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कल्पवास से पारस्परिक सद्भाव और देश प्रेम को बढ़ावा: साध्वी ऋतम्भरा
कल्पवास से पारस्परिक सद्भाव और देश प्रेम को बढ़ावा: साध्वी ऋतम्भरा
Authored By: स्मिता
Published On: Wednesday, January 15, 2025
Updated On: Wednesday, January 15, 2025
आध्यात्मिक गुरु साध्वी ऋतम्भरा (Sadhvi Rithambara) के अनुसार, महाकुंभ में कल्पवास से आपस में प्रेम-स्नेह और पारस्परिक सद्भाव विकसित होता है। लोग एकात्मता के सूत्र में बंधते हैं, जिससे परिवार और देश का उत्कर्ष होता है।
Authored By: स्मिता
Updated On: Wednesday, January 15, 2025
इन दिनों दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा (Sadhvi Rithambara) प्रयागराज महाकुंभ (Prayagraj Mahakumbh 2025) में कल्पवास (Kalpvas) कर रही हैं। गंगा किनारे रहना और गंगा तट पर स्नान करना ज्यादातर आध्यात्मिक गुरुओं की दिनचर्या है। साध्वी ऋतम्भरा के अनुसार, महाकुंभ में कल्पवास से आपस में प्रेम व स्नेह बढ़ता है। इससे पारस्परिक सद्भाव या सौमनस्यता का आनंद विकसित होता है। लोग एकात्मता के सूत्र में बंध जाते हैं, जिससे परिवार और देश का उत्कर्ष (Sadhvi Rithambara) होता है।
अनंत का बोध कराती है भागीरथी
साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि स्नान के बाद अंतर्मन की शुद्धि हो जाती है। सदज्ञान की अविरल धारा बहने लगती है। सारे प्रश्नों का उत्तर मां के सानिध्य में आकर मिलने लगता है। हमारे जीवन का प्रारम्भ हो या जीवन की अंतिम यात्रा, अंत के बाद अनंत का बोध कराने वाली भगवती भागीरथी मां गंगा ही है। त्रिवेणी संगम पर बहुत सारे अखाड़ों के नागाओं, संतों, आचार्यो, मण्डलेश्वर, महामण्डलेश्वरों, श्रीमहंतों, जगद्गुरुओं का स्नान और कल्पवास होता है। साध्वी ऋतम्भरा ने भगवती के चरणों में डुबकी लगाई और भारत का उत्कर्ष मांगा।
आंगन में मां गंगा का आह्वान
साध्वी ऋतम्भरा ने कहा, ‘जो प्रयागराज नहीं आ पाए हैं, वे अपने आंगन में ही मां गंगा का आह्वान कर सकते हैं। जब आप सूक्ष्म रूप से ह्रदय को अर्पित करते हुए आह्वान करते हैं, तो गंगा लोटे में समा जाती हैं। यह भाव का जगत है। हम सब सनातनियों के भाव पवित्र रहने चाहिए। लोग अपना उत्कर्ष करें।’ संगम तट पर ऐसे अनगिनत दृश्य देखने को मिले, जहां पिता अपने पुत्र को कंधे पर बिठाकर स्नान करा रहे थे। वहीं, कुछ स्थानों पर वृद्ध पिता को उनका पुत्र स्नान कराने लाया था। ये नजारे रिश्तों की गहराई और भारतीय संस्कृति के पारिवारिक मूल्यों की झलक पेश करते हैं।
आध्यात्मिक अनुभव का पवित्र स्नान (Spiritual Experience)
महाकुंभ के पावन अवसर पर रात और दिन का कोई भेद नहीं रह गया है। पूरी रात श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। चहल-पहल से गूंजते संगम तट पर हर व्यक्ति अपने हिस्से की आस्था और दिव्यता को आत्मसात करने में लीन दिखता है। भारत की असंख्य विविधताओं के बीच अद्भुत एकता दिखाई देती है। देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु अपनी परंपराओं, भाषाओं और वेशभूषाओं के साथ एक ही उद्देश्य से संगम पर पहुंच रहे हैं और वह है पवित्र स्नान और आध्यात्मिक अनुभव।
भारतीय संस्कृति और एकता का प्रतीक (Indian Culture)
साध्वी के अनुसार, महाकुंभ के अद्वितीय आयोजन में भगवा और तिरंगे का संगम भारतीय संस्कृति और एकता का प्रतीक बन गया है। संगम तट पर सनातन परंपरा का प्रतिनिधित्व करते भगवा ध्वज जहां धर्म और आस्था की गहराई को दर्शाते हैं, वहीं भारत की एकता और अखंडता का परिचायक तिरंगा भी शान से लहराता नजर आया। तिरंगे ने कई अखाड़ों की राजसी शोभायात्रा का हिस्सा बनकर महाकुंभ के इस दिव्य आयोजन में गौरव का एक नया आयाम जोड़ा। कल्पवास कर रहे संतों का दृश्य न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं को जागृत करता है, बल्कि भारत की विविधता में एकता को भी खूबसूरती से दर्शाता है।
कण-कण में दिव्यता का आभास
साध्वी ने बताया कि महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि एक ऐसा अलौकिक अनुभव है, जो कण-कण में दिव्यता का आभास कराता है। यह उत्सव केवल आंखों से देखा ही नहीं, बल्कि दिल से महसूस किया जाता है। महाकुंभ का यह आयोजन न केवल धार्मिक भावनाओं को जागृत करता है, बल्कि भारतीय संस्कृति की गहराई और समाज की सामूहिकता को भी दर्शाता है।’ यह उत्सव हर किसी के लिए एक अद्वितीय अनुभव और आत्मा को शांति प्रदान करने का माध्यम है।
(हिन्दुस्थान समाचार के इनपुट के साथ)
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