Special Coverage
Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti 2025: सच्चे देशभक्त और कर्मयोगी थे छत्रपति शिवाजी महाराज
Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti 2025: सच्चे देशभक्त और कर्मयोगी थे छत्रपति शिवाजी महाराज
Authored By: स्मिता
Published On: Friday, February 14, 2025
Updated On: Friday, February 14, 2025
Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti 2025: छत्रपति शिवाजी महाराज एक सच्चे देशभक्त और आध्यात्मिक पुरुष थे. उन्होंने अदम्य साहस के साथ मुगल शासकों का विरोध किया और 17वीं सदी के भारत में मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी। देश भर में 19 फरवरी को उनकी जयंती मनाई जा रही है.
Authored By: स्मिता
Updated On: Friday, February 14, 2025
छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti ) के अदम्य साहस और देशभक्ति के किस्से भारत भर में मशहूर हैं. उन्होंने मुग़ल साम्राज्य का दमदार तरीके से विरोध किया था और अपने राज्य की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए अपने जान की बाजी लगाने से भी नहीं चूके. वे सभी धर्म के प्रति समभाव रखते थे. उन्हें हिंदू धर्म के प्रति भी अगाध आस्था थी. उनका जन्म 19 फरवरी, 1630 को शिवनेर, पूना(अब पुणे) में हुई थी. उनकी मृत्यु 3 अप्रैल, 1680 को रायगढ़ (छतीसगढ़) में हुई थी. वे देश सेवा के लिए किए जाने वाले कर्म को ही सच्ची पूजा (Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti 2025) मानते थे.
शिवाजी का साहस (Shivaji Maharaj Bravery)
शिवाजी की पैतृक जागीरें बीजापुर के सुल्तानों के राज्य में दक्कन में स्थित थीं. शिवाजी के जन्म के समय 1630 में भारत मुस्लिम शासन के अधीन था. उत्तर में मुगल और दक्षिण में बीजापुर और गोलकुंडा के मुस्लिम सुल्तान. शिवाजी ने बादशाहों के उत्पीड़न और हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को असहनीय पाया. इसलिए वे 16 वर्ष के होने पर ही उन्होंने मुस्लिम शासकों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. शिवाजी के अदम्य साहस और बेहतरीन सैन्य कौशल की देश भर में बहुत प्रशंसा होने लगी.
आम लोगों के बीच लोकप्रिय शिवाजी (Chhatrapati Shivaji Maharaj Popularity)
वर्ष 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के साथ मराठा साम्राज्य अस्तित्व में आया. मराठा साम्राज्य का दक्षिण एशिया के एक बड़े भाग पर प्रभुत्व था. वर्ष 1761 में पानीपत के तृतीय युद्ध के साथ यह राज्य क्रमशः अवनति को प्राप्त हुआ. शिवाजी एक लोकप्रिय सम्राट थे, जो अपने राज्य के प्रशासनिक मामलों पर कड़ी नज़र रखते थे. सारी शक्तियां उन पर केंद्रित थीं, लेकिन वे अपने मंत्रियों की सलाह से शासन करते थे. आम लोग उन्हें बहुत श्रद्धा से देखते थे और उन्हें अपना सबसे बड़ा शुभचिंतक मानते थे।
संत तुकाराम थे छत्रपति शिवाजी महाराज के पूज्य गुरु (Saint Tukaram revered guru)
शिवाजी महाराज को धर्म और अध्यात्म के प्रति गहरी आस्था थी. उनके बारे में एक कहानी मशहूर है कि एक बार छत्रपति शिवाजी महाराज ने सुना कि उनके पूज्य गुरु संत तुकारामजी महाराज भजन और कीर्तन कर रहे हैं. अपने दो वफादार सैनिकों के साथ वे दिव्य हरिनाम जप में लीन होने के लिए मंदिर पहुंचे. उनके दुश्मनों को उनकी उपस्थिति का पता चल गया और उन्होंने उन्हें पकड़ने की साजिश रचते हुए इलाके को घेर लिया. जब उनके सैनिकों ने उन्हें खतरे के बारे में बताया, तो शिवाजी महाराज शांत बने रहे और अपने गुरु पर पूरा भरोसा रखा. संत तुकारामजी बिना विचलित हुए विट्ठलजी की भावपूर्ण स्तुति जारी रखी. शत्रुओं ने मंदिर के हर कोने की तलाशी ली, लेकिन उन्हें केवल संत तुकारामजी (Saint Tukaram) ही भजन में लीन दिखाई दिए, जबकि शिवाजी महाराज मौजूद होने के बावजूद उनके लिए अदृश्य रहे. तुकारामजी से उन्हें अदृश्य सुरक्षा कवच मिल गया था. शत्रुओं को लगा कि उन्हें गलत सूचना मिली है, इसलिए वे उस क्षेत्र से चले गए. यह घटना उनकी अटूट भक्ति की शक्ति को दर्शाता है.
प्रेरक है छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन (Chhatrapati Shivaji Maharaj Inspirational Life)
शिवाजी महाराज (Shivaji Maharaj ) की संत तुकारामजी और माता भवानी में उनकी गहरी आस्था थी. इस बात के कई उदाहरण मिलते हैं कि वे भक्ति की शक्ति और अपनी दृढ इच्छाशक्ति के बल पर कठिन से कठिन चुनौतियों पर भी विजय प्राप्त की. वे खुद को अपने गुरु का दास मानते थे. उनकी विनम्रता के किस्से आज भी आम जन बड़े चाव के साथ सुनाते हैं. आस्तिक होने के साथ-साथ शिवाजी सच्चे कर्मयोगी थे. वे दिन-रात अपने राज्य की सुरक्षा के लिए चिंतित रहते और उसके लिए प्रयास करते रहते थे.