बिहार की 70 सीटों पर राजपूतों का दबदबा, राजीव प्रताप रूडी के बयान से सियासत गरमाई
Authored By: सतीश झा
Published On: Tuesday, September 9, 2025
Last Updated On: Tuesday, September 9, 2025
बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा से निर्णायक रहे हैं. ताजा चर्चा राजपूत समुदाय की भूमिका को लेकर हो रही है. जनगणना के आंकड़ों में भले ही बिहार में राजपूतों की आबादी को 4 प्रतिशत से कम बताया जा रहा हो, लेकिन जब विधानसभा सीटों की बात आती है, तो यह आंकड़ा 70 पर पहुंचता है. हार जीत राजपूत मतदाता ही तय करते हैं. ऐसे में बिहार के कई जिलों से गुजर रही है सांगा यात्रा और भाजपा (BJP) नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी (Rajeev Pratap Rudy) भी सियासी धुरी बन जात हैं.
Authored By: सतीश झा
Last Updated On: Tuesday, September 9, 2025
Bihar Rajput Political Influence: इसी संदर्भ में हाल ही में भाजपा नेता राजीव प्रताप रूडी (Rajeev Pratap Rudy) के दिए गए बयानों ने राजनीतिक गलियारों में नई हलचल मचा दी है. रूडी ने कहा था कि बिहार की राजनीति में राजपूत समाज की भागीदारी और प्रतिनधित्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
उनके इस बयान पर कई नेता सहमति जताते हुए कह रहे हैं कि किसी भी दल को सत्ता तक पहुंचने के लिए इस समुदाय को साधना बेहद जरूरी है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2025 के विधानसभा चुनावों (Bihar Assembly Election 2025) में राजपूतों की भूमिका पहले से ज्यादा अहम हो सकती है. भाजपा (BJP) और जदयू (JDU) दोनों ही दल इस वोट बैंक को अपने पाले में बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, वहीं विपक्षी दल भी राजपूत नेताओं को सक्रिय करने की कोशिश में जुट गए हैं. विपक्षी दल राजद के पास वर्तमान में वैसा कद्दावर राजपूत नेताओं की कमी देखी जा रही है. अब देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनावी समीकरणों में रूडी (Rajeev Pratap Rudy) की यह बात कितनी असरदार साबित होती है और बिहार की राजनीति में राजपूतों की ताकत किस ओर झुकाव दिखाती है.
28 विधायक, 5 मंत्री
बिहार विधानसभा में इस समय राजपूत जाति के 28 विधायक मौजूद हैं. नीतीश कैबिनेट में 5 मंत्री भी इसी समुदाय से आते हैं. जातीय सर्वे के अनुसार, बिहार में राजपूतों की आबादी करीब 3.45 प्रतिशत है. 2020 के विधानसभा चुनाव में इस समुदाय की ताकत पहले से ज्यादा नजर आई. कुल 28 राजपूत विधायक जीते, जबकि 2015 में यह संख्या 20 थी.
बीजेपी (BJP) ने 21 राजपूत उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 15 ने जीत दर्ज की. जेडीयू (JDU) ने 7 उम्मीदवारों को टिकट दिया, लेकिन केवल 2 ही जीत सके. वीआईपी (VIP) से 2 राजपूत विधायक जीते. महागठबंधन की तरफ देखें तो आरजेडी (RJD) ने 8 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 7 ने जीत दर्ज की. कांग्रेस (Congress) ने 10 टिकट दिए लेकिन सिर्फ 1 ही राजपूत उम्मीदवार जीत पाया.
सवालों के घेरे में एनडीए की रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जब बीजेपी और आरजेडी दोनों में राजपूत विधायकों की संख्या बढ़ी है, तब भी एनडीए की शीर्ष बैठक में इस समाज के बड़े चेहरों का अभाव रहना कई संकेत देता है. यह या तो संगठनात्मक रणनीति का हिस्सा है या फिर जातीय राजनीति में कहीं न कहीं ‘बाबू साहेब’ यानी राजपूत समुदाय की उपेक्षा. अब देखना यह होगा कि चुनावी मैदान में उतरने से पहले एनडीए राजपूतों की इस नाराजगी को कैसे दूर करता है और क्या बाबू साहेबों को सियासी फिटनेस की असली जगह मिल पाती है या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट रीना सिंह ने कही ये बात
क्षत्रिय राजनीति पर सुप्रीम कोर्ट की 2 का कहना है कि अगर कोई आम आदमी मंच से जाति की बात करे तो उसे तुरंत जातिवादी कह दिया जाता है. लेकिन जब कोई नेता यही बात करता है तो उसे वंचित वर्ग का मसीहा बना दिया जाता है, जब औरों को अपनी जाति के लिए बोलने का हक है, तो हम क्षत्रिय समाज क्यों चुप रहे? आज ज़रूरत है कि क्षत्रिय समाज के नेता सबसे पहले अपने समाज के वोट को एकजुट करें. हमें देखना होगा कि विधानसभा से लेकर लोकसभा तक हमारे जन प्रतिनिधियों की संख्या का ग्राफ हर चुनाव में गिरता जा रहा है. अगर ठाकुर समाज की वोट बैंक कमज़ोर हो जाएगी तो ठाकुर नेताओं को वोट देगा कौन? उन्होंने यह भी कहा कि क्या दूसरी जातियां आकर हमारे नेताओं को जिताएंगी? बिल्कुल नहीं!इसलिए अब समय आ गया है कि क्षत्रिय समाज अपनी ताक़त पहचाने, अपनी वोट शक्ति को मजबूत करे और यह संदेश दे कि बिना ठाकुरों के समर्थन के कोई भी सत्ता की सीढ़ी पर नहीं चढ़ सकता. बिहार चुनाव में क्षत्रिय नेताओं को इस कड़वी सच्चाई पर गंभीरता से गौर करना होगा वरना आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ़ नहीं करेंगी.
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