Surdas Jayanti 2025 : श्रीकृष्ण के प्रति अद्भुत प्रेम और भक्ति प्रकट करने वाले संत!

Surdas Jayanti 2025 : श्रीकृष्ण के प्रति अद्भुत प्रेम और भक्ति प्रकट करने वाले संत!

Authored By: स्मिता

Published On: Thursday, May 1, 2025

Last Updated On: Thursday, May 1, 2025

Saint Surdas singing Krishna bhajans with disciples - Surdas Jayanti 2025
Saint Surdas singing Krishna bhajans with disciples - Surdas Jayanti 2025

Surdas Jayanti 2025 : महान संत और कवि संत सूरदास जयंती शुक्रवार, 2 मई, 2025 को मनाई जा रही है. मान्यता के अनुसार, इस वर्ष सूरदास जी की 547वीं जयंती है. हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, सूरदास जयंती वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष के पंचमी तिथि को पड़ती है, जो आमतौर पर अप्रैल या मई में होती है.

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Thursday, May 1, 2025

Surdas Jayanti 2025 : सूरदास, 16वीं सदी के एक प्रमुख भारतीय कवि और भक्ति संत थे, जो जन्म से ही अंधे थे. उन्हें उनकी भक्ति कविताओं, विशेष रूप से ब्रजभाषा में लिखी गई भगवान कृष्ण की स्तुति करने वाली रचनाओं के लिए जाना जाता है. सूरसागर सहित उनकी रचनायें भक्ति आंदोलन में गहराई से निहित हैं और दुनिया भर के पाठकों के बीच गूंजती रहती हैं. देश भर में 2 मई को जयंती ((Surdas Jayanti 2025)  मनाई जा रही है.

सूरदास जयंती 2025 तिथि और समय (Surdas Jayanti 2025 Date and Time)

  • सूरदास जयंती – शुक्रवार, 2 मई 2025
  • पंचमी तिथि 01 मई, 2025 को सुबह 11:23 बजे शुरू होगी
  • पंचमी तिथि 02 मई, 2025 को सुबह 09:14 बजे समाप्त होगी

कौन थे संत सूरदास (Saint Surdas)?

संत सूरदास का जन्म 1478 ई. में हुआ था. अधिकांश इतिहासकार उनका जन्मस्थान हरियाणा के फरीदाबाद के सीही गाँव में मानते हैं. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उनका जन्म आगरा के पास रुनकता में हुआ था. जन्म से अंधे सूरदास को अपने परिवार और समाज से उपेक्षा का सामना करना पड़ा. लेकिन उनके गहरे आध्यात्मिक झुकाव ने उन्हें केवल छह साल की उम्र में घर छोड़ने और भगवान कृष्ण को समर्पित करने के लिए प्रेरित किया. बहुत कम उम्र से ही वे श्रीकृष्ण की स्तुति करते थे. वे श्रीकृष्ण के बाल रूप के लिए अधिक रचना की है.

सूरदास का जीवन और भक्ति (Surdas Life & Bhakti)

अपने अंधेपन के बावजूद सूरदास की आंतरिक दृष्टि और दिव्य प्रेरणा ने उन्हें भक्ति आंदोलन की सबसे प्रमुख आवाज़ों में से एक बना दिया. उनकी रचना उनकी आध्यात्मिक गहराई और काव्यात्मक सुंदरता के लिए जानी जाती हैं. इससे वे पूरे देश में प्रसिद्ध हो गए. उनकी प्रतिष्ठा इतनी बढ़ गई कि मुगल सम्राट अकबर उनके संरक्षकों में से एक बन गए. सूरदास ने अपने बाद के साल ब्रज में बिताए, जो भगवान कृष्ण के जीवन से निकटता से जुड़ा हुआ क्षेत्र है. उन्होंने दान पर गुजारा किया और अपना जीवन भजन गाने और आध्यात्मिक प्रवचन देने में समर्पित कर दिया.

साहित्यिक योगदान (Surdas Literature)

सूरदास को उनके महाकाव्य, सूर सागर (राग का सागर) के लिए जाना जाता है. यह भगवान कृष्ण के बचपन और युवावस्था पर केंद्रित भक्ति गीतों का एक संग्रह है. ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने 100,000 से अधिक छंदों की रचना की, लेकिन समय के साथ केवल 8,000 के आसपास ही बचे हैं. उनकी कवितायें आज भी मंदिरों और आध्यात्मिक सभाओं में गाई जाती हैं, जो लाखों लोगों के दिलों को छूती हैं.

सूरदास जयंती महत्व (Surdas Jayanti Significance)

सूरदास जयंती केवल एक जयंती उत्सव नहीं है, बल्कि यह भक्ति, श्रद्धा और दिव्य प्रेरणा की शक्ति के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि प्रकट करने का दिन है. भक्त इस दिन भजन गाकर, उनकी रचनायें पढ़कर और ईश्वर के प्रति समर्पण के उनके जीवन के संदेश पर चिंतन करके मनाते हैं.

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About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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