ड्रोन दीदी (Drone Didi) बनकर ग्रामीण महिलाएं दे रहीं सपनों को नई उड़ान
Authored By: अंशु सिंह (वरिष्ठ लेखिका और पत्रकार)
Published On: Saturday, September 7, 2024
Updated On: Saturday, September 7, 2024
देश की ग्रामीण महिलाओं की एक खास तस्वीर मन में खिंची होती है कि वे ज्यादातर घूंघट में रहती हैं। आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर होती हैं। लेकिन अब ये तस्वीर बदल रही है। स्वयं सहायता समूह के जरिये वे न सिर्फ स्वावलंबी बन रहीं, बल्कि तकनीक की सहायता से ड्रोन दीदी की नई भूमिका भी बखूबी निभा रही हैं।
मध्यप्रदेश के दुर्ग जिले के छोटे से गांव मतवारी की जागृति साहू (Jagruti Sahu) बचपन से शिक्षक बनना चाहती थीं। लेकिन कुछ कारणों से उनका सपना अधूरा रह गया, जिसका उन्हें काफी अफसोस था। एक दिन पति ने उन्हें मशरूम की खेती करने का सुझाव दिया। जागृति ने उनकी बात मानकर इसकी खेती शुरू कर दी और देखते ही देखते उन्होंने अपने साथ गांव की अन्य महिलाओं को रोजगार मुहैया कराया। आज उनकी मशरूम लेडी ऑफ दुर्ग के रूप में एक अलग पहचान है। लेकिन इनकी कहानी यहीं खत्म नहीं होती। सामान्य महिला से लखपति दीदी बनीं जागृति में सीखने की ललक इतनी थी कि उन्होंने सरकारी योजनाओं की मदद से तकनीक में भी खुद को पारंगत बनाया। प्रधानमंत्री की पहल पर शुरू हुई नमो ड्रोन दीदी में चयन के बाद उन्होंने ड्रोन चलाने का प्रशिक्षण लिया। आज वह एक सर्टिफाइड ड्रोन पायलट हैं, जो ड्रोन दीदी के नाम से जानी जाती हैं। कहती हैं जागृति, शुरू में जो लोग मजाक उड़ाते थे। आज वही उनकी प्रशंसा करते हुए नहीं थकते। मुझे खुशी मिलती है जब मैं अन्य महिलाओं को ड्रोन के साथ मशरूम एवं घरेलू वस्तुओं के उत्पादन की ट्रेनिंग देती हूं। इससे वे स्वावलंबन की राह पर आगे बढ़ रही हैं।
ड्रोन दीदी बनकर शुभी कर रहीं कमाई
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के अहमदनगर गांव की शुभी सिंह (Shubhi Singh) भी आज ड्रोन दीदी के तौर पर एक खास पहचान बना चुकी हैं। 21 वर्षीय शुभी बताती हैं, ‘2023 में यूपी के फूलपुर में इफको की कैंप में मैंने ड्रोन उड़ाने की ट्रेनिंग ली। टेस्ट क्लियर करने के पश्चात मुझे ड्रोन पायलट का लाइसेंस दिया गया। प्रधानमंत्री की विकसित भारत संकल्प यात्रा के दौरान मुझे बाराबंकी, गोंडा एवं सीतापुर में ड्रोन उड़ाने का अवसर मिला। ड्रोन से कम पानी एवं समय में खेत में दवा का छिड़काव किया जा सकता है। एक एकड़ खेत में छिड़काव करने में लगते हैं 5 से 7 मिनट। इससे मुझे एक हजार से लेकर दो हजार रुपये तक की आय हो जाती है।‘ ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को खेतों में नैनो-यूरिया के छिड़काव में काफी समय लग जाता है। ड्रोन से यह कार्य कम वक्त में संपन्न हो सकता है और फसल भी बर्बाद नहीं होती।
स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups) से जुड़ने का मिला फायदा
छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार विकासखंड के ग्राम लाहोद निवासी निरूपा साहू (Nirupa Sahu) ने 12 वीं तक की पढ़ाई की है। वे पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनकी सहयोगी बन घर के खर्चों में अपना योगदान करना चाहती थीं। इसलिए बिहान अंतर्गत वैभव लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर काम करने लगीं। एक दिन वहां कृषि विभाग के अधिकारी आए और ड्रोन योजना की जानकारी दी। बताती हैं निरूपा, ‘मैंने भविष्य की संभावनाएं को देखते हुए तत्काल हामी भर दी। उसके बाद इफको कंपनी की सहायता से नमो ड्रोन दीदी की ट्रेनिंग लेने ग्वालियर इंस्टीट्यूट गई, जहां मुझे 15 दिन की ट्रेनिंग दी गई। ट्रेनिंग के बाद आरपीसी लाइसेंस मिला। वापस गांव लौटकर मैं ड्रोन दीदी के रूप में कार्य करने लगी। अप्रैल महीने में ड्रोन मिलने के बाद से किसानों के खेतों में दवा छिड़काव का कार्य कर रही हूं। 300 रूपये एकड़ के हिसाब से चार्ज लेती हूं। अब तक गांव के लगभग 80 एकड़ खेत में ड्रोन से दवा का छिड़काव कर चुकी हूं, जिससे मुझे 25 हजार रूपये की आमदनी हुई है।‘
ड्रोन दीदी योजना से किसानों को भी मिला लाभ
ड्रोन से न केवल निरूपा साहू जैसी महिलाओं, बल्कि किसानों को भी सीधा लाभ मिला है। किसान परमेश्वर वर्मा (Parmeshwar Verma) कहते हैं कि पहले दवा छिड़काव स्पियर से किया जाता था। उससे बहुत समय और खर्च लगता था। लेकिन ड्रोन के माध्यम से महज कुछ मिनटों में ही यह कार्य पूर्ण हो जाता है और दवाइयों का बेहतर रूप से छिड़काव हो जाता है। उल्लेखनीय है कि नमो ड्रोन दीदी योजना के तहत सरकार का लक्ष्य 10 करोड़ से अधिक स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं में से 15 हजार को योजना का लाभ पहुंचाना है। इसमें महिलाओं को 15 दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें ड्रोन चलाने की विधि एवं फसलों पर कीटनाशकों के छिड़काव के बारे में बताया जाता है। इसके अलावा, लाभार्थियों को ड्रोन संचालन के लिए 15 हजार रुपये मासिक अनुदान भी मिलता है।
(हिन्दुस्तान समाचार के इनपुट्स के साथ)
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