लगातार रील्स देखने का आंखों और नींद पर बुरा असर, Research में हुआ खुलासा

Authored By: स्मिता

Published On: Friday, August 22, 2025

Last Updated On: Friday, August 22, 2025

Reels Impact on Health – रील्स देखने से आंखों, नींद और दिमाग प्रभावित.
Reels Impact on Health – रील्स देखने से आंखों, नींद और दिमाग प्रभावित.

फिलीपींस के बारएमएम इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (BAARMM) के शोध में यह बात सामने आई है कि सोशल मीडिया पर एक घंटे की स्क्रॉलिंग भी हानिकारक है. यह न सिर्फ दिमाग को थका देता है, बल्कि आंखों और नींद पर भी बुरा प्रभाव डालता है.

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Friday, August 22, 2025

यदि आपको रोज स्मार्टफोन पर रील्स देखने की आदत बन गई है, (Reels Impact on Health) तो सावधान हो जाएं. यह बुरी आदत आपकी दिमाग और आंखें दोनों को थका सकती हैं. नींद भी प्रभावित हो सकती है. फिलीपींस के बारएमएम इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के रिसर्च में यह चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है. केवल एक घंटे तक लगातार रील्स देखने से आंखों में असुविधा महसूस हो सकती है.

रील्स के साइड इफेक्ट

अध्ययन बताता है कि सेहत पर सिर्फ मोबाइल का ही नहीं बल्कि उसका कंटेंट भी प्रभाव डालता है. रिसर्च में पाया गया कि तेज भागने वाले रील्स देखने से आंखों की पुतलियों में उतार-चढ़ाव ज्यादा होता है, जो शांत वीडियो देखने की तुलना पर कहीं अधिक दबाव डालता है.

मानसिक थकान और नींद की कमी

लंबे समय तक स्मार्टफोन के उपयोग से न केवल आंखों पर असर पड़ता है, बल्कि यह मानसिक थकान और नींद की कमी से भी जुड़ा हो सकता है. 20 मिनट से अधिक लगातार स्मार्टफोन इस्तेमाल करना शरीर और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है. यह कई तरह की समस्याओं को भी जन्म देता है.

नींद में गड़बड़ी जैसे लक्षण (Mental Fatigue Symptoms)

शोधकर्ताओं के अनुसार, 60% प्रतिभागियों ने आंखों में जलन, गले और हाथों में दर्द की शिकायत की. 83% को चिंता, नींद में गड़बड़ी और मानसिक थकान जैसे लक्षण दिखाई दिए. आंखों की गतिविधियों को मापने पर ब्लिंक रेट यानी पलक झपकने की दर, इंटर-ब्लिंक इंटरवल कम पाया गया.
अध्ययन के अनुसार, सोशल मीडिया रील्स पर लगातार स्क्रीन ब्राइटनेस और इंटेंसिटी बदलती रहती है. इससे पलक झपकने की दर कम हो जाती है. पुतली का फैलाव बढ़ जाता है, जो सीधा आंखों की थकान और असुविधा का कारण बनता है.

आंखों के लिए छोटे छोटे ब्रेक हैं जरूरी (Eye Health)

लगभग 40% प्रतिभागियों ने बताया कि वे ब्लू लाइट फिल्टर, डार्क मोड जैसे उपाय अपनाकर इस परेशानी को कम करने की कोशिश करते है. विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि छोटे-छोटे ब्रेक लेना और आंखों को आराम देना डिजिटल स्ट्रेन से बचाव का सबसे आसान उपाय है.

सीमित करें स्क्रीन टाइम (Screen Time)

मोबाइल स्क्रीन के इस्तेमाल से आंखों में डिजिटल तनाव, सिरदर्द और “टेक्स्ट नेक” जैसी शारीरिक समस्यायें होती हैं. मेलाटोनिन के स्तर को कम करके यह नींद में खलल डाल सकता है. यह चिंता, अवसाद और सामाजिक अलगाव को बढ़ाकर मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है. यह गतिहीन जीवनशैली को बढ़ावा देकर शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है. इन प्रभावों को कम करने के लिए स्क्रीन पर समय सीमित करें. 20-20-20 नियम का पालन करें, ब्रेक लें और स्क्रीन की चमक को एडजस्ट करें.

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About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।


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