तेजस्वी का तेज और पीके का दांव

तेजस्वी का तेज और पीके का दांव

Authored By: विशेष संवाददाता, गलगोटियाज टाइम्स

Published On: Saturday, October 5, 2024

tejashwi yadav and prashant kishore

देश का इतिहास बनाता रहा बिहार अब एक नए दौर की राजनीति की ओर बढ़ रहा है। इसमें जहां आरजेडी के तेजस्वी पार्टी को अपने तरीके से आगे बढ़ाने की कोशिशों में जुटे हैं, वहीं जाने माने पॉलिटिकल स्ट्रेटेजिस्ट प्रशांत किशोर यानी पीके अपनी जुन सुराज पार्टी के साथ मैदान में कूदने से इस राज्य की राजनीतिक लड़ाई दिलचस्प दौर में प्रवेश कर गई है...

हाइलाइट्स

  • आरजेडी (RJD) को लालू की सोच से आगे ले जाने में जुटे हैं तेजस्वी
  • पार्टी के नाम के अनुरूप बिहार में सुराज (Suraj) का सपना है पीके का

देश की राजनीति की दिशा में तय करने में उत्तर प्रदेश को बेहद अहम माना जाता है। कहा जाता है कि देश की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर ही जाता है। हो भी क्यों न। यहां 80 लोकसभा सीटें जो हैं। यहां जो जीता, वही सिकंदर, लेकिन एक और राज्य जिसकी भूमिका दिल्ली में सरकार बनाने में बेहद अहम होती है-वह है बिहार। 40 लोकसभा सीटों के साथ बिहार अहम है और इस बार केंद्र में राजग सरकार में अहम भूमिका में भी है। नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का जेडीयू राजग का प्रमुख घटक दल है। पहले संप्रग में लालू प्रसाद (Lalu Prasad) का आरजेडी अहम भूमिका में रह चुका है। लालू रेल मंत्री भी रहे। यह सब बिहार की राजनीतिक हैसियत के ही सबूत हैं। जातीय समीकरणों के आसपास घूमने वाली बिहार की राजनीति में इन दिनों हलचल तेज है। पीके (PK) बिहार की राजनीति को नए गोले में ले जाने की जुगत में घूम रहे हैं तो तेजस्वी अपने पिता के जमाने वाली आरजेडी को नया लुक देने की कोशिश में हैं।

 

लालू की सोच से आगे बढ़ना चाहते हैं तेजस्वी

पहले बात पिता-पुत्र की। लालू प्रसाद यादव ही अभी आरजेडी के मुखिया हैं। सब उन्हीं की मर्जी से होता है, लेकिन तेजस्वी (Tejashwi) उनके राजनीतिक वारिस बनकर तेजी से सामने आए हैं। परिवार बड़ा है सो दावेदार और भी हो सकते हैं, लेकिन फिलहाल तेजस्वी ही तेज दिख रहे हैं। अभी तक सब ठीक रहा है, लेकिन बीते हफ्ते तेजस्वी ने जब पार्टी की एक बैठक में आरजेडी नेताओं-कार्यकर्ताओं से गले में हरा गमछा न डालने की बात कही तो सुगबुगाहट शुरू हो गई। हो भी क्यों न। लालू ने कुछ ही समय पहले आरजेडी कार्यकर्ताओं से गले में हरा गमछा डालने की बात कही थी। जाहिर है कि तेजस्वी के हरे गमछे से परहेज को लेकर आरजेडी ही नहीं, पूरे बिहार व देश की सियासत में चर्चा का दौर गर्म हो गया। एक और अहम बात यह है कि तेजस्वी अब लालू के पुराने माई यानी मुस्लिम-यादव समीकरण से आगे निकलकर सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपना रहे हैं, उसी तरह जैसे कभी यूपी में मायावती ने केवल बहुजन की सियासत से आगे बढकर किया था और बहुमत से सत्ता हासिल कर ली थी। देखना होगा कि तेजस्वी कितनी दूर तक अपनी सोच को ले जा पाते हैं और इससे बिहार की राजनीति में क्या असर डालने में सक्षम होते हैं।

पीके जुटा रहे हैं अपनी सभाओं में भीड़

अब आइए पीके यानी प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) पर। पिछले साल जन सुराज अभियान के साथ उन्होंने पूरे बिहार को मथा है। अब राजनीतिक दल के साथ चुनावी ताल ठोंकने की तैयारी में हैं। सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर हर जगह आपको पीके बतियाते मिल जाएंगे। कभी नीतीश पर हमला तो कभी तेजस्वी पर। दावा कर रहे हैं कि बिहार के लोग बदलाव के सारथी बनेंगे। गांव-गांव घूमकर उन्होंने यह परखा है। नएपन की बात तो पीके कर रहे हैं, लेकिन कैसे करेंगे यह बहुत स्पष्ट नहीं है। जातियों के खांचे में बंटे बिहार में विकास की बात पर चुनाव जीत लेना सहज नहीं है। पीके के जनसुराज की हालिया बैठकों में भीड़ तो आ रही है। उन्होंने मुस्लिम सम्मेलन करके अन्य पार्टियों खासकर, आरजेडी के लिए एक अलार्म तो सेट कर ही दिया है। सीमांचल में इस वोट बैंक का खासा प्रभाव है। देखते हैं कि पीके क्या नया कर पाते हैं बिहार की सियासत में।

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