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कौन-सी चार बातें करती हैं व्यक्ति का विकास और आंतरिक उत्थान करने में मदद
कौन-सी चार बातें करती हैं व्यक्ति का विकास और आंतरिक उत्थान करने में मदद
Authored By: स्मिता
Published On: Wednesday, June 18, 2025
Last Updated On: Wednesday, June 18, 2025
आचार्य श्रीराम शर्मा ने कहा है कि व्यक्ति का विकास और आंतरिक उत्थान के लिए चार बातों को ध्यान में रखना होगा. ये चार बातें हैं-साधना, स्वाध्याय, संयम और सेवा. ये चारों आत्मोत्कर्ष के साथ-साथ व्यक्तित्व का भी विकास करते हैं.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Wednesday, June 18, 2025
आचार्य श्रीराम शर्मा के अनुसार, मनुष्य के सामने असंख्य समस्याएं हैं. उन असंख्य समस्याओं का समाधान केवल इस बात पर टिका हुआ है कि हमारी आंतरिक स्थिति सही बना दी जाए। दृष्टिकोण हमारा गलत होता है, तो हमारे क्रियाकलाप भी गलत होते हैं. गलत क्रियाकलापों के परिणामस्वरूप जो प्रतिक्रिया होती है और जो परिणाम सामने आते हैं, वे भयंकर दुखदायी होते हैं. वे कष्टकारक होते हैं. कष्टकारक परिस्थितियों के निवारण करने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य का चिंतन और शिक्षण बदल दिया जाए, परिष्कृत कर दिया जाए. व्यक्ति का आंतरिक उत्थान, आंतरिक उत्कर्ष और आत्मिक विकास के लिए हमें चार बातें तलाश करनी पड़ती हैं. वे चार हैं-साधना, स्वाध्याय, संयम और सेवा. ये चारों आत्मोत्कर्ष के साथ-साथ व्यक्तित्व का भी उत्थान करते हैं.
जुड़े हुए हैं साधना, स्वाध्याय, संयम और सेवा (Sadhana, Self Study, Self Restraint and Service are connected)
साधना, स्वाध्याय, संयम और सेवा में से एक भी ऐसा नहीं है, जिसके बिना हमारे जीवन का उत्थान हो सके. चारों आपस में अविच्छिन्न रूप से जुड़े हुए हैं. उपासना और साधना -इन दोनों को मिलाकर एक पूरी चीज बनती है. उपासना का अर्थ है-भगवान पर विश्वास, भगवान की समीपता. उपासना माने भगवान के पास बैठना, नजदीक बैठना. इसका मतलब यह हुआ कि उसकी विशेषताएं हम अपने जीवन में धारण करें. जैसे आग के पास हम बैठते हैं, तो आग की गर्मी से हमारे कपड़े, हाथ गरम हो जाते हैं, शरीर गरम हो जाता है. पास बैठने का यही लाभ हो ना चाहिए.
ईश्वर के जाएं नजदीक (Get Closer to God)
बर्फ के पास बैठते हैं, ठंडक में बैठते हैं तो हमारे हाथ ठंडे हो जाते हैं, कपड़े ठंडे हो जाते हैं. पानी में बर्फ डालते हैं तो पानी ठंडा हो जाता है. ठंडक के नजदीक जाने से हमें ठंडक मिलनी चाहिए. चंदन के समीप उगने वाले पौधे सुगंधित हो जाते हैं, उसकी समीपता की वजह से. यही समीपता वास्तविक है. उपासना का अर्थ यह है कि हम भगवान का भजन करें, नाम लें, जप करें, ध्यान करें, पर साथ-साथ हम इस बात के लिए भी कोशिश करें कि हम ईश्वर के नजदीक आते जाएं. भगवान हमारे में समाविष्ट होते जाएं और हम भगवान में समाविष्ट होते जाएं अर्थात दोनों एक हो जाएं. एक होने से मतलब यह है कि दोनों की इच्छायें, दोनों की गतिविधियां, दोनों की क्रिया-पद्धति, दोनों के दृष्टिकोण एक जैसे रहें.
ईश्वर जैसा बनने का प्रयत्न करें
हमको ईश्वर जैसा बनने का प्रयत्न करना चाहिए. ईश्वर जैसे बनें न कि ईश्वर पर हुकुम चलायें. उनको यह आदेश दें कि आपको ऐसा करना चाहिए. आपको किसी भी हालत में हमारी मांगें पूरी करनी चाहिए. उपासना का तात्पर्य अपनी
मनोभूमि को इस लायक बनाना है कि हम भगवान् के आज्ञानुवर्ती बन सकें. उनके संकेतों के इशारे पर अपनी विचारणा और क्रियापद्धति को ढाल सकें. उपासना-भजन इसीलिए किया जाता है.
साधना का अर्थ (Meaning of Sadhana)
साधना का अर्थ है अपने गुण, कर्म, स्वभाव को साध लेना. वस्तुतः मनुष्य चौरासी लाख योनियों में घूमते-घूमते उन सारे प्राणियों के कुसंस्कार अपने भीतर जमा करके ले आया है, जो मनुष्य जीवन के लिए आवश्यक नहीं हैं, बल्कि हानिकारक हैं, तो भी स्वभाव के अंग बन गए हैं. हम मनुष्य होते हुए भी पशु संस्कारों से प्रेरित रहते हैं और पशु प्रवृत्तियों को बहुधा अपने जीवन में कार्यान्वित करते रहते हैं. इस अनगढ़पन को ठीक कर लेना, सुगढ़पन का अपने भीतर विकास कर लेना, जिसको हम मानवोचित कह सकें साधना है.
साधना के लिए क्रियाकलाप (Activities for Sadhana)
साधना के लिए हमको वही क्रियाकलाप अपनाने पड़ते हैं, जो कि एक कुसंस्कारी घोड़े या बैल को सुधारने के लिए उसके मालिकों को करने पड़ते हैं. इसी तरह के प्रयत्न हमको अपने गुण, कर्म, स्वभाव के विकास परिष्कार के लिए करने चाहिए. कच्ची धातुओं को जिस तरीके से आग में तपा करके उनको शुद्ध परिष्कृत बनाया जाता है, उसी तरीके से हमारा कुसंस्कारी जीवन को ढाल करके ऐसा सभ्य और ऐसा सुसंस्कृत बनाया जाए कि हम ढली हुई धातु के आभूषण के तरीके से अथवा औजार-हथियार के तरीके से दिखाई पड़ें.
आत्म निरीक्षण का महत्व (Importance of Self Inspection)
इसके लिए हमें नित्य आत्म निरीक्षण करना चाहिए. अपनी गलतियों पर गौर करना चाहिए. उनको सुधारने के लिए आगे बढ़ना चाहिए. जो कमियां हमारे स्वभाव के अंदर हैं, उन्हें दूर करने के लिए जुटे रहना चाहिए. इसी तरह स्वाध्याय, संयम और सेवा के लिए भी हमें प्रयत्नशील होना चाहिए.
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