विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को क्यों नहीं किया जनता ने नोटिस, गांधी परिवार की बेरूखी तो नहीं

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को क्यों नहीं किया जनता ने नोटिस, गांधी परिवार की बेरूखी तो नहीं

assmebly election big question on gandhi family
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हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की कमजोर प्रदर्शन ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गांधी परिवार की सक्रियता की कमी और पार्टी नेतृत्व का जमीनी स्तर से कटाव कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण हो सकता है।

कभी महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस का बोलबाला था। राज्य के पहले मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण से लेकर शरद पवार तक, कांग्रेस का परचम हर दौर में लहराता रहा। लेकिन 1995 में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने कांग्रेस के इस मजबूत किले में सेंध लगाई, जिसके बाद कांग्रेस के लिए स्थिति कभी वैसी नहीं रही।

शनिवार को कांग्रेस के लिए असमंजस और चिंता का दिन साबित हुआ। लोकसभा चुनावों में 99 सीटों तक पहुंचने वाली कांग्रेस, हरियाणा में हार के बाद अब महाराष्ट्र और झारखंड में भी कमजोर प्रदर्शन करती दिख रही है।

महाराष्ट्र में कांग्रेस का गिरता प्रदर्शन

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के शुरुआती रुझानों में कांग्रेस को बड़ा झटका लग रहा है। दोपहर 12 बजे तक कांग्रेस केवल 19 सीटों पर बढ़त बनाए हुए थी। यह प्रदर्शन उस कांग्रेस से बिल्कुल विपरीत है जिसने महा विकास अघाड़ी के तहत लोकसभा चुनावों में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को चुनौती दी थी।

झारखंड में झामुमो के सहारे बची उम्मीद

झारखंड में भी कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर रहा है, लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के शानदार प्रदर्शन ने इंडिया ब्लॉक को बहुमत की ओर पहुंचा दिया है। यह कांग्रेस के लिए एकमात्र राहत की बात है।

कांग्रेस की रणनीति पर सवाल

विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का जमीनी स्तर पर कमजोर संगठन और प्रभावी नेतृत्व की कमी उसकी हार का मुख्य कारण है। महाराष्ट्र में कांग्रेस न केवल बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के सामने कमजोर पड़ती दिख रही है, बल्कि यह भी स्पष्ट हो रहा है कि पार्टी अपने सुनहरे दौर से कोसों दूर हो चुकी है।

स्थानीय नेतृत्व की कमी बनी चुनौती

कांग्रेस ने कई राज्यों में चुनावी रणनीति के लिए स्थानीय नेताओं पर भरोसा किया, लेकिन प्रभावी नेतृत्व और मजबूत संगठन की कमी ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया। स्थानीय मुद्दों और जनता से सीधे संवाद स्थापित करने में भी पार्टी विफल रही।

गांधी परिवार की रणनीति पर सवाल

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि गांधी परिवार का सीमित प्रचार अभियान और उनकी “बेरुखी” ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में निराशा पैदा की। कांग्रेस के आलोचक यह भी मानते हैं कि पार्टी को गांधी परिवार पर अत्यधिक निर्भरता के बजाय नेतृत्व में विविधता लाने की जरूरत है।

जनता से जुड़ाव में कमी

चुनावी प्रचार में कांग्रेस का जोर पारंपरिक मुद्दों पर रहा, जबकि अन्य पार्टियां जैसे बीजेपी और क्षेत्रीय दलों ने स्थानीय मुद्दों और विकास को प्राथमिकता दी। इससे कांग्रेस का जुड़ाव जनता से कमजोर पड़ गया।

आगे का रास्ता क्या?

कांग्रेस को अब अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा और जनता के साथ सीधे संवाद स्थापित करने के लिए नए तरीकों को अपनाना होगा। गांधी परिवार की भूमिका पर पुनर्मूल्यांकन और संगठनात्मक बदलाव पार्टी को नई दिशा देने में मदद कर सकते हैं।

विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए एक चेतावनी के रूप में देखे जा रहे हैं, जिसमें पार्टी को भविष्य के चुनावों के लिए नई रणनीति और दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।

About the Author: सतीश झा
सतीश झा की लेखनी में समाज की जमीनी सच्चाई और प्रगतिशील दृष्टिकोण का मेल दिखाई देता है। बीते 20 वर्षों में राजनीति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचारों के साथ-साथ राज्यों की खबरों पर व्यापक और गहन लेखन किया है। उनकी विशेषता समसामयिक विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत करना और पाठकों तक सटीक जानकारी पहुंचाना है। राजनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों तक, उनकी गहन पकड़ और निष्पक्षता ने उन्हें पत्रकारिता जगत में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है

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