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शक्ति, साहस और वीरता प्राप्त करने के लिए कार्तिकेय की पूजा
शक्ति, साहस और वीरता प्राप्त करने के लिए कार्तिकेय की पूजा
Authored By: स्मिता
Published On: Friday, May 2, 2025
Last Updated On: Friday, May 2, 2025
Lord Kartikey : दक्षिण भारत में विशिष्ट रूप से पूजे जाने वाले भगवान कार्तिकेय दस सर्वश्रेष्ठ हिंदू देवताओं में से एक माने जाते हैं. देवताओं के सेनापति माने जाने वाले कार्तिकेय की पूजा शक्ति, साहस और वीरता प्राप्त करने के लिए की जाती है.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Friday, May 2, 2025
Lord Kartikeya : भगवान कार्तिकेय देवताओं के सेनापति माने जाते हैं. देवताओं ने ज्यादातर युद्ध कार्तिकेय के नेतृत्व में जीता है. दक्षिण भारत में कार्तिकेय की विशेष पूजा की जाती है. कार्तिकेय भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र है. भगवान कार्तिकेय के भक्त उन्हें स्कंद कुमार, षडानन, पार्वतीनंदन, शिवसुत और गौरी पुत्र जैसे नामों से भी पुकारते हैं. भगवान कार्तिकेय की पूजा शक्ति, साहस और वीरता प्राप्त करने के लिए की जाती है. उनकी कृपा से नेतृत्व क्षमता, सैन्य साहस और दिशा-निर्देशन की शक्ति प्राप्त होती है.
भगवान कार्तिकेय की उत्पत्ति
हिंदू मान्यताओं के अनुसार बचपन में भगवान कार्तिकेय का पालन-पोषण सप्तऋषियों की पत्नियों ने किया था. उन्हें कृत्तिका के नाम से जाना जाता है. कृत्तिका द्वारा पालन-पोषण किए जाने के कारण वे कार्तिकेय के नाम से प्रसिद्ध हुए.
सुंदर एवं सुकुमार राजन
स्कंद पुराण के अनुसार, तारकासुर राक्षस भगवान शिव से वरदान प्राप्त कर बहुत शक्तिशाली हो गया था. भगवान शिव से प्राप्त वरदान के अनुसार तारकासुर का वध केवल भगवान शिव के पुत्र ही कर सकते थे. तारकासुर के अत्याचारों के कारण तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था. अतः इस विपत्ति से मुक्ति पाने के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे. भगवान विष्णु ने देवताओं को भगवान शिव की शरण लेने को कहा, क्योंकि उस दुष्ट राक्षस का अंत केवल शिव के पुत्र द्वारा ही संभव था. सभी देवता कैलाश पहुंचे और भगवान शिव से पुत्र उत्पन्न करने की विनती करने लगे. सभी देवताओं की पुकार सुनकर भगवती पार्वती जी के शरीर से एक तेज किरण निकली, जो भगवान शिव में विलीन हो गई. तब शिव ने भी अपना तीसरा नेत्र खोला और उसमें से एक तेज किरण निकलकर देवी गंगा से टकराई. जब देवी गंगा ने उस दिव्य अंश को प्रवाहित करने का प्रयास किया, तो दिव्य शक्ति के कारण गंगा का जल उबलने लगा. यह देखकर देवी गंगा भयभीत हो गईं और उन्होंने उस दिव्य अंश को श्रावण वन में रख दिया. इस प्रकार भगवान शिव के शरीर से उत्पन्न तेज रूपी वीर्य के उन दिव्य अंशों से एक सुंदर एवं सुकुमार दिव्य बालक का जन्म हुआ.
क्यों नाम पड़ा कार्तिकेय
उस वन में विचरण कर रही छह कृत्तिकाओं ने जैसे ही उस बालक को देखा, तो उनके मन में उस बालक के प्रति मातृत्व का भाव उत्पन्न हो गया. वे उसे स्तनपान कराने लगीं. जैसे ही वे निकट पहुंचीं, उस बालक के छह सिर प्रकट हो गए. वे बालक को कृतिकालोक ले गईं और उसका पालन-पोषण करने लगीं. नारद जी ने भगवान शिव और देवी पार्वती को इस घटना की जानकारी दी. तब वे अपने पुत्र से मिलने के लिए व्याकुल हो उठे और कृतिकालोक के लिए चल पड़े. माता पार्वती ने जैसे ही अपने पुत्र को देखा, वे मातृ भाव से भावविभोर हो गईं. तत्पश्चात, शिव-पार्वती ने कृतिकाओं को पूरी घटना बताई और अपने पुत्र को लेकर कैलाश लौट आए. कृतिकाओं द्वारा उनके पालन-पोषण के कारण वे सभी लोकों में कार्तिकेय के नाम से प्रसिद्ध हुए.
बाद में कार्तिकेय ने देवासुर संग्राम के दौरान युद्ध का नेतृत्व किया और राक्षस तारकासुर का वध किया.
दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय हैं भगवान मुरुगन
भगवान कार्तिकेय को षडानन अर्थात छह मुखों के साथ दर्शाया जाता है. उन्हें स्वर्ण रंग और अष्टभुजा के रूप में दर्शाया गया है. भगवान कार्तिकेय से संबंधित अधिकांश चित्रों में उन्हें उनकी दोनों पत्नियों के साथ दिखाया गया है. दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को भगवान मुरुगन के रूप में पूजा जाता है. भगवान मुरुगन एक छोटे बच्चे के रूप में हैं और उनके चेहरे पर हमेशा एक सुंदर मुस्कान सजी रहती है. उन्हें मोर की सवारी करते हुए और सिर पर मोर के पंखों का मुकुट पहने हुए दिखाया गया है. भगवान मुरुगन का हाथ वरद मुद्रा में है और एक हाथ में वे तीर या भाले जैसा दिखने वाला अस्त्र पकड़े हुए हैं’
छह मुखों वाले मुरुगन
विभिन्न मंदिरों में भगवान मुरुगन को छह मुखों के साथ दर्शाया गया है. भगवान कार्तिकेय परिवार त्रिलोकीनाथ भगवान शिव कार्तिकेय के पिता हैं और भगवती पार्वती उनकी माता हैं. सभी देवताओं में प्रथम पूज्य भगवान गणेश और भगवान अयप्पा उनके भाई हैं. मान्यताओं के अनुसार देवी अशोकसुंदरी, मनसा देवी और देवी ज्योति को भगवान कार्तिकेय की बहनें माना जाता है. स्कंद पुराण में मिले वर्णन के अनुसार स्वामी कार्तिकेय ब्रह्मचारी हैं. इसलिए उनका विवाह नहीं हुआ था. लेकिन दक्षिण भारत में प्रचलित मान्यता के अनुसार देवसेना और वल्ली कार्तिकेय की दो पत्नियां हैं. देवसेना देवराज इंद्र की पुत्री हैं, जिन्हें छठी माता के रूप में भी पूजा जाता है. जबकि वल्ली किष्किंधा के राजा की बेटी है. भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है. ऋषि जरत्कारु और राजा नहुष जीजा साले हैं. महर्षि आस्तिक उनके भतीजे हैं.
भगवान कार्तिकेय मंत्र
- सामान्य मंत्र – ॐ श्री स्कन्दाय नमः ॐ श्री सुब्रमण्यम स्वामिने नमः कार्तिकेय गायत्री मंत्र – ॐ तत्पुरुषाय विद्महे मह संयय धीमहि तन्नो स्कंदः प्रचोदयात्। या ॥ भगवान कार्तिकेय महोत्सव
- स्कन्द षष्ठी, सिथि नख, कुमार षष्ठी थाईपूसम
भगवान कार्तिकेय मंदिर
- कार्तिक स्वामी मंदिर, रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड पलानी
- मुरुगन मंदिर, डिंडीगु, तमिलनाडु
- तिरुचेंदुर मुरुगन मंदिर, तूतीकोरिन, तमिलनाडु
- अरुल्मिगु बालाथंडायुथपानी मंदिर, पेनांग, मलेशिया
- मुरुगन मंदिर, ऑस्ट्रेलिया बातू गुफायें, मलेशिया