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पेरिस पैरालिंपिक-2024 मोटिवेशन के लिविंग लीजेंड्स
पेरिस पैरालिंपिक-2024 मोटिवेशन के लिविंग लीजेंड्स
Authored By: अनुराग श्रीवास्तव
Published On: Friday, September 6, 2024
Updated On: Wednesday, January 22, 2025
देश में खेल संस्कृति किस तरह खिलखिला रही है, इसका ताजा प्रमाण पेरिस में चल रहे पैरालिंपिक में हमारे खिलाड़ियों द्वारा जीते जा रहे पदक हैं। दिव्यांग खिलाड़ियों ने अपने हौसले से सबका ध्यान खींचा है...
Authored By: अनुराग श्रीवास्तव
Updated On: Wednesday, January 22, 2025
हाइलाइट्स
- देश में खिलखिला रही है खेल संस्कृति
- 4 गोल्ड सहित 22 तक पहुंचा पदकों का आंकड़ा
एक समय था, देश में किसी शारीरिक अक्षमता से ग्रस्त लोगों को इस प्रकार के संबोधन से दो-चार होना पड़ता था जो उनकी कमी पर ही केंद्रित होते थे। अब वे दिव्यांग कहे जाते हैं। सिर्फ कहे ही नहीं जाते, बल्कि खेल के मैदान पर वे अपने प्रदर्शन से इस नाम को सार्थक भी कर रहे हैं। पेरिस पैरालिंपिक इसका ताजतरीन उदाहरण हैं। अभी खेल बाकी हैं और भारत ने चार सिंतबर तक 22 पदक जीत लिए थे जो उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। 2012 में लंदन पैरालिंपिक से आरंभ हुई यह यात्रा महज 12 साल में एक से 22 पदक तक पहुंच चुकी है। पेरिस ओलिंपिक में जो थोड़ी कसक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की रह गई थी, वह हमारे दिव्यांग खिलाड़ियों ने न केवल पूरी कर दी है बल्कि दिखाया है कि भारत में खेल संस्कृति एक नए रूप में खिलखिला रही है।
हमारे पेरिस पैरालिंपिक (Paris Paralympics) के खिलाड़ी मोटिवेशन की जीती जागती मिसाल हैं। जरा सी चोट लगने पर असहाय महसूस करने वाली सोच के बीच ये खिलाड़ी हमें बता रहे हैं कि जीवन चलने ही नहीं, दौड़ने का भी नाम है। किसी का एक पांव नहीं है और वह हाई जंप में पदक जीत रहा है। किसी का एक हाथ नहीं है, वह लांग जंप में नई दूरी तय कर रहा है। शीतल देवी का तो कहना ही क्या…दोनों हाथ नहीं हैं इस बालिका के, लेकिन खेल चुना तीरंदाजी। चुना ही नहीं, पैरालिंपिक के सबसे बड़े मंच तक पहुंचीं और पहुंचीं ही नहीं, पदक भी जीता। पैरों से कमान खींचना…कभी कल्पना की है आपने…क्या आत्मविश्वास है। कभी आपको इनके चेहरे पर निराशा नहीं दिखेगी। बस हमेशा लक्ष्य की ओर अग्रसर। सीखने की जरूरत है हमें इनसे। जीवटता इन्हें रोज सुबह-शाम सलाम करने आती है। केवल शीतल ही नहीं, पैरालिंपिक के हर पदक विजेता भारतीय की कहानी जीवन के वे पाठ पढ़ाती है जो किसी किताब में कभी लिखे ही नहीं जा सकते हैं।
#पेरिस_पैरालिंपिक: धरमबीर ने पुरुषों के क्लब थ्रो #F51 में नए एशियाई रिकॉर्ड के साथ जीता #स्वर्ण_पदक। प्रणव को मिला #रजत_पदक।#Paralympics2024 #Paris2024#ParisParalympics2024 #ParalympicChampions @NBCOlympics @IndianOlympians @pranavsoorma pic.twitter.com/3jf50KiefD
— Galgotias Times (@galgotiastimes) September 5, 2024
कुछ खिलाड़ियों ने तो टोक्यो में भी पदक जीते और अब पेरिस में भी। इनमें अवनी लखेरा, मरियप्पन थंगावेलु, सुमित अंतिल, सुहाल एल यथिराज, सुंदर सिंह गुर्जर, मनीष नरवाल, योगेश कथूनिया, शरद कुमार और निशाद कुमार हैं। 400 मीटर रेस में ब्रांज मेडल जीतने वाली दीप्ति जीवनजी हों या राजस्थान के सुंदर सिंह गुर्जर…न तो इच्छाशक्ति की कमी है न प्रयास की। थंगावेलु को हाई जंप करते हुए देखिए, सफलता के आसमां तक छलांग लगाने के लिए किसी और मोटिवेशन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। तीन पैरालिंपिक में मेडल जीते हैं बंदे ने और इतिहास रचा है। सुमित अंतिल उसी हरियाणा से आते हैं जहां से डबल ओलिंपिक मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा हैं। स्टारडम सुमित का भी उसी स्तर पर है अब। जब वह जेवलिन लेकर ट्रैक पर दौड़ते हैं तो प्रशंसकों को विश्वास होता है कि यह सबसे दूर ही गिरेगा। इस बार फाइनल में सुमित और बाकी प्रतिस्पर्धियों के फेंके जेवलिन के बीच का अंतर पूरी कहानी साफ कहता है। सुहास यथिराज बैडमिंटन कोर्ट पर कमाल करते हैं। हरविंदर सिंह ने सारी मुश्किलों को किनारे करते हुए भारत को पैरालिंपिक में तीरंदाजी का पहला सोना दिला दिया है। सचिन खिलारी तो गजब के खिलाड़ी हैं। मैकेनिकल इंजीनियर हैं, यूपीएससी की कोचिंग पढ़ाते हैं और पेरिस में शाटपुट का सिल्वर जीत लिया। शरद कुमार की हाईजंप किसी भी निराश व्यक्ति को सकारात्मकता से भर सकती है। अवनी लखेरा भले ही व्हीलचेयर पर हों, लेकिन सफलता सातवें आसमान पर है। तीन पदक जीते हैं पैरालिंपिक में, सारी निराशा को दूर करते हुए। दीप्ति जीवनजी के माता-पिता ने उन्हें खिलाड़ी बनाने के लिए जमीन बेच दी थी। अब दीप्ति ने जमीन खरीदकर उन्हें तोहफा दिया है।
एक और संदेश देती है इन पदक विजेताओं की कहानी…जब क्षमता, संकल्प और सुविधा का संगम होता है तो परिणाम सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के रूप में सामने आता है। बदलते भारत में खेल परिदृश्य भी बदला है। सुविधाएं अब खिलाड़ियों तक बेहतर ढंग से पहुंच रही हैं। सामान्य खिलाड़ियों की तरह पैरालंपियंस के लिए भी भारत सरकार ने खेल सुविधाओं और प्रशिक्षण के लिए बेहतरीन व्यवस्था कर रखी है। किसी भी खिलाड़ी को यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करना है तो उसके पास विदेश की परिस्थितियों में खेलने का अनुभव भी होना चाहिए। पेरिस पैरालिंपिक में हमारे 84 खिलाड़ी गए हैं। भारत सरकार ने सुनिश्चित किया है कि उन्हें खेल योजनाओं का पूरा लाभ मिले। विदेश में सीखने-खेलने का अनुभव मिले और खेल की बारीकियां व नई तकनीक से परिचित कराने के लिए सक्षम विदेशी कोच भी मिलें। जब सुविधाएं मिलीं तो मन बल के धनी इन खिलाड़ियों ने पूरे मनोयोग से सीखा, समझा और अब पेरिस में दिखा भी दिया कि बुनियादी ढांचा सही हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं। अभी तक भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन टोक्यो पैरालंपिक में रहा है-19 पदक का। तब उनकी तैयारी पर सरकार ने 26 करोड़ रुपये खर्च किए। पेरिस के लिए चार साल की अवधि में करीब तीन गुना 74 करोड़ रुपये खिलाड़ियों पर खर्च किए गए हैं। खिलाड़ियों ने भी इसे सार्थक साबित किया है। यह लेख लिखे जाने तक भारत के खाते में 22 पदक आ चुके थे जिनमें चार गोल्ड और आठ सिल्वर हैं। अभी यह संख्या और बढ़ेगी।कितनी सुनाएं, क्या-क्या बताएं, इतनी कहानियां हैं हमारे इन पैरालंपियंस में…फिर आएंगे, फिर आपको सुनाएंगे कुछ और रोचक, कुछ और प्रेरक कहानी..
पेरिस ओलंपिक 2024 पदक तालिका
Rank | Country | Total | |||
---|---|---|---|---|---|
1 | USA | 27 | 35 | 32 | 94 |
2 | CHN | 25 | 23 | 17 | 65 |
3 | AUS | 18 | 13 | 11 | 42 |
4 | FRA | 13 | 17 | 21 | 51 |
5 | GBR | 12 | 17 | 20 | 49 |
6 | KOR | 12 | 8 | 7 | 27 |
7 | JPN | 12 | 7 | 13 | 32 |
8 | NED | 10 | 5 | 6 | 21 |
9 | ITA | 9 | 10 | 9 | 28 |
10 | GER | 8 | 5 | 5 | 18 |
33 | IND | 0 | 0 | 3 | 3 |