विश्व हाथी दिवस : हाथी कभी भूलते नहीं, क्या हमने उन्हें भुला दिया है?
Authored By: अंशु सिंह (वरिष्ठ लेखिका और पत्रकार)
Published On: Monday, August 12, 2024
Updated On: Tuesday, August 13, 2024
आज हाथियों का दिन है यानी विश्व हाथी दिवस (World Elephant Day) है। वर्ष 2012 से लगातार इसे मनाया जा रहा है, ताकि हाथियों के संरक्षण के प्रति जन जागरूकता लाई जा सके। लेकिन जलवायु परिवर्तन के अलावा हाथी दांत की तस्करी के कारण अफ्रीका एवं एशिया के अलावा सवाना के जंगलों में मुख्य रूप से पाए जाने वाले हाथियों की संख्या लगातार घटती जा रही है। भारत में भी स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है। कुछ राज्यों को छोड़ दें, तो हाथियों की गिनती हुई ही नहीं है। ऐसा माना जाता है कि हाथी कभी भूलते नहीं हैं। यह उनकी याददाश्त शक्ति ही है, जो उन्हें अविश्वसनीय रूप से बुद्धिमान एवं पृथ्वी पर सबसे अधिक सामाजिक एवं रचनात्मक जानवरों में से एक बनाती है। लेकिन लगता है कि हम उन्हें भूल गए हैं। उनका जितना ध्यान रखा जाना चाहिए, वह नहीं रख पा रहे हैं।
भारत में तीस हजार से भी कम हाथी
एशियाई हाथियों की एक उप-प्रजाति हैं भारतीय हाथी, जो भारतीय उपमहाद्वीप के मूल निवासी हैं। एशियाई हाथियों की आबादी का लगभग 60% हिस्सा इनका है। इसमें भारत, एशियाई हाथियों की सबसे बड़ी और सबसे स्थिर आबादी का घर रहा है। लेकिन वर्ष1986 से ही IUCN रेड लिस्ट ने भारतीय हाथियों को लुप्तप्राय जीव के रूप में वर्गीकृत कर रखा है। पिछले तीन दशकों में उनकी आबादी में करीब 11 फीसद की गिरावट आई है। वर्ष 2017 की नवीनतम जनगणना में हाथियों की संख्या 29,964 के करीब दर्ज की गई है। इनमें सबसे अधिक हाथी कर्नाटक में, उसके बाद असम में और फिर केरल में हैं। यह स्थिति तब है, जब हाथियों के संरक्षण के लिए देश भर में करीब 31 हाथी रिजर्व हैं। इनमें कर्नाटक में दांडेली हाथी रिजर्व, नागालैंड में सिंगफान हाथी रिजर्व एवं छत्तीसगढ़ में लेमरू हाथी रिजर्व शामिल है। इस प्रकार, भारत के 14 राज्यों में लगभग 76, 508 वर्ग किलोमीटर में हाथी रिजर्व फैले हैं।
जंगल के ‘इंजीनियर’ होते हैं हाथी
आनुवंशिक एवं पारिस्थितिक साक्ष्य के आधार पर हाथियों को दो प्रजातियों में विभाजित किया जाता है- अफ्रीकी एवं एशियाई। अफ्रीकी हाथी उप सहारा के सवाना को पसंद करते हैं, जबकि जंगली हाथी वर्षावनों में रहना पसंद करते हैं। भारत एवं दक्षिण पूर्व एशिया के एशियाई हाथी उष्णकटिबंधीय एवं झाड़ीदार जंगलों के साथ-साथ खुले घास के मैदानों में पाए जाते हैं। हाथियों को जंगल का इंजीनियर कहा जाता है। ये अत्यधिक बुद्धिमान जानवर होते हैं जो जटिल सामाजिक संरचनाएं बनाते हैं। मादा हाथी बुज़ुर्ग मातृसत्तात्मक महिलाओं के नेतृत्व में घनिष्ठ पारिवारिक समूहों में रहती हैं, जबकि नर अकेले रहते हैं। अपने अफ़्रीकी समकक्षों के विपरीत भारतीय हाथियों के कान छोटे, अधिक गोल होते हैं। इनका शरीर भी अधिक सुगठित होता है। एक भारतीय हाथी का जीवनकाल जंगल में औसतन 60 वर्ष एवं कैद में 80 साल होता है। इसके अलावा, हाथियों की एक बड़ी विशेषता है कि वे अपने झुंड के हर सदस्य को जानते हैं। अपने झुंड के सभी साथियों को देखकर या सूंघकर उन्हें पहचान सकते हैं। वे खतरे का संकेत देने वाले विशेष संकेतों को भी याद रखते हैं। इतना ही नहीं, वे उन जीवों को भी याद करते हैं, जिन्होंने उन पर गहरा प्रभाव डाला होता है।
क्यों घट रहे हैं हाथी ?
अधिकांश एशियाई हाथियों को बांस बहुत पसंद हैं। इसलिए वे ऐसे क्षेत्रों में रहना पसंद करते हैं जहां ऊंचे पेड़ हों, ताकि उन्हें अच्छी छाया मिल सके। लेकिन जंगलों के सिकुड़ने एवं इनके कई आवासों को मनुष्यों द्वारा नष्ट किए जाने से वे कई बार भोजन एवं पानी की तलाश में आसपास के गांवों या खेतों में चले जाते हैं। कई बार हमला भी कर देते हैं। वैसे, प्रागैतिहासिक काल से ही हाथियों का इस्तेमाल परिवहन एवं श्रम से जुड़ी गतिविधियों के लिए किया जाता रहा है। आज भी पूरे एशिया में इन्हीं उद्देश्यों के लिए इनका उपयोग किया जाता है। लेकिन मानवीय गतिविधियों ने ही जंगली हाथियों के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। हाथी के दांतों के लिए उनकी हत्या अब भी जारी है।
इस तरह, हम कह सकते हैं कि हाथियों के समक्ष आने वाले प्रमुख खतरों में मानव आबादी के अत्यधिक विस्तार के कारण हो रहा विखंडन, क्षरण एवं आवास का नुकसान शामिल है। जलविद्युत परियोजनाओं एवं जलाशयों के निर्माण के कारण हाथियों की आवाजाही जंगलों के विभिन्न हिस्सों में प्रतिबंधित-सी हो गई है। आमतौर पर हाथी जाने-पहचाने रास्तों पर चलना पसंद करते हैं। लेकिन रास्तों पर प्रतिबंध उन्हें भटकने पर मजबूर कर देता है। इतना ही नहीं, पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा हाथी ट्रेन दुर्घटना के शिकार होते हैं। यहां मानव-हाथी के बीच का संघर्ष सबसे ज्यादा देखा जाता है।
हाथियों के संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट एलीफेंट
जानकारी के अनुसार, एशिया के सभी जंगली हाथियों में से 50 से 60 फीसदी हाथी भारत में पाए जाते हैं। जबकि 20 फीसद पालतू हाथियों का घर भारत है। भारतीय हाथी उत्तरी एवं मध्य भारत के शुष्क पर्णपाती जंगलों में पाए जाते हैं। इसके अलावा, उत्तर-पूर्व भारत के घने जंगलों में इनकी अच्छी संख्या है। दक्षिण की बात करें, तो पश्चिमी घाट एवं केरल के उद्यानों के अलावा कान्हा, कॉर्बेट, जलदापारा, पेरियार, रणथंभौर, नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व में हाथियों को देखा जा सकता है। वर्ष 1992 में भारत सरकार ने जंगली एशियाई हाथियों की सुरक्षा एवं संवर्धन के लिए ‘प्रोजेक्ट एलीफेंट’ (Project Elephant) की शुरुआत की थी। इसका मुख्य उद्देश्य विज्ञान का उपयोग करके हाथियों की सुरक्षा के लिए स्मार्ट योजनाएं बनाना एवं उनका प्रचार करना था। साथ ही साथ, हाथी दांत की अवैध खरीद-फरोख्त एवं हाथियों के शिकार को रोकना था। इसके अलावा, हाथी गलियारों की सुरक्षा करना एवं उनके प्राकृतिक आवासों को उन्हें वापस लौटाना था। प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन उन्हें और गति दिए जाने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री ने की सामुदायिक प्रयासों की सराहना
World Elephant Day is an occasion to appreciate the wide range of community efforts to protect elephants. At the same time, we reaffirm our commitment to doing everything possible to ensure elephants get a conducive habitat where they can thrive. For us in India, the elephant is… pic.twitter.com/yAW5riOrT1
— Narendra Modi (@narendramodi) August 12, 2024
इस बीच, विश्व हाथी दिवस (World Elephant Day) के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट कर हाथियों के संरक्षण पर केंद्रित व्यापक सामुदायिक पहल की प्रशंसा की है। उन्होंने हाथियों के पनपने के लिए उपयुक्त आवास उपलब्ध कराने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि भी की। अपने पोस्ट में उन्होंने हाथियों के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी आबादी में हाल ही में हुई वृद्धि का उल्लेख किया है। प्रधानमंत्री ने लिखा है, ‘ विश्व हाथी दिवस हाथियों की रक्षा के लिए सामुदायिक प्रयासों की व्यापक श्रृंखला की सराहना करने का अवसर है। साथ ही हम हाथियों को एक अनुकूल आवास प्रदान करने के लिए हर संभव प्रयास करने की अपनी प्रतिबद्धता की फिर से पुष्टि करते हैं। भारत में हाथी हमारी संस्कृति और इतिहास से भी जुड़े हुए हैं। यह खुशी की बात है कि पिछले कुछ वर्षों में संख्या में वृद्धि हुई है।’
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