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Devshayani Ekadashi 2025: जानें शुभ मुहूर्त, अनुष्ठान और देवशयनी एकादशी की कथा
Devshayani Ekadashi 2025: जानें शुभ मुहूर्त, अनुष्ठान और देवशयनी एकादशी की कथा
Authored By: स्मिता
Published On: Friday, June 13, 2025
Last Updated On: Friday, June 13, 2025
Devshayani Ekadashi 2025 : चातुर्मास की शुरुआत का प्रतीक है देवशयनी एकादशी. यह भक्ति, उपवास और आत्म-अनुशासन के पवित्र 4 महीने की अवधि के लिए संकल्प लेने की एकादशी है. इस तिथि पर भगवान विष्णु शयन करना प्रारंभ करते हैं. जानें देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, अनुष्ठान और कथा.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Friday, June 13, 2025
देवशयनी एकादशी चतुर्मास की शुरुआत का प्रतीक है, जो भक्ति और अनुशासन की शुरुआत का समय है. देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में प्रवेश करते हैं. इस क्षण से ब्रह्मांड की जिम्मेदारी अगले चार महीनों के लिए शिवजी और अन्य देवताओं पर हो ती है। यह आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण अवधि है. इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश समारोह और भूमि पूजन जैसे शुभ कार्य (Devshayani Ekadashi 2025) नहीं किए जाते हैं.
देवशयनी एकादशी 2025 तिथि और समय (Devshayani Ekadashi 2025 Date & Time)
देवशयनी एकादशी : 6 जुलाई 2025 भारतीय पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 5 जुलाई 2025 को शाम 6:58 बजे शुरू होगी. यह 6 जुलाई 2025 को रात 9:14 बजे समाप्त होगी. 6 जुलाई को सूर्योदय एकादशी तिथि के भीतर आता है, इसलिए देवशयनी एकादशी का व्रत 6 जुलाई 2025 को रखा जाएगा.
देवशयनी एकादशी और चातुर्मास का महत्व (Devshayani Ekadashi Religious Importance)
इस दिन, ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और ब्रह्मांड का संचालन शिवजी संभालते हैं. श्रीविष्णु जी का विश्राम काल, जिसे चातुर्मास के रूप में जाना जाता है, 6 जुलाई से शुरू होता है और 1 नवंबर 2025 को देवउठनी एकादशी तक जारी रहता है.
आध्यात्मिक महत्व (Devshayani Ekadashi Spiritual Significance)
चातुर्मास को तपस्या, उपवास, ध्यान और आत्मसंयम का समय माना जाता है. इसलिए इसकी शुरुआत देवशयनी एकादशी से कर देना चाहिए. इस अवधि के दौरान विलासिता, उत्सव और भोग-विलास से दूर रहने की सलाह दी जाती है, क्योंकि ध्यान आंतरिक चिंतन और आध्यात्मिक विकास की ओर उन्मुख रहना चाहिए.
देवशयनी एकादशी के अनुष्ठान (Devshayani Ekadashi Rituals)
देवशयनी एकादशी के अनुष्ठानों में आम तौर पर उपवास, प्रार्थना और भक्ति जैसी धार्मिक गतिविधि की जाती हैं. ये सारे कार्य भगवान विष्णु का सम्मान करने और चतुर्मास की चार महीने की अवधि के दौरान उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं. भक्त सख्त उपवास रखते हैं, आमतौर पर अनाज और कुछ खाद्य पदार्थों से परहेज किया जाता है. फल या दूध और दूध से तैयार सामग्री का सेवन किया जाता है. भक्तगण पूरे दिन प्रार्थना, विष्णु सहस्रनाम का जाप और ध्यान करते हैं. श्रीविष्णु जी के विग्रह के समक्ष फूल, फल और मिठाई अर्पित की जाती है और दीपक जलाए जाते हैं.
देवशयनी एकादशी की कथा (Devshayani Ekadashi Katha)
सत्य युग में राजा मांधाता के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण अकाल पड़ गया. प्रजा परेशान थी, लेकिन राजा ने अपने धर्म के अनुसार राज्य चलाया. ऋषि अंगिरा ने अकाल खत्म करने के लिए तपस्या कर रहे एक व्यक्ति को मारने की सलाह दी. राजा ने नहीं माना. फिर ऋषि अंगिरा ने राजा को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी. राजा ने एकादशी का व्रत रखा, जिससे वर्षा हुई और अकाल समाप्त हो गया. दूसरी ओर राजा बलि ने भगवान विष्णु से पाताल में निवास करने का वरदान मांगा, जिसे भगवान ने स्वीकार कर लिया. भगवान विष्णु के पाताल चले जाने के बाद माता लक्ष्मी राजा बलि के पास गईं और उनसे भगवान को वापस लाने का वचन लिया. यह कथा हमें धर्म और कर्तव्य पालन करने का महत्व भी सिखाती है.
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