लाइक्स और फिल्टर्स की डिजिटल दौर में बच्चों को कैसे बनाए इमोशनली स्ट्रॉंग? थेरेपिस्ट ने बताए 3 टिप्स

Authored By: Galgotias Times Bureau

Published On: Friday, November 7, 2025

Updated On: Friday, November 7, 2025

डिजिटल दौर में बच्चों की इमोशनल स्ट्रेंथ बढ़ाने के लिए थेरेपिस्ट के 3 टिप्स.

आज के डिजिटल दौर में स्क्रीन बच्चों के सोचने और महसूस करने के तरीके को बहुत प्रभावित करती हैं. एक थेरेपिस्ट के मुताबिक, अगर माता-पिता मिलकर समझदारी से बच्चों की परवरिश करें, तो यह उनके भावनात्मक स्वास्थ्य को मजबूत बना सकता है और उन्हें ज़्यादा संवेदनशील और आत्मविश्वासी बना सकता है.

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Updated On: Friday, November 7, 2025

Kids Emotional Strength Tips: आज के समय में माता-पिता काम, परिवार और बच्चों की परवरिश के बीच संतुलन बनाने की पूरी कोशिश करते हैं. नौकरी का दबाव, स्कूल के व्हाट्सएप ग्रुप और ‘सब कुछ सही करने’ की कोशिश के बीच वे अक्सर यह भूल जाते हैं कि बच्चों की भावनात्मक दुनिया पर सबसे ज़्यादा असर किस का पड़ रहा है, उनके सामने मौजूद स्क्रीन का.

आज 9 साल के बच्चे भी कैमरे पर अपनी तस्वीर देखकर चिंतित होते हैं कि वे कैसे दिख रहे हैं, जबकि किशोर अपनी ज़िंदगी की तुलना सोशल मीडिया पर देखी जाने वाली ‘परफेक्ट’ ज़िंदगी से करने लगे हैं. ऐसे माहौल में बच्चे बाहरी दिखावे को असली खुशी और आत्ममूल्य से ज़्यादा महत्व देने लगते हैं. यही कारण है कि आज सह-पालन यानी दोनों माता-पिता का मिलकर बच्चों को भावनात्मक रूप से समझना और संभालना पहले से कहीं ज़्यादा जरूरी हो गया है.

एचटी लाइफस्टाइल से बातचीत में बाल और परिवार परामर्शदाता साक्षी सिंगला ने बताया कि जब दोनों माता-पिता मिलकर बच्चों की परवरिश करते हैं, तो इसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है. उन्होंने तीन ऐसे तरीके बताए, जिनसे सह-पालन बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत और खुशहाल बना सकता है.

माता-पिता के व्यवहार से बनती है बच्चे की भावनात्मक समझ

अक्सर माता-पिता बच्चों के स्क्रीन टाइम की चिंता करते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि बच्चे उनके डिजिटल व्यवहार से भी सीखते हैं. बच्चे बहुत समझदार होते हैं , वे महसूस कर लेते हैं जब कोई केवल दिखावे के लिए खुश है. अगर माता-पिता ऑनलाइन मुस्कुराते हैं लेकिन असल में एक-दूसरे से दूरी बनाए रखते हैं, तो बच्चे भी वही सीखते हैं कि भावनाओं को ‘दिखाना’ ज़रूरी है, ‘जीना’ नहीं. इसलिए जरूरी है कि दोनों माता-पिता साथ मिलकर ईमानदार जुड़ाव पर ध्यान दें, न कि सिर्फ़ दूसरों को प्रभावित करने पर. यही सच्चा सह-पालन है.

बच्चों को सिखाता है खुलकर और सम्मान से बात करना

जब बच्चे अपने माता-पिता को एक-दूसरे से सम्मान और ईमानदारी से बात करते हुए देखते हैं, तो वे भी ऐसा करना सीखते हैं. इससे उन्हें समझ आता है कि प्यार का मतलब झगड़े या दिखावा नहीं, बल्कि भरोसा और समझ है. जब बच्चे देखते हैं कि माता-पिता ऑनलाइन पोस्ट करने के बजाय आपस में बैठकर बातें सुलझाते हैं, तो वे सीमाओं और संवाद की अहमियत समझते हैं. इसी तरह, जब वे स्नेह और अपनापन खुलकर दिखाया जाता देखते हैं, तो वे जानते हैं कि असली प्यार कैसा होता है.

बच्चों को समझाता है कि असली घर कैसा होता है

आज बच्चे प्यार और रिश्तों के बारे में सिर्फ अपने घर से नहीं, बल्कि सोशल मीडिया से भी सीखते हैं. इसलिए माता-पिता के लिए यह जरूरी है कि वे अपने बच्चों को दिखाएं कि स्क्रीन से बाहर भी असली ज़िंदगी होती है, जिसमें परिवार के साथ समय बिताना सबसे कीमती होता है. जब माँ बच्चे को नहला रही होती है और पिता खाना बना रहे होते हैं, तो बच्चे देखते हैं कि परिवार का मतलब एक-दूसरे की मदद करना और साथ रहना है. जब माता-पिता गपशप की जगह समझदारी, तुलना की जगह दया, और दिखावे की जगह सच्चाई को अपनाते हैं, तो बच्चे सीखते हैं कि प्यार को साबित करने के लिए उसे दिखाने की नहीं, बल्कि महसूस करने की जरूरत होती है.

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