मोहन भागवत का 50 मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ संवाद, क्या होगा इसका आने वाला परिणाम
Authored By: सतीश झा
Published On: Thursday, July 24, 2025
Updated On: Thursday, July 24, 2025
देश में सांप्रदायिक सौहार्द और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने हाल ही में दिल्ली में 50 मुस्लिम धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की. इस बंद दरवाजे वाली बैठक को संघ और मुस्लिम समुदाय के बीच संवाद को मजबूत करने की एक बड़ी पहल के रूप में देखा जा रहा है.
Authored By: सतीश झा
Updated On: Thursday, July 24, 2025
Mohan Bhagwat: बताया जा रहा है कि इस संवाद का मूल मकसद आपसी विश्वास को बढ़ाना, समाज में फैल रही भ्रांतियों को दूर करना और भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को मजबूती देना था. इस दौरान देश में शांति और सौहार्द कायम रखने, नफरत की राजनीति से बचने और एक-दूसरे की भावनाओं को समझने जैसे मुद्दों पर भी विस्तार से चर्चा हुई.
कौन-कौन हुआ शामिल?
बैठक में शामिल मुस्लिम धर्मगुरुओं में कुछ प्रमुख मौलाना, मुस्लिम बुद्धिजीवी, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे. वहीं, आरएसएस की ओर से मोहन भागवत के अलावा कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी भी मौजूद थे. बैठक में आरएसएस के शीर्ष पदाधिकारी जैसे महासचिव दत्तात्रेय होसबोले, सह महासचिव कृष्ण गोपाल, वरिष्ठ नेता रामलाल और इंद्रेश कुमार भी मौजूद रहे. यह बैठक करीब दो घंटे तक चली और इसमें समाज में फैले मतभेदों को खत्म करने, आपसी संवाद बढ़ाने और विश्वास बहाली पर गहन चर्चा की गई.
RSS ने मुस्लिम समुदाय से जुड़ने के लिए बढ़ाया हाथ, MRM चला रहा राष्ट्रव्यापी अभियान
RSS अपने संबद्ध संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) के माध्यम से मुस्लिम समुदाय के साथ संवाद और सहयोग बढ़ाने के प्रयासों को तेज कर रहा है. इसी कड़ी में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की हालिया बैठक के बाद अब एमआरएम ने वर्ष 2023 में घोषित अपने “एक राष्ट्र, एक ध्वज, एक राष्ट्रगान” अभियान को आगे बढ़ाने की दिशा में जोरदार पहल शुरू कर दी है.
एमआरएम का यह अभियान मौलवियों, इस्लामी विद्वानों और मुस्लिम समुदाय की प्रमुख हस्तियों से संवाद के माध्यम से राष्ट्रीय एकता, सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक समरसता को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा है. संगठन का मानना है कि देश की विविधता को एकजुट करना और सबको साथ लेकर चलना समय की आवश्यकता है.
एमआरएम के पदाधिकारियों के अनुसार, अभियान के तहत देशभर में सेमिनार, संवाद सत्र, और स्थानीय स्तर पर सामुदायिक बैठकें आयोजित की जा रही हैं. इसका उद्देश्य है मुस्लिम समाज में राष्ट्रगान, राष्ट्रीय ध्वज और भारत की एकता के प्रति सम्मान और समझ को और प्रगाढ़ करना.
संघ की रणनीति में बदलाव?
इस बैठक को संघ की रणनीति में “सॉफ्ट अप्रोच” के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिम समाज के साथ सीधा संवाद साधने की कोशिश की जा रही है. बीते कुछ वर्षों में भागवत द्वारा मस्जिदों, मदरसों और मुस्लिम संगठनों के नेताओं से मुलाकातों का यह सिलसिला लगातार जारी है.
कितनी कारगर होगी यह पहल?
राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषकों की मानें तो यह बैठक एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसका प्रभाव तभी दिखेगा जब संवाद सतत रूप से जारी रहे और ज़मीनी स्तर पर भी विश्वास की बहाली के ठोस प्रयास किए जाएं. कुछ आलोचक इसे “छवि सुधार अभियान” बता रहे हैं, वहीं कुछ इसे राष्ट्रीय एकता की दिशा में अहम कदम मान रहे हैं.
मोहन भागवत की मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ लगातार संवाद की पहल
RSS प्रमुख मोहन भागवत बीते कुछ वर्षों से देश में धार्मिक समावेशिता और आपसी समझ को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल कर रहे हैं. सितंबर 2022 में भागवत ने कई प्रमुख मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात कर एक ऐसा ही संवाद आरंभ किया, जिसमें भारत में बढ़ते सामाजिक ध्रुवीकरण को कम करने और एकजुटता को बढ़ावा देने के तरीकों पर चर्चा की गई. इस बैठक में भाग लेने वालों में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलाधिपति लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी और व्यवसायी सईद शेरवानी जैसे प्रतिष्ठित नाम शामिल थे. बैठक का मुख्य उद्देश्य था—विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच परस्पर संवाद स्थापित कर आरएसएस के विचारों को स्पष्ट करना और आपसी विश्वास को मजबूत करना.
बैठक में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद, हिजाब विवाद और जनसंख्या नियंत्रण जैसे संवेदनशील विषयों पर भी खुले मन से चर्चा हुई. इन मुद्दों पर भागवत की ओर से यह आश्वासन दिया गया कि राष्ट्र की एकता, समरसता और विकास की भावना को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और हर समुदाय को अपने विचार रखने की स्वतंत्रता है.
इसी क्रम में, अक्टूबर 2022 में आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने नई दिल्ली स्थित हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह का दौरा किया. वहां उन्होंने दरगाह परिसर में मिट्टी के दीये जलाकर सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश दिया, जिससे यह संकेत मिला कि आरएसएस अब विभिन्न धार्मिक समुदायों से जुड़ने और संवाद स्थापित करने की रणनीति को गंभीरता से आगे बढ़ा रहा है.
इन प्रयासों को लेकर समाज में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखी जा रही हैं. कुछ लोग इसे वास्तविक बदलाव की पहल मानते हैं, वहीं कुछ इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रेरित मानते हैं. बावजूद इसके, मोहन भागवत और आरएसएस का यह संवाद देश में सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है.
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