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आत्मसम्मान vs व्यापार: भारत में क्यों हुआ तुर्किये और अज़रबैजान का बहिष्कार?
आत्मसम्मान vs व्यापार: भारत में क्यों हुआ तुर्किये और अज़रबैजान का बहिष्कार?
Authored By: Nishant Singh
Published On: Friday, May 16, 2025
Last Updated On: Thursday, May 22, 2025
भारत में तुर्किये और अज़रबैजान के बहिष्कार का अभियान तेजी से फैल रहा है, जिसका मुख्य कारण इन देशों द्वारा पाकिस्तान के पक्ष में लिया गया पक्षपातपूर्ण रुख है. इस बहिष्कार का सीधा प्रभाव पर्यटन, व्यापार और विमानन सेवाओं पर पड़ा है. तुर्किये की 22% और अज़रबैजान की 30% बुकिंग रद्द हो चुकी हैं, जबकि व्यापारिक संगठनों ने आयात रोकने की मांग की है. करोड़ों रुपये का पर्यटन राजस्व प्रभावित हुआ है, और इंडिगो जैसी भारतीय कंपनियां रणनीतिक संकट का सामना कर रही हैं. यह स्थिति दर्शाती है कि भारत अब राष्ट्रीय सम्मान और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देता है, और उन देशों से व्यापारिक संबंधों की पुनः समीक्षा कर रहा है जो आतंकवाद या भारत-विरोधी गतिविधियों का समर्थन करते हैं.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Thursday, May 22, 2025
Boycott Turkey and Azerbaijan: इन दिनों भारत में दो नाम चर्चा में हैं — तुर्किये और अज़रबैजान. लेकिन वजह कोई फिल्म या पर्यटन नहीं, बल्कि बहिष्कार है. वजह भी गंभीर है: भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बीच इन दोनों देशों ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया, और भारतीय जनता को यह बात बिल्कुल रास नहीं आई.
बहिष्कार की शुरुआत: एक भावनात्मक प्रतिक्रिया
जब ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को तुर्किये और अज़रबैजान ने समर्थन दिया, तो भारतीयों का गुस्सा फूट पड़ा. सोशल मीडिया से लेकर ज़मीन तक एक आवाज़ उठी — “बहिष्कार करो!” यही कारण है कि अब ये देश न केवल भारतीयों के गंतव्य सूची से बाहर हो रहे हैं, बल्कि इनके साथ व्यापार करने की इच्छाशक्ति भी लगातार कम हो रही है.
तुर्किये व अज़रबैजान बहिष्कार पर आधारित व्यापार व पर्यटन से जुड़े आंकड़े:
श्रेणी | बहिष्कार से पहले | बहिष्कार के बाद/प्रभाव |
---|---|---|
पर्यटन बुकिंग | तुर्किये: उच्च मांग अज़रबैजान: तेजी से बढ़ती रुचि |
तुर्किये: 22% बुकिंग रद्द अज़रबैजान: 30% बुकिंग रद्द |
वार्षिक पर्यटन आय | ₹4,000 करोड़ (दोनों देशों को भारतीय पर्यटकों से) | अनुमानित 50% तक की गिरावट |
व्यापार (2022-23) | भारत-तुर्किये: $13.8 अरब डॉलर से अधिक भारत-अज़रबैजान: कच्चे तेल के प्रमुख खरीदार |
व्यापार संगठनों द्वारा आयात रोकने की मांग, ऑर्डर रद्द |
प्रमुख आयात (भारत में) | तुर्की: मार्बल, सेब, सोना अज़रबैजान: कच्चा तेल |
पुणे, इंदौर, उदयपुर के व्यापारी व्यापार रोकने लगे |
प्रमुख निर्यात (भारत से) | फार्मास्यूटिकल, स्टील, विद्युत मशीनरी, रसायन | संभावित अरबों रुपये के ऑर्डर रद्द होने की आशंका |
एयरलाइंस पर असर | इंडिगो व टर्किश एयरलाइंस की साझेदारी से विस्तार | यात्रियों की मांग में गिरावट, कोडशेयर पर असमंजस |
शैक्षणिक संबंध | JNU और तुर्की यूनिवर्सिटी के बीच समझौता | JNU ने समझौता रद्द किया |
जनभावना / सोशल मीडिया | पर्यटन व व्यापार को लेकर उत्साह | #BoycottTurkey #BoycottAzerbaijan ट्रेंड पर |
पर्यटन पर सबसे पहला वार
पर्यटन इंडस्ट्री सबसे पहले इस बहिष्कार की चपेट में आई. ईजमाईट्रिप के आंकड़े बताते हैं कि तुर्किये की करीब 22% और अज़रबैजान की 30% बुकिंग रद्द हो चुकी हैं. पहले जो लोग इस्तांबुल और बाकू के सपने देखते थे, अब वे ग्रीस, थाईलैंड, वियतनाम और सर्बिया जैसे विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं.
ईजमाईट्रिप के सीईओ रिकान्त पिट्टी के अनुसार, युद्धविराम के बाद की अनिश्चितता और सरकार की यात्रा सलाह का असर साफ दिख रहा है. यहां तक कि लोग तुर्किये एयरलाइंस की सस्ती उड़ानों के बजाय महंगी एयरलाइंस से सफर कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, फिनलैंड जाने का किराया तुर्किये एयरलाइंस से ₹70,500 है, लेकिन लोग ₹1,03,500 देकर दूसरी एयरलाइंस से यात्रा कर रहे हैं — सिर्फ इसीलिए कि वह तुर्की की नहीं है.
व्यापार पर चोट: करोड़ों की संभावित हानि
भारत और तुर्किये के बीच वर्ष 2022-23 में व्यापार $13.8 अरब डॉलर से भी ऊपर रहा. अज़रबैजान भी भारत को कच्चा तेल निर्यात करता है, और 2023 में भारत उसके लिए तीसरा सबसे बड़ा ग्राहक रहा. लेकिन अब व्यापार पर भी तलवार लटक रही है.
- तुर्किये से आयात होते हैं: मार्बल, सेब, सोना, खनिज तेल, स्टील, टेक्सटाइल, मशीनरी.
- भारत करता है निर्यात: खनिज ईंधन, फार्मास्यूटिकल्स, विद्युत मशीनरी, स्टील, कपास, कीमती पत्थर आदि.
CAIT (कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स) ने इन देशों के बहिष्कार का आह्वान किया है. इसका असर ये हुआ कि:
- पुणे के व्यापारियों ने तुर्किये से सेब न मंगाने का फैसला लिया.
- उदयपुर के मार्बल व्यापारियों ने तुर्की संग व्यापार तोड़ दिया.
- इंदौर के ट्रांसपोर्टर्स ने इनके लिए माल ढुलाई से इंकार कर दिया.
- JNU ने तुर्की की यूनिवर्सिटी के साथ समझौता रद्द किया.
पर्यटन से होने वाला सीधा नुकसान
पिछले साल इन दोनों देशों ने भारतीय पर्यटकों से लगभग ₹4,000 करोड़ की कमाई की थी. अब जब 50% से अधिक बुकिंग रद्द हो गई हैं, यह रकम सीधे-सीधे आधी हो जाती है. और नुकसान यहीं तक सीमित नहीं है — भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को भी इन देशों में शूटिंग न करने की सलाह दी जा रही है.
सबक जो मालदीव से सीखा गया
कुछ समय पहले मालदीव ने भी भारत-विरोधी बयान दिए थे, तो भारतीय पर्यटकों ने उसका बहिष्कार कर दिया. असर इतना गहरा हुआ कि मालदीव को अपना रुख बदलना पड़ा. वही इतिहास तुर्किये और अज़रबैजान के साथ दोहराया जा रहा है.
इंडिगो की चिंता: जब बहिष्कार बिजनेस प्लान पर भारी पड़े
भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो के लिए ये स्थिति किसी बुरे सपने से कम नहीं है. उसने तुर्किये के इस्तांबुल को अंतरराष्ट्रीय ट्रांजिट हब बनाने की योजना बनाई थी. टर्किश एयरलाइंस के साथ कोडशेयर समझौते ने इंडिगो को यूरोप-अमेरिका जाने वाली उड़ानों का नया विकल्प बनाया था.
इंडिगो के एक अधिकारी के अनुसार, यह समझौता न सिर्फ भारत में रोजगार के अवसर बढ़ा रहा था, बल्कि व्यापार, टूरिज़्म और सरकार के लिए कर राजस्व में भी योगदान दे रहा था.
2022 में जहां अज़रबैजान के लिए 60,000 भारतीय यात्री गए थे, वहीं इंडिगो की उड़ानों के बाद यह संख्या बढ़कर 2.5 लाख हो गई. लेकिन अब जब बहिष्कार का माहौल है, इंडिगो की रणनीति है — शांत रहो और देखो क्या होता है.
राजनीति, धर्म और व्यापार: एक उलझी हुई कहानी
तुर्किये और अज़रबैजान का पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा होना केवल राजनीतिक निर्णय नहीं, एक धार्मिक और वैचारिक समर्थन भी है. तुर्की ने पाकिस्तान को ड्रोन और सैन्य सहायता दी — यह उस वक्त हुआ जब भारत के लोग तुर्की में भूकंप पीड़ितों की मदद कर रहे थे. यह विरोधाभास भारतीयों को अंदर तक चुभ गया.
बहिष्कार का संदेश: आतंकवाद और व्यापार साथ नहीं चल सकते
इस पूरे घटनाक्रम का सबसे बड़ा संदेश यह है कि भारत अब उन देशों के साथ व्यापार नहीं करेगा जो खुलेआम आतंकवाद का समर्थन करते हैं. भारतीय उपभोक्ता अब न केवल भावनात्मक रूप से सतर्क हो गया है, बल्कि आर्थिक निर्णयों में भी देशहित को सबसे ऊपर रख रहा है.
आर्थिक नुकसान से ज़्यादा ज़रूरी आत्म-सम्मान
तुर्किये और अज़रबैजान को यह समझने की जरूरत है कि भारत अब सिर्फ “बाजार” नहीं रहा. यह एक ऐसा देश है जो अपने आत्म-सम्मान के लिए किसी भी आर्थिक कीमत को चुकाने को तैयार है. और जब जनता एकजुट होकर कहती है “ना”, तो इसका असर सिर्फ बाजार नहीं, सरकारों की नीतियों पर भी होता है.
आने वाले समय में इन दोनों देशों को यह तय करना होगा कि क्या वे भारतीय व्यापार और पर्यटन को खोकर सिर्फ राजनीतिक समर्थन कमाना चाहते हैं, या फिर अपनी रणनीति में बदलाव कर भारत से रिश्ते सुधारना चाहते हैं.