अब महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव की नई बयार, जनता ही असरदार

अब महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव की नई बयार, जनता ही असरदार

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Published On: Sunday, October 20, 2024

Last Updated On: Thursday, May 1, 2025

assembly elections in maharashtra and jharkhand
assembly elections in maharashtra and jharkhand

बीते कुछ माह से देश में चुनावी माहौल है। बीते वर्ष के आखिर में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में विधानसभा का रण हुआ तो मार्च से जून तक देश में लोकसभा चुनाव की बयार चली। इसी के साथ आंध्र प्रदेश और ओडिशा में विधानसभा चुनाव भी हुए। हाल में हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। नई सरकारें कमान संभाल चुकी हैं। अब फिर चुनावी बयार आ चुकी है। महाराष्ट्र और झारखंड में जनता फैसला करेगी कि किसका होगा राज और किसे मिलेगा वनवास...

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Last Updated On: Thursday, May 1, 2025

हाइलाइट्स

  • आंध्र प्रदेश में जगन मोहन के खिलाफ चंद्रबाबू नायडू को जीत दिलाने में बेहद अहम भूमिका तेलुगु अभिनेता पवन कल्याण की रही, जिन्होंने जनसेना पार्टी बनाकर आंध्र प्रदेश में अभियान छेड़ा।
  • नायडू की जीत के सारथी बने उनके बेटे नारा लोकेश, जिन्होंने पूरे राज्य में यात्रा निकाल कर जनसंपर्क किया।
  • महाराष्ट्र और झारखंड में चुनावी रणभेरी बजने के साथ राजनीति की चालें भी आरंभ हो गई हैं।

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा (BJP) ने सरकार बनाई तो तेलंगाना में कांग्रेस को राज मिला। आंध्र प्रदेश और ओडिशा में सरकारें बदलीं जिसमें ओडिशा का परिणाम तो इतिहास बदलने वाला रहा। करीब ढाई दशक तक राज करने वाले नवीन बाबू यानी नवीन पटनायक की बीजद सत्ता से बाहर हो गई। कभी उसकी सहयोगी रही भाजपा ने सरकार बनाई। आंध्र प्रदेश में जगन मोहन के खिलाफ चंद्रबाबू नायडू का अभियान सफल रहा और वह सीएम बने। हालांकि इसमें बेहद अहम भूमिका तेलुगु अभिनेता पवन कल्याण की रही। जनसेना पार्टी बनाकर उन्होंने जो अभियान आंध्र प्रदेश में छेड़ा, वह जगन के सत्ता से बेदखल होने पर ही रुका। जगन राज में जेल तक ही हवा खा चुके नायडू के लिए यह चुनाव करो या मरो का था। इसमें उनकी जीत के सारथी बने उनके बेटे नारा लोकेश। पूरे राज्य में उन्होंने जो यात्रा निकाली, वही अंततः टीडीपी की न केवल विधानसभा चुनाव में जीत का आधार बनी बल्कि लोकसभा में भी टीडीपी (TDP) को इतनी सीटें मिलीं कि वह आज मोदी सरकार के दो प्रमुख सहयोगियों में से एक है।

छत्तीसगढ़ में भाजपा ने वापसी की और यही हाल कमोबेश राजस्थान का रहा जहां अशोक गहलोत का वापसी का सपना सपना ही रह गया। मप्र में कांग्रेस की वापसी की बातें कोरी कयास ही साबित हुईं। अब हरियाणा में भाजपा ने सारे कयासों या यूं कहें कि नैरेटिव को उलटते हुए लगातार तीसरी बार सरकार बनाई है। कहा जा रहा था कि हरियाणा की जनता मनोहर लाल की सरकार से खफा थी, इसलिए नायब सिंह सैनी को चुनाव से ठीक पहले सीएम बनाया गया। फिर भी कहा जा रहा था कि भाजपा के खिलाफ एंटी इंकंबेंसी है, लेकिन ये जनता है साहब। क्या सोचती है, कैसे वोट करती है, किसे वोट करती है कोई नहीं जानता…जम्मू-कश्मीर में भी यही देखने को मिला। कश्मीर में राज कर चुकी महबूबा मुफ्ती की पीडीपी (PDP) को जनता ने नकार ही दिया। वहां की जनता ने नेशनल कांफ्रेंस को पसंद किया। जम्मू में भाजपा पर प्यार लुटाया। यही सियासत है और यही लोकतंत्र की खूबसूरती। जनता जिसे चाहती है, वही राज करता है।

महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी और महायुति में है मुख्य मुकाबला

अब बारी है महाराष्ट्र और झारखंड की। मराठा धरती पर महाविकास अघाड़ी और महायुति में टक्कर है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना बंट चुकी है। कभी उनके सिपहसालार रहे एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) महाराष्ट्र के सीएम हैं। काका शरद पवार से बगावत कर एनसीपी (NCP) के अजीत पवार (Ajit Pawar) सरकार में शामिल हैं। भाजपा तो है ही, देवेंद्र फड़नवीस (Devendra Fadnavis) किंगमेकर सरीखी भूमिका में हैं और इस चुनाव में भाजपा को ही किंग बनाना चाहते हैं। दांव-पेंच का दौर तेज है। जनता के लिए लुभावनी घोषणाएं और योजनाएं भी चल रही हैं। अघाड़ी भी लुभाने में कोई कोर कसर बचा नहीं रही। भाजपा को आस है तो कांग्रेस भी ख्वाब सजा रही है। शरद पवार (Sharad Pawar) भी लोकसभा चुनाव में मिली कामयाबी के बाद आत्मविश्वास से भरे दिख रहे हैं जबकि उद्धव के लिए करो या मरो की स्थिति है। आइएनडीएआइए के सहयोगी कैसे अपनी नैया पार लगाते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।

झारखंड में झामुमो के लिए भाजपा है बड़ी चुनौती

झारखंड में भी मुकाबला खासा रोचक है। झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी झामुमो नीत महागठबंधन तमाम झंझावात के बीच वोटरों को लुभाने में लगा है। गुरुजी यानी शिबू सोरेन के परिवार में बिखराव हो चुका है। बहू सीता सोरेन अब भाजपा में हैं। बेटे हेमंत सोरेन जेल से लौटने के बाद फिर सीएम बन चुके हैं। गुरुजी के खास रहे चंपाई सोरेन सीएम की कुर्सी से हटने के बाद भाजपा के पाले में हैं। आदिवासी, विशेषकर संथाल क्षेत्र में भाजपा के लिए असरदार हो सकते हैं। कांग्रेस सरकार में है और चुनाव में मजबूत ठौर खोजने की जुगत में लगी है। भाजपा ने हिमंता बिस्वा सरमा और शिवराज सिंह चौहान सरीखे दिग्गजों को झारखंड के मैदान में काफी पहले ही उतार दिया है। अपनी असम ब्रांड राजनीति से हिमंता ने झारखंड में डेमोग्राफी और घुसपैठ को एक मुद्दा बना दिया है। शिवराज उसी तरह लोकप्रिय होते जा रहे हैं जैसे वह मप्र में मामा के रूप में रहे हैं। कुल मिलाकर चुनावी बिसात में मोहरे सजे हैं, चालें चली जा रही हैं…23 नवंबर की तारीख बताएगी कि जनता का प्यार किसे मिला।

अरुण श्रीवास्तव पिछले करीब 34 वर्ष से हिंदी पत्रकारिता की मुख्य धारा में सक्रिय हैं। लगभग 20 वर्ष तक देश के नंबर वन हिंदी समाचार पत्र दैनिक जागरण में फीचर संपादक के पद पर कार्य करने का अनुभव। इस दौरान जागरण के फीचर को जीवंत (Live) बनाने में प्रमुख योगदान दिया। दैनिक जागरण में करीब 15 वर्ष तक अनवरत करियर काउंसलर का कॉलम प्रकाशित। इसके तहत 30,000 से अधिक युवाओं को मार्गदर्शन। दैनिक जागरण से पहले सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल (हिंदी), चाणक्य सिविल सर्विसेज टुडे और कॉम्पिटिशन सक्सेस रिव्यू के संपादक रहे। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, करियर, मोटिवेशनल विषयों पर लेखन में रुचि। 1000 से अधिक आलेख प्रकाशित।
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