राजनीति की बिसात पर सिनेमा के सितारे

राजनीति की बिसात पर सिनेमा के सितारे

Authored By: रमेश यादव

Published On: Saturday, April 20, 2024

rajneeti ke bisat par cinema ke sitare
rajneeti ke bisat par cinema ke sitare

हर चुनाव में सिनेमा के चर्चित सितारे किसी न किसी राजनीतिक दल से मैदान में उतरते हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में कंगना रनौत (मंडी), अरुण गोविल (मेरठ) जैसे चर्चित सितारे जहां भाजपा का दामन थाम कर जनता के बीच पहुंचे हैं, वहीं हेमामालिनी श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा से तीसरी बार अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं...

Authored By: रमेश यादव

Updated On: Wednesday, October 16, 2024

भाजपा द्वारा कंगना रनौत को हिमाचल प्रदेश में मंडी से चुनावी मैदान में उतारने के बाद कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रमुख व प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत की इंस्टाग्राम पर की गई भद्दी टिप्पणी ने जहां कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया। वहीं, सियासत की दुनिया में सिनेमाई सितारों की भागीदारी भी चर्चा के केंद्र में आ गई। वैसे कंगना कोई पहली स्टार नहीं हैं, जिन्हें किसी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है। सियासत की दुनिया में सिनेमाई सितारों की फेहरिस्त लंबी है। सिल्वर स्क्रीन से निकलकर कुछ सियासत की दुनिया में ही रम गये तो कुछ के हिस्से में बैक टू पैवेलियन आया। वैसे सियासत की दुनिया में सिनेमाई सितारों के आने की शुरूआत दक्षिण भारत से हुई थी। अपनी सिनेमाई लोकप्रियता के बल पर इन फिल्मी सितारों ने न केवल चुनाव जीता बल्कि जमीनी स्तर पर भी उन्होंने खूब प्रभावित किया।

फिल्मी सितारों के राजनीतिक अखाड़े में उतरने का यह सिलसिला आज तक जारी है। इस बार के लोकसभा चुनाव में कंगना रनौत के साथ ही अरुण गोविल भी काफी चर्चा बटोर रहे हैं। 1980-90 के दशक में छोटे पर्दे पर रामानंद सागर के लोकप्रिय धारावाहिक रामायण के राम के रूप में भारतीय जनमानस में अपना विशेष स्थान बना लेने वाले अरुण गोविल को भाजपा ने इस बार मेरठ (उप्र) लोकसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया है। मेरठ सीट से अरुण गोविल को टिकट देकर पार्टी ने हिंदुत्व पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया है। मेरठ भाजपा का अभेद्य किला माना जाता है। जाहिर है अयोध्या में नव्य, दिव्य व भव्य राम मंदिर को भाजपा की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में पुरजोर तरीके से प्रचारित करने के लिए रामायण के राम अरुण गोविल से अधिक बेहतर माध्यम कोई और भला हो भी कैसे सकता है।

उल्लेखनीय है कि लगभग पांच शताब्दियों के लंबे संघर्ष के दौरान हर रामभक्त की यही इच्छा रही कि उसकी आंखों के सामने रामलला का मंदिर बने। श्रीरामलला को अपनी जन्मभूमि पर आने में देर तो हुई लेकिन अब आये हैं तो पूरे ठाटबाट से। भाव-विभोर कर देने वाले इस दिन की प्रतीक्षा में दर्जनों पीढियां अधूरी कामना लिए इस धराधाम से साकेतधाम में लीन हो गईं। पुरखों के तप, त्याग, संघर्ष व बलिदान के बाद प्राप्त इस चिरप्रतीक्षित नवविहान को देख भारत का वर्तमान आनंदित हो उठा है। भारत के इस वर्तमान के आनंद को वोट के रूप में भुनाने में भला रामायण के राम से अधिक कौन कारगर होगा।

बहरहाल, सिनेमा से आकर सियासत में जम जाने वाले एम करुणानिधि, एम जी रामचंद्रन, जे जयललिता और एन टी रामाराव ने दक्षिण भारत की सियासत को गहरे प्रभावित किया है। ये लोग राजनीति का ऐसा चेहरा बन गये, जिनके बिना दक्षिण भारत की राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हालांकि मायानगरी मुंबई से सियासत की दुनिया में कदम रखने वाले सितारों में कुछ को छोड़कर शेष धूमकेतु की तरह चमक कर शांत हो गये। ऐसे सितारों में अमिताभ बच्चन, वैजयंतीमाला बाली और गोविंदा आदि का नाम लिया जा सकता है। गोविंदा एक बार फिर एकनाथ शिंदे की शिव सेना से जुड़ गए हैं। चर्चा है कि उन्हें मुंबई की किसी लोकसभा सीट से मैदान में उतारा जाएगा।

इससे इतर जिन्होंने सियासत में लंबी पारी खेली या अब भी बने हुए हैं उनमें स्मृति इरानी, हेमा मालिनी, जया बच्चन, मनोज तिवारी, रविकिशन, निरहुआ, शत्रुघ्न सिन्हा, राज बब्बर, सन्नी देओल, किरण खेर, धर्मेंद्र, जयाप्रदा और राजेश सुनील दत्त तथा राजेश खन्ना आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा बांग्ला फिल्मों की अभिनेत्री लॉकेट चटर्जी वर्तमान में भाजपा की सांसद हैं। पार्टी ने दूसरी बार भी उन्हें चुनावी मैदान में उतारा है। तृणमूल कांग्रेस ने पिछली बार अभिनेत्री मिमी चक्रवर्ती और नुसरत जहां को संसद भेजा था। भाजपा ने प्लेबैक सिंगर बाबुल सुप्रियो को आसनसोल से टिकट देकर संसद भेजा। बाद में वे तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये और अभी राज्य में मंत्री हैं। वैसे परेश रावल, मिथुन चक्रवर्ती, प्रकाश राज, पवन कल्याण समेत ढेर सारे फिल्मी सितारे राजनीति में सक्रिय हैं। उर्मिला मातोंडकर व राखी सावंत ने भी राजनीति में कदम रखा लेकिन वह सफल नहीं हो पाईं। 

About the Author: रमेश यादव
रमेश यादव ने राष्ट्रीय और राजनीतिक समाचारों के क्षेत्र में व्यापक लेखन और विश्लेषण किया है। उनके लेख राजनीति के जटिल पहलुओं को सरलता और गहराई से समझाते हैं, जो पाठकों को वर्तमान राजनीतिक घटनाओं और नीतियों की बेहतर समझ प्रदान करते हैं। उनकी विशेषज्ञता सिर्फ सूचनाओं तक सीमित नहीं है; वे अपने अनुभव के आधार पर मार्गदर्शन और प्रासंगिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करते हैं। रमेश यादव की लेखनी तथ्यों पर आधारित और निष्पक्ष होती है, जिससे उन्होंने पत्रकारिता और विश्लेषण के क्षेत्र में अपनी एक मजबूत पहचान बनाई है।

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