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खनिज संपदा (Mineral Wealth) पर टैक्स लगाने का अधिकार किसका, केंद्र या राज्य का?
खनिज संपदा (Mineral Wealth) पर टैक्स लगाने का अधिकार किसका, केंद्र या राज्य का?
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Published On: Friday, July 26, 2024
Last Updated On: Tuesday, August 27, 2024
उच्चतम न्यायालय ने अपने ही 35 साल पुराने फैसले को पलटते हुए, खनिज संपदा पर राज्य का अधिकार स्थापित कर दिया है। इस फैसले के बाद खनिज संपदा से भरपूर राज्यों को लाभ होगा।
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Last Updated On: Tuesday, August 27, 2024
देश के विभिन्न हिस्सों में मौजूद खनिज संपदा पर टैक्स लगाने का अधिकार किसका का है, इसका फैसला उच्चतम न्यायालय ने कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने अपने ही 35 साल पुराने फैसले को पलटते हुए, इस पर राज्य का अधिकार स्थापित कर दिया है। इस फैसले के बाद खनिज संपदा से भरपूर राज्यों को लाभ होगा। इससे पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, कर्नाटक, गोवा जैसे राज्यों को सबसे ज्यादा लाभ होगा। इन राज्यों को पहले से ज्यादा राजस्व प्राप्त हो सकेगा। खनिज संपदा पर अब तक सिर्फ केंद्र सरकार टैक्स लगाती थी। राज्य को इससे रॉयल्टी मिलता था।
उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने अपने ही फैसले को पलटा
यह विवाद चार दशक से भी ज्यादा पुराना है। खनिज संपदा (Mineral Wealth) से भरपूर कई राज्य आज भी गरीब और बदहाल राज्यों में गिने जाते हैं। राज्य सरकारें अपने यहां खनिज संपदा पर टैक्स लगाना चाहती थी लेकिन केंद्र इसके लिए तैयार नहीं था और मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंचा। वर्ष 1989 में उच्चतम न्यायालय के 7 सदस्यीय बेंच ने केंद्र के फेवर में फैसला सुनाया था। यानी राज्य इस पर टैक्स नहीं लगा सकता था। विवाद थमा नहीं तो इस मामले को संवैधानिक पीठ के सामने रखा गया। 30 मार्च 2011 को तत्कालीन सीजेआई ने इस मामलों को 9 जजों वाली संविधान पीठ में सुनवाई के लिए भेजा। अब संविधान पीठ ने 8-1 के बहुमत से अपना फैसला सुनाया। फैसले में पीठ ने कहा कि खनिज संपदा पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्यों के पास है।
संविधान पीठ में कौन-कौन न्यायाधीश
संविधान पीठ की अगुवाई देश के मुख्य न्यायाधीश कर रहे थे। इसलिए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने इस पीठ की अगुवाई किया। इनके अलावा पीठ न्यायाधीश ऋषिकेश रॉय, जे बी पर्दीवाला, बी. वी. नागरत्ना, मनोज मिश्रा, अभय एस. ओका, सतीश चंद्र शर्मा, उज्ज्वल भुइयां और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। नौ में से आठ न्यायाधीश ने माना कि टैक्स लगाने का अधिकार राज्यों को है। सिर्फ न्यायाधीश बी.वी. नागरत्ना इससे सहमत नहीं थे। उनका मत था कि खनिज संपदा पर राज्य को टैक्स लगाने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
मामला क्या था?
राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में खनिज संपदा और खनन पर टैक्स वसूलना चाहती थी। जिस पर केंद्र रोकता था। इसलिए राज्य उच्चतम न्यायालय में इस मामले को लेकर आया। उच्चतम न्यायालय में इसको लेकर कुछ वर्षों में 80 से अधिक याचिकाएं दायर की गईं थीं। आखिर खनिज संपदा से कमाई का अधिकार किसका होगा? राज्यों को खनिजों से रॉयल्टी मिलती है। केंद्र सरकार का कहना था कि यह रॉयल्टी एक तरह का टैक्स ही है। खनिज पर टैक्स लगाने का अधिकार संसद को है। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि संविधान में राज्य और केंद्र की सूची दी हुई है। उस सूची के मुताबिक जमीन और इमारतों पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्यों को दिया गया है। प्रविष्टि 49 के मुताबिक राज्य ‘भूमि और इमारतों’ पर कर लगा सकते हैं। प्रविष्टि 50 कहता है कि राज्य विधानसभा खान और खनिजों पर कर लगाने के लिए कानून बनाना सकता है। बशर्ते वह संसद द्वारा तय की गई सीमाओं के तहत हों। इसमें खनिज वाली जमीन भी शामिल है। केंद्र सरकार की रॉयल्टी वाली टैक्स पर न्यायालय ने कहा, ‘रॉयल्टी कोई टैक्स नहीं है। यह राज्य सरकारों और खनन कंपनियों के बीच का एक अनुबंध है। जबकि टैक्स सरकार और करदाता के बीच कोई अनुबंध नहीं होता है।
इस फैसले किन राज्यों को होगा फायदा?
देश के कई राज्य खनिज संपदा से भरपूर हैं। इसके बावजूद वह प्रदेश गरीब है। उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के इस फैसले से खनिज संपदा के मामले में समृद्ध राज्यों को आय का अतिरिक्त दरवाजा खुल जाएगा। इसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा, कर्नाटक और गोवा जैसे राज्यों को मिनरल में रॉयल्टी के अलावा टैक्स वसूलने का अधिकार मिल गया। इससे इन राज्यों को राजस्व का एक अतिरिक्त स्रोत मिल जाएगा।