Parsva Ekadashi 2025: शयन मुद्रा बदलते हैं श्रीविष्णु
Authored By: स्मिता
Published On: Tuesday, August 26, 2025
Last Updated On: Tuesday, August 26, 2025
Parsva Ekadashi 2025 का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन श्रीविष्णु शयन मुद्रा बदलते हैं, जिसे अत्यंत पावन माना जाता है. व्रत करने से भक्तों को सुख-समृद्धि, सौभाग्य और आध्यात्मिक लाभ की प्राप्ति होती है.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Tuesday, August 26, 2025
Parsva Ekadashi 2025: चातुर्मास में भगवान विष्णु विश्राम करते हुए अपनी शयन मुद्रा को बाईं ओर से दाईं ओर कर लेते हैं. इसलिए इसे ‘पार्श्व परिवर्तिनी एकादशी’ भी कहते हैं. एकादशी का पवित्र व्रत करने से व्यक्ति को ब्रह्मांड के पालनहार श्री हरि विष्णु का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है.
एकादशी चंद्र चक्र का ग्यारहवां दिन होता है. यह चंद्रमा के बढ़ते और घटते दोनों चरणों क्रमशः शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के ग्यारहवें दिन को दर्शाता है. भगवान विष्णु की पूजा-उपासना के लिए एकादशी व्रत-उपवास रखा जाता है. सितंबर 2025 में दो एकादशी तिथियां हैं: 3 सितंबर (बुधवार) को पार्श्व एकादशी और 17 सितंबर (बुधवार) को इंदिरा एकादशी. सबसे पहले जानते हैं पार्श्व एकादशी की महत्ता और व्रत कथा.
पार्श्व एकादशी तिथि और समय
ज्योतिषशास्त्री पंडित अनिल शास्त्री के अनुसार,
विवरण | समय |
पार्श्व एकादशी तिथि की शुरुआत | 03 सितंबर को प्रातः 03:53 बजे |
एकादशी तिथि समाप्त | 04 सितम्बर प्रातः 04:22 बजे |
पारण का समय | 04 सितंबर, 01:40 अपराह्न – 04:09 अपराह्न |
हरि वासर समाप्ति क्षण | 04 सितंबर, सुबह 10:19 बजे |
द्वादशी समाप्ति क्षण | 05 सितंबर, 04:08 पूर्वाह्न |
क्यों मनाई जाती है पार्श्व एकादशी
पार्श्व एकादशी ‘दक्षिणायन पुण्यकालम’ यानी देवी-देवताओं की रात्रि के समय होती है. यह एकादशी ‘चतुर्मास’ अवधि के दौरान आती है. इसलिए इसे बहुत शुभ माना जाता है. मान्यता है कि पार्श्व एकादशी व्रत करने से व्रती को उसके सभी पापों की क्षमा मिल जाती है. पार्श्व एकादशी पूरे भारत में अपार श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है. इसे ‘पद्मा एकादशी’, ‘वामन एकादशी’, ‘जयंती एकादशी’, ‘जलझिलिनी एकादशी’ और ‘परिवर्तिनी एकादशी’ जैसे नामों से भी जाना जाता है.
श्री विष्णु की दाईं शयन मुद्रा
- पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि इस अवधि के दौरान भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और अपनी शयन मुद्रा को बाईं ओर से दाईं ओर कर लेते हैं. इसलिए इसका नाम ‘पार्श्व परिवर्तिनी एकादशी’ पड़ा.
- कुछ स्थान पर पार्श्व एकादशी के दिन श्रीविष्णु के अवतार भगवान वामन की पूजा की जाती है. इस एकादशी का पवित्र व्रत करने से व्यक्ति को ब्रह्मांड के पालनहार श्री हरि विष्णु का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है.
पार्श्व एकादशी का महत्व
ब्रह्म वैवर्त पुराण और पद्म पुराण में पार्श्व एकादशी व्रत का उल्लेख किया गया है. मान्यता है कि पार्श्व एकादशी व्रत करने से सुख, धन और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है. यह पिछले पापों से मुक्ति दिलाता है और व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के चक्र से भी मुक्ति दिलाता है. पार्श्व एकादशी व्रत करने से इच्छाशक्ति को भी मजबूत करता है. पार्श्व एकादशी को अन्य एकादशी व्रतों से श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह ‘चातुर्मास’ काल में आती है. इस दौरान अर्जित ‘पुण्य’ सामान्य महीनों की तुलना में अधिक मूल्यवान होता है.
पार्श्व एकादशी व्रत कथा
‘ब्रह्म वैवर्त पुराण’ में भगवान कृष्ण और राजा युधिष्ठिर के बीच हुए संवाद के रूप में इसे बताया गया है. पद्म पुराण के अनुसार, यह भगवान विष्णु के भक्त राजा बलि और उनके वामन अवतार की एकादशी कथा है.
कथा के अनुसार, राजा बलि एक शक्तिशाली और धर्मपरायण असुर राजा थे. वे अपनी भक्ति और उदारता के लिए जाने जाते थे. कई यज्ञ और तपस्या करने के बल पर वे इतने शक्तिशाली हो गए कि उन्होंने इंद्र का स्थान ले लिया और स्वर्ग के राजा बन गए.
देवताओं की प्रार्थना
बलि के उत्थान से व्याकुल इंद्र और अन्य देवता भगवान विष्णु से सहायता के लिए विनती करने लगे. भगवान विष्णु ने एक बालक वामन के रूप में अवतार लिया और राजा बलि के पास पहुंचे. वामन ने बलि से तीन पग भूमि मांगी. बलि ने अपनी उदारता के कारण तुरंत सहमति दे दी.
देवता रूप में आये वामन
वामन ने विशाल रूप धारण कर लिया. एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्ग को नाप लिया. तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर अर्पित कर दिया. उनके पास देने के लिए और कोई भूमि नहीं थी. बलि की भक्ति और बलिदान से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पाताल लोक का राज्य प्रदान किया और सदैव उनके साथ रहने का वचन दिया.
बाईं करवट से दाईं करवट
मान्यता यह भी है कि इस एकादशी पर भगवान विष्णु पाताल लोक में विश्राम करते हैं. एक रूप बलि के साथ और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग पर शयन करते हुए. इसी समय वे अपनी बाईं करवट से दाईं करवट बदलते हैं.
ये भी पढ़ें:- Anant Chaturdashi 2025: सुख समृद्धि की कामना के लिए बांधें अनंत सूत्र