते हैं. अब तक प्रशांत हैदराबाद, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र में चार सौ से अधिक घर बना चुके हैं.
री-यूजेबल सामग्री से बनाते ग्रीन बिल्डिंग
गुजरात के वडोदरा निवासी मनोज पटेल तड़क-भड़क से दूर, सामान्य जीवन जीने में विश्वास करते हैं. साइकिल से या पैदल चलना इन्हें काफी पसंद है. रुचि भी इको फ्रेंडली होम डिजाइनिंग में है. गांव की मिट्टी से जुड़े रहने के कारण जुगाड़ तकनीक का भी अच्छा ज्ञान है. मनोज बताते हैं, ‘हरेक निर्माण सामग्री का पर्यावरण पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है. जैसे कोई भी घर बनाते समय हमें ध्यान रखना होता है कि किस तरह की सामग्री का प्रयोग करने से गर्मियों में एसी का कम से कम प्रयोग हो, घर में रौशनी के पर्याप्त जरिये हों, जिससे अधिक लाइट्स जलाने की आवश्यकता न पड़े.’ मनोज जीरो ऑपरेशन कॉस्ट पर लोगों के लिए सस्टेनेबल ग्रीन होम्स डिजाइन करते हैं. इनके निर्माण में रीयूजेबल सामग्री, इको फ्रेंडली क्ले रूफ टाइल्स (मैंग्लोर क्ले रूफ टाइल्स), टेराकोटा इत्यादि का इस्तेमाल करते हैं, जो न सिर्फ हल्के एवं टिकाऊ होते हैं, बल्कि सीमेंट या सीरामिक टाइल्स की अपेक्षा इनकी इंस्युलेशन (ताप रोधन क्षमता) भी बेहतर होती है. इससे गर्मियों में भी कमरे का तापमान अधिक नहीं होता.
अर्बन हीटलैंड के कारण शहरों में ज्यादा गर्मी
हम अक्सर सुनते हैं कि बड़े शहरों में ग्रामीण इलाकों की तुलना में दिन में गर्मी बहुत ज्यादा रहती है. कई बार रात में भी पारा चढ़ा हुआ ही रहता है. यह अर्बन हीट आइलैंड बनने के कारण होता है. शहर में होने वाले निर्माण कार्य, गाड़ियों का प्रदूषण, बड़ी-बड़ी शीशे की इमारतों (एसी युक्त) से निकलने वाली गर्मी वातावरण में बनी रहती हैं. सूर्य की किरणें भी प्रतिबिंबित होकर इसी वातावरण में रहती हैं, जिससे तापमान में गिरावट नहीं आती है. दूसरी ओर, ग्रामीण क्षेत्रों में मिट्टी की प्रचुरता सूरज के रेडिएशन को सोखने में सहायक होती है. इसलिए मनोज शहरों में घर बनाते समय क्ले बॉक्स का प्रयोग कर रहे हैं, जिससे कि वह गर्मी को सोख सके. नतीजा यह होता है कि घर के अंदर या आसपास उतनी तपिश महसूस नहीं होती और बदले में ऊर्जा की बचत हो जाती है सो अलग. इसलिए अगर इको फ्रेंडली डिजाइन एवं तकनीक को बढ़ावा दिया जाए, तो पर्यावरण को होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है.
ग्रीन बिल्डिंग्स के निर्माण में तेजी
जानकारों के अनुसार, अगर घर में बिजली होना विकास का सूचक माना जाता है, तो एलईडी टेक्नोलॉजी (सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी) ने उसे संभव कर दिखाया है. आज लाखों घर इससे रौशन हो सके हैं. सोलर एनर्जी से जुड़ी ‘माईसन’ कंपनी के संस्थापक गगन वीरमानी कहते हैं कि हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं कि शहरों पर आबादी का अनावश्यक दबाव पर्यावरण के लिए घातक बनता जा रहा है. ऐसे में ग्रीन बिल्डिंग्स के निर्माण को बढ़ावा देना होगा. हाल के वर्षों में गैर-आवासीय ग्रीन बिल्डिंग्स के बाजार का आकार तेजी से बढ़ है. वर्ष 2025 तक इसके 1299.61 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है.
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