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खरमास 2024: दान से नकारात्मक ऊर्जा और शांति मिलती है
खरमास 2024: दान से नकारात्मक ऊर्जा और शांति मिलती है
Authored By: स्मिता
Published On: Wednesday, December 18, 2024
Updated On: Wednesday, December 18, 2024
यह ब्रह्मांडीय बदलाव भगवान विष्णु को एक शांत अवस्था योग निद्रा में ले जाता है। यह आध्यात्मिक विकास और परमार्थ के कार्य करने का समय है। इस दौरान चिंतन, दान और दूसरों की सेवा प्रमुख रूप से करना चाहिए। इससे आशीर्वाद और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं।
Authored By: स्मिता
Updated On: Wednesday, December 18, 2024
धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण अवधि खरमास 15 दिसंबर 2024 से शुरू होकर 13 जनवरी 2025 तक रहेगी। इस दौरान सूर्य धनु राशि में गोचर करते हैं। इस कारण शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। ज्योतिष इस अवधि (Kharmas 2024) में लोगों से प्रार्थना, उपवास और दान जैसी आध्यात्मिक गतिविधियों में संलग्न होने के लिए कहते हैं।
प्रकृति के साथ-साथ हम इंसानों का जीवन भी सूर्य से प्रभावित होता है। यदि हम ज्योतिष की बात करें, तो हमारी राशि भी सूर्य के गतिमान होने पर प्रभावित होती है। ज्योतिषशास्त्री डॉ. अनिल शास्त्री के अनुसार, आत्मा के कारक हैं सूर्य। सूर्य देव के गुरु की राशि से जब धनु या मीन में गोचर करते हैं, तो खरमास लग जाता है। दरअसल, सूर्य देव के धनु राशि में गोचर करने या सूर्य के समीप होने से गुरु का प्रभाव क्षीण या शून्य हो जाता है। इसलिए खरमास (Kharmas 2024) लगता है। शुभ कार्य करने के लिए गुरु का उदय होना अनिवार्य है।
कितनी अवधि तक रहेगा खरमास (Kharmas 2024 Date)
ज्योतिषशास्त्री डॉ. अनिल शास्त्री बताते हैं, ‘खरमास 15 दिसंबर 2024 से शुरू हो गया है। इसकी अवधि 13 जनवरी 2025 तक रहेगी। खरमास को अशुभ समय माना जाता है। इस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जा सकता है। विवाह, सगाई, नया व्यापार आरंभ करना, मुंडन आदि शुभ कार्य एक महीने की इस अवधि में बंद (Kharmas Do’s and Don’ts) रहेंगे। जब सूर्य धनु या मीन राशि से निकल कर मकर में प्रवेश (मकर संक्रांति) करेंगे, तो फिर से मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। इस अवधि के दौरान सबसे अधिक ईश्वर की प्रार्थना-उपासना करनी चाहिए।‘
श्री विष्णु के योगनिद्रा का समय ( Shree Vishnu Yoga Nidra)
यह गहन आध्यात्मिक अनुष्ठान, धर्मार्थ दान और निस्वार्थ सेवा का महीना है। इस पवित्र समय के दौरान सूर्य विशिष्ट राशियों में संक्रमण करते हैं। इससे एक ऐसा समय बनता है जब विवाह या गृह प्रवेश जैसे शुभ समारोह स्थगित कर दिए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह ब्रह्मांडीय बदलाव भगवान विष्णु को एक शांत अवस्था योग निद्रा में ले जाता है। यह आध्यात्मिक विकास और परमार्थ के कार्य करने का समय है। इस दौरान चिंतन, दान और दूसरों की सेवा प्रमुख रूप से करना चाहिए। इससे आशीर्वाद और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं।
खरमास का आध्यात्मिक महत्व (Kharmas spiritual Significance)
डॉ. अनिल शास्त्री के अनुसार, हिंदी कैलेंडर में एक अतिरिक्त चंद्र माह होता है। इसलिए यह लगभग हर तीन साल में एक बार आता है। यह परिवर्तन आध्यात्मिक महत्व रखता है। सांसारिक उत्सवों से भरे नियमित महीनों के विपरीत यह आध्यात्मिक खोज पर ध्यान केंद्रित करता है। भक्ति और दान से स्वयं और दूसरे लोगों में भी सकारात्मक परिवर्तन होते हैं। खरमास के दौरान सूर्य 15 दिसंबर को धनु राशि में प्रवेश कर गए। 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे। इसलिए इसे मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। आत्मनिरीक्षण और ईश्वरीय कृपा दान-पुण्य करने की प्रेरणा देता है।
क्या है पौराणिक कहानी (Kharmas Mythological Story)
हिंदू पौराणिक कथाओं में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भगवान सूर्य ब्रह्मांड में सात घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथ पर सवार होते हैं। उन्हें कभी रुकने की अनुमति नहीं है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अगर वे रुक गए तो पृथ्वी पर सभी जीवन समाप्त हो जाएगा। यह माना जाता है कि उनकी निरंतर यात्रा के कारण घोड़े थक जाते हैं। वे प्यासे हो जाते हैं। जब सूर्य उनकी हालत देखने लगते हैं, तो उनका दिल नरम हो जाता है। वे उन्हें आराम के लिए तालाब की ओर ले जाते हैं। वह अपने रथ को दो गधों से बांध देते हैं। गधों की धीमी गति के कारण रथ धीमी गति से चलता है। इस तरह सूर्य अपना एक महीने का चक्र पूरा कर लेते हैं। इस बीच घोड़े आराम कर लेते हैं। इस अवधि को खरमास या मलमास कहा जाता है।
खरमास के दौरान दान का है विशेष महत्व (Donation significance in Kharmas)
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार, खरमास के दौरान किए गए दान का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। इससे दाता की आत्मा समृद्ध होती है। इस दौरान भगवद गीता या विष्णु सहस्रनाम जैसे पवित्र ग्रंथों को पढ़ने से आध्यात्मिक संकल्प मजबूत होता है और चुनौतियों पर काबू पाने में मदद मिलती है। कई भक्त मन और शरीर को शुद्ध करने के साधन के रूप में उपवास करते हैं। कुछ खाद्य पदार्थों से परहेज करते हैं और गहन आध्यात्मिक अभ्यास करते हैं। माना जाता है कि इस पवित्र महीने में दान करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है, आत्मा शुद्ध होती है और शांति और समृद्धि आती है। यह साल में एक बार नहीं बल्कि दो बार आता है, जो दिसंबर-जनवरी और मार्च-अप्रैल में होता है।