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बिहार : भाजपा की बढ़ती भागीदारी से नीतीश के विदाई के संकेत तो नहीं
बिहार : भाजपा की बढ़ती भागीदारी से नीतीश के विदाई के संकेत तो नहीं
Authored By: सतीश झा
Published On: Thursday, February 27, 2025
Updated On: Thursday, February 27, 2025
केवल 8 महीने के लिए बिहार कैबिनेट में फेरबदल किया गया है. इसी साल नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होना है. नीतीश कुमार इस बार भी मुख्यमंत्री पद के लिए एनडीए का चेहरा होंगे या नहीं, इसको लेकर बहसों का दौर शुरू हो चुका है. जिस प्रकार से महाशिवरात्रि के दिन बिहार कैबिनेट का विस्तार किया गया और भाजपा के नेताओं को इसमें हिस्सेदारी मिली है, उसके कई मायने निकाले जा रहे हैं.
Authored By: सतीश झा
Updated On: Thursday, February 27, 2025
सबसे पहले यही सवाल है कि अब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का क्या होगा ?Bihar Politics भाजपा की सत्ता में बढ़ती भागीदारी कहीं नीतीश कुमार की विदाई का रास्ता तो नहीं बना रही है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे के बाद ही यह विस्तार क्यों किया गया ? इस कैबिनेट विस्तार में तीन कुर्मी जाति से आने वाले नेताओं को मंत्री बनाकर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को सोचने पर विवश तो नहीं किया जा रहा है ? ऐसे एक नहीं, कई सवाल हैं जिसका जवाब एकाएक नहीं, परत-दर-परत ही मिलने की संभावना है.
सीएम नीतीश कुमार पर बढ़ रहा है दबाव
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पर बढ़ते दबाव के बीच यह विस्तार किया गया, लेकिन जदयू ने अपने कोटे से मंत्री देने से इनकार कर दिया है. इसको लेकर भी कई सवाल सियासी गलियारों में घूम रहा है. भाजपा ने अपने दो अतिरिक्त मंत्री जोड़ लिए हैं. जाहिर है इससे उसकी शक्ति बढ़ी है. अब बिहार मंत्रिमंडल में भाजपा के 21, जदयू के 13, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के 1 और एक निर्दलीय मंत्री शामिल हैं.
पहली बार नीतीश कैबिनेट हुआ पूरा
पूर्व के कैबिनेट को देखा जाए, तो यह पहली बार है जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के कार्यकाल में मंत्रिमंडल की सभी सीटें भरी गई हैं. इससे पहले कुछ सीटें वो खाली ही रखते थे. एनडीए की ओर से भले ही यह संदेश दिया जा रहा हो कि इस विस्तार ने सत्ता संतुलन को बदल दिया है. मगर सियासी संकेत इसका समर्थन नहीं कर रहे हैं. जानकारों की राय में इससे जहां भाजपा की स्थिति मजबूत हुई है, वहीं जदयू हाशिए पर नजर आ रही है.
कैसे बदला सत्ता संतुलन?
कैबिनेट विस्तार की प्रक्रिया अचानक तेज हुई. पहले राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री दिलीप जायसवाल के इस्तीफे की खबर मीडिया में लीक हुई, फिर उनका इस्तीफा मुख्यमंत्री सचिवालय भेजा गया. इसके तुरंत बाद विस्तार की प्रक्रिया पूरी कर ली गई. यह अलग बाता है कि सोशल मीडिया पर दिलीप जायसवाल के पत्र को लेकर खूब मीम्स और कमेंट्स की बाढ़ देखी गई. खास बात यह रही कि भाजपा ने मंत्रियों की सूची खुद तैयार कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के पास सिर्फ अनुमोदन के लिए भेजी. नीतीश कुमार के पास इसे मंजूरी देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
ऐसे बढ़ी है नीतीश की सियासी चुनौतियां
वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही नीतीश कुमार के लिए सियासी चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. उनकी पार्टी को मात्र 20 प्रतिशत विधायकों के साथ संतोष करना पड़ा था. बीते चार वर्षों में अपमान, उपेक्षा और भाजपा के बढ़ते दबाव का अंत इस कैबिनेट विस्तार के साथ होता दिख रहा है. अब सत्ता की डोर नीतीश कुमार (Nitish Kumar)से खिसककर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के हाथों में चली गई है.
करीबी नौकरशाह और जदयू नेतृत्व पर सवाल
जदयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा और मुख्यमंत्री के करीबी नौकरशाहों की भूमिका को लेकर भी चर्चा तेज हो गई है. क्या वे भाजपा के बढ़ते प्रभाव को रोक पाएंगे या फिर नीतीश कुमार (Nitish Kumar)को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है? जिस प्रकार से नीतीश कुमार के बेटे निशांत को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हुआ है, वह भी जदयू के स्थापित नेताओं को बेचैन करने वाला है.
क्या 2013 की पुनरावृत्ति होगी?
भाजपा ने इस विस्तार में नीतीश कुमार की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को नजरअंदाज कर मंत्रियों के नामों का ऐलान कर दिया. यह संकेत है कि अब सत्ता का केंद्र नीतीश कुमार नहीं, बल्कि भाजपा बन चुकी है. जदयू नेतृत्व के लिए यह खतरे की घंटी है. यदि उन्होंने जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो बिहार की राजनीति 2013 जैसी स्थिति में लौट सकती है, जब नीतीश कुमार (Nitish Kumar)ने भाजपा से नाता तोड़कर उसे सत्ता से बाहर कर दिया था. अब देखना होगा कि नीतीश कुमार इस बदली हुई परिस्थिति में क्या रणनीति अपनाते हैं और बिहार की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ती है?