नवरात्र पूजा के सरल अर्थ – श्री श्री रविशंकर
Authored By: स्मिता
Published On: Tuesday, September 9, 2025
Last Updated On: Tuesday, September 9, 2025
आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के अनुसार, नवरात्र मन को उसके मूल स्रोत तक वापस ले जाने का एक अवसर है. साधक उपवास, प्रार्थना, मौन और ध्यान के माध्यम से अपने मूल स्रोत तक पहुंचता है. आंतरिक यात्रा हमारे नकारात्मक कर्मों को नष्ट कर देती है.
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Last Updated On: Tuesday, September 9, 2025
Navratri Puja Meaning Ravi Shankar: आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के अनुसार, नवरात्र का त्योहार आश्विन (शरद ऋतु) और चैत्र (वसंत) की शुरुआत में प्रार्थना और उल्लास के साथ मनाया जाता है. ‘रात्रि’ का अर्थ है रात और रात कायाकल्प लाती है. पदार्थ अपने मूल स्वरूप में लौटकर बार-बार अपना स्वरूप धारण करता है. नवरात्र मन को उसके मूल स्रोत तक वापस ले जाने का एक अवसर है. साधक उपवास, प्रार्थना, मौन और ध्यान के माध्यम से अपने मूल स्रोत तक पहुंचने की कोशिश करता है. आंतरिक यात्रा हमारे नकारात्मक कर्मों को नष्ट कर देती है. नवरात्र के नौ दिन ब्रह्मांड को बनाने वाले तीन मूल गुणों में आनंदित होने का भी अवसर है.
तमो और रजो गुणों से होकर गुजरती है चेतना
श्री श्री रविशंकर के अनुसार, हमारा जीवन तीन गुणों द्वारा संचालित होता है. फिर भी हम शायद ही कभी उन्हें पहचानते और उन पर चिंतन करते हैं.नवरात्र के पहले तीन दिन तमोगुण (यह अवसाद, भय और भावनात्मक अस्थिरता का कारण बनता है) के लिए, दूसरे तीन दिन रजोगुण (यह चिंता और ज्वर का कारण बनता है) के लिए और अंतिम तीन दिन सत्वगुण (जब सत्व प्रबल होता है तो हम स्पष्ट, केंद्रित, शांत और गतिशील होते हैं) के लिए माने जाते हैं. हमारी चेतना तमो और रजो गुणों से होकर गुजरती है. अंतिम तीन दिनों में चेतना सत्व गुण में खिलती है. ये तीन मूल गुण हमारे भव्य ब्रह्मांड की स्त्री शक्ति माने जाते हैं. नवरात्र के दौरान देवी मां की आराधना करके हम तीनों गुणों में सामंजस्य स्थापित करते हैं और वातावरण में सत्व को बढ़ाते हैं.
समाधि की गहन अवस्था में ले जाती हैं मां शक्ति
जब भी जीवन में सत्व प्रबल होता है, विजय अवश्य प्राप्त होती है. इस ज्ञान के सार को दसवें दिन विजयदशमी के रूप में मनाकर सम्मानित किया जाता है. हर रूप और हर नाम में एक ही दिव्यता को पहचानना नवरात्र का उत्सव है. देवी मां को न केवल बुद्धि के तेज के रूप में, बल्कि भ्रांति के रूप में भी पहचाना जाता है. वे केवल लक्ष्मी ही नहीं, बल्कि शुद्धा और तृष्णा भी हैं. संपूर्ण सृष्टि में देवी मां के इस स्वरूप को समझने से व्यक्ति समाधि की गहन अवस्था में पहुंचता है. यह पाश्चात्य जगत के सदियों पुराने धार्मिक संघर्ष का उत्तर है.
नवरात्र का उत्सव
- ज्ञान, भक्ति और निष्काम कर्म के माध्यम से व्यक्ति अद्वैत सिद्धि या अद्वैत चेतना में पूर्णता प्राप्त कर सकता है. काली प्रकृति की सबसे भयावह अभिव्यक्ति हैं. प्रकृति सौंदर्य का प्रतीक है, फिर भी इसका एक भयावह रूप है. द्वैत को स्वीकार करने से मन में पूर्ण स्वीकृति आती है और मन शांत होता है. यद्यपि सूक्ष्म जगत स्थूल जगत के भीतर ही विद्यमान है, फिर भी इसका पृथकत्व द्वन्द्व का कारण है.
- एक ज्ञानी के लिए संपूर्ण सृष्टि जीवंत हो जाती है. वह हर चीज़ में जीवन को उसी प्रकार पहचानता है जैसे बच्चे हर चीज में जीवन को देखते हैं. देवी मां या शुद्ध चेतना स्वयं सभी रूपों में व्याप्त हैं. उनके सभी नाम हैं. प्रत्येक रूप और प्रत्येक नाम में एक दिव्यता को पहचानना नवरात्र का उत्सव है.
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