सुप्रीम कोर्ट के संदेशों को कितना मानेंगे अरविंद केजरीवाल, कइयों के मन में है ये सवाल

सुप्रीम कोर्ट के संदेशों को कितना मानेंगे अरविंद केजरीवाल, कइयों के मन में है ये सवाल

Authored By: सतीश झा

Published On: Friday, September 13, 2024

Categories: Delhi News, National, States

Updated On: Friday, September 13, 2024

delhi chief minister arvind kejariwal

कोर्ट के संदेशों को नजरअंदाज करने से राजनीतिक माहौल और भी ज्यादा तनावपूर्ण हो सकता है। अब देखना होगा कि केजरीवाल अपनी राजनीतिक शैली और कार्यों में किस हद तक बदलाव लाते हैं या नहीं। विपक्षी दलों का मानना है कि केजरीवाल को केवल कानूनी जीत पर जश्न मनाने की बजाय, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को आत्ममंथन का अवसर मानना चाहिए। इस घटनाक्रम ने जनता के मन में भी सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट के संदेशों को स्वीकार कर केजरीवाल और उनकी पार्टी एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएगी, या फिर इसे महज एक और राजनीतिक मुद्दे के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Delhi CM Arvind Kejriwal) को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद उनके समर्थक जहां इसे न्याय की जीत मान रहे हैं, वहीं राजनीतिक हलकों में एक बड़ा सवाल उठ रहा है: क्या केजरीवाल सुप्रीम कोर्ट के संदेशों को गंभीरता से लेंगे? कोर्ट ने केंद्र सरकार की जांच एजेंसियों पर सख्त टिप्पणियां की हैं, लेकिन केजरीवाल की भविष्य की रणनीतियों पर इसका कितना असर पड़ेगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता और कार्यकर्ता इसे नैतिक जीत के रूप में देख रहे हैं, लेकिन कई लोगों का मानना है कि केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से सीख लेनी चाहिए और अपनी राजनीतिक गतिविधियों में जिम्मेदारी दिखानी चाहिए।

केजरीवाल जमानत पर बाहर रहते हुए आबकारी नीति मामले की खूबियों पर टिप्पणी नहीं कर सकते

न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Justice Surya Kant) ने कहा, “अरविंद केजरीवाल इस मामले के बारे में कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करेंगे और छूट मिलने तक ट्रायल कोर्ट के समक्ष सभी सुनवाई में उपस्थित रहेंगे। प्रवर्तन निदेशालय मामले में लगाई गई शर्तें इस मामले में भी लागू होंगी। उन्हें ट्रायल कोर्ट के साथ पूरा सहयोग करना होगा।”

सीबीआई (CBI) की गिरफ़्तारी की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट के जजों में मतभेद

आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कथित दिल्ली शराब नीति घोटाले में जमानत दे दी। यह फैसला न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां (Justice Surya Kant and Justice Ujjal Bhuiya) की पीठ ने सुनाया। दिल्ली के मुख्यमंत्री को जमानत देते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “तीन सवाल हैं: क्या सीबीआई द्वारा गिरफ्तारी में कोई अवैधता थी, क्या उन्हें तुरंत रिहा किया जा सकता है और क्या आरोपपत्र दाखिल करना इस तरह की प्रकृति का है कि उन्हें केवल ट्रायल कोर्ट जाना होगा। अरविंद केजरीवाल जमानत देने के लिए तीन शर्तों को पूरा करते हैं और हम तदनुसार आदेश देते हैं।”

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि सीबीआई द्वारा केजरीवाल की गिरफ़्तारी अवैध नहीं थी, जबकि जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने कहा कि सीबीआई द्वारा की गई गिरफ़्तारी जवाब देने से ज़्यादा सवाल खड़े करती है। “गिरफ़्तारी की ज़रूरत और ज़रूरत के बारे में, सीबीआई द्वारा की गई गिरफ़्तारी जवाब देने से ज़्यादा सवाल खड़े करती है! सीबीआई ने उन्हें गिरफ़्तार करने की ज़रूरत महसूस नहीं की, हालाँकि उनसे मार्च 2023 में पूछताछ की गई थी और यह उनकी ईडी (ED) गिरफ़्तारी पर रोक लगने के बाद ही हुआ था। सीबीआई सक्रिय हो गई और उसने केजरीवाल की हिरासत माँगी और इस तरह 22 महीने से ज़्यादा समय तक गिरफ़्तारी की ज़रूरत नहीं पड़ी।

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट (Suprme Court) ने आज जमानत दे दी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने जमानत देते हुए कहा, “लंबे समय तक जेल में रहना स्वतंत्रता के लिए एक समस्या है। न्यायालय आम तौर पर स्वतंत्रता की ओर झुकते हैं। हम अरविंद केजरीवाल को 10 लाख रुपये के जमानत बांड के अधीन जमानत पर रिहा करने का निर्देश देते हैं।”

केजरीवाल ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें भ्रष्टाचार के एक मामले में गिरफ्तार करने का आदेश 5 अगस्त को बरकरार रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी और निर्णय के बाद केजरीवाल को राहत मिली है, और इसे उनकी पार्टी के लिए एक नैतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है।

इस फैसले का राजनीतिक महत्व भी है, क्योंकि यह आने वाले दिनों में केजरीवाल की राजनीतिक रणनीतियों और AAP की चुनावी तैयारियों को प्रभावित कर सकता है। कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल स्वतंत्रता के अधिकार पर बल देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि न्यायालय नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।

About the Author: सतीश झा
समसामायिक मुद्दों पर बीते दो दशक से लेखन। समाज को लोकदृष्टि से देखते हुए उसे शब्द रूप में सभी के सामने लाने की कोशिश।

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