किसी भी चीज़ की अति हमें कर देती है लक्ष्य से दूर

Authored By: स्मिता

Published On: Thursday, August 8, 2024

Updated On: Thursday, August 8, 2024

incidents of violence in Bangladesh

पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश में विरोध प्रकट करने का मामला हो या खुद मौज-मस्ती करने का काम हो। हर तरफ अति की जा रही है। भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के ज्ञाता भी अति से बचने की सलाह देते हैं। जानते हैं 'अति सर्वत्र वर्जयेत' श्लोक का सही अर्थ।

अभी पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश में आम जनता ने सड़कों पर निकल कर अपना विरोध जताया। यह विरोध तख्तापलट, देश में तोड़फोड़, हिंसा और आगजनी की घटना के रूप में सामने आया। ऐसा घृणित विरोध तो अति है, जो निश्चित तौर पर व्यक्ति को विनाश की ओर ले जाता है। इन दिनों हर तरफ अति की जा रही है। हम खाने-पीने और मौज-मस्ती करने में भी अति कर देते हैं। उदाहरणस्वरूप हम मौज-मस्ती करते-करते सड़क दुर्घटना को अंजाम दे देते हैं। भारतीय संस्कृति में इसी अति की आलोचना की गई है। भारतीय ग्रंथ के निचोड़ इस ओर इशारा करते हैं कि अति करने पर व्यक्ति को आने वाले समय में दुष्परिणाम भोगने पड़ सकते हैं। क्या रस्सी को अधिक खींचने पर उसकी लोच का गुण सदा के लिए समाप्त नहीं हो जाता है? इसलिए भारतीय धर्मग्रंथों में यह स्पष्ट कहा गया है, ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’। अति करने से हमेशा बचना चाहिए। इसका परिणाम बुरा होता है।

हर चीज की अति बुरी

आध्यात्मिक गुरु और गांधीवादी नेता आचार्य विनोबा भावे ने कहा, ‘हर चीज की अति बुरी होती है। जो व्यक्ति किसी भी चीज को संयम के साथ करता है, वह एक अच्छे मार्गदर्शक के रूप में काम करने लगता है। ऐसे लोगों को न जल्दबाजी अच्छी लगती है और न ही किसी काम को पूरा करने या करवाने के लिए बहुत अधिक दवाब बनाना। असल में बहुत अधिक लालच एक अच्छा संकेत नहीं है। यदि आप किसी भी काम को करने के लिए अति कर देंगे, तो वह चीज़, पैसा, रिश्ता, भावना खत्म हो जाएगी। इससे क्रोध, अहंकार, हीन-भावना आदि जैसी समस्या- मुद्दे या बुरी चीजें पैदा होंगी। इसलिए अति से बचना ही श्रेष्यकर है।’

माध्यम मार्ग से लक्ष्य पाने में आजादी

महात्मा बुद्ध ने अपने संदेशों में मध्यम मार्ग अपनाने की बात कही है। मध्यम मार्ग का शाब्दिक अर्थ है ‘मध्य मार्ग’। आपने अकसर देखा होगा कि दो सड़क को जो विभाजित किया जाता है, उसका नाम मध्य मार्ग दिया जाता है। इसी मध्य मार्ग से यात्रियों को चलने की सलाह दी जाती है। इससे राह संतुलित हो पाती है। जीवन में मध्यम मार्ग अपनाने वाले व्यक्ति अप्रत्यक्ष रूप से बौद्ध धर्म के दर्शन से प्रभावित होते हैं। बुद्ध की तरह संतुलन पाने के लिए वे मध्य मार्ग चुनते हैं। बुद्ध ने अपने अनुयायियों से सांसारिक सुख में लिप्त होने और सख्त संयम और तप के अभ्यास की दो चरम सीमाओं से बचने के लिए कहा। उन्होंने इसकी बजाय ‘मध्यम मार्ग’ को अपनाना सिखाया, ताकि सही लक्ष्य को पाया जा सके।

संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता है ब्रह्मांड

अंग्रेजी के लोकप्रिय लेखक अमीश त्रिपाठी अपनी किताब ओथ ऑफ़ वायुपुत्रा में कहते हैं, ‘ किसी भी चीज़ की अधिकता बुरी होती है। हममें से कुछ लोग अच्छाई की ओर आकर्षित होते हैं और कुछ लोग बुराई की तरफ भी आकर्षित हो जाते हैं। ब्रह्मांड संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता है। जो कुछ लोगों के लिए अच्छा है, अति करने पर वह दूसरे कुछ लोगों के लिए बुरा भी हो सकता है। कृषि हम मनुष्यों के लिए अच्छी है, क्योंकि यह हमें भोजन की निश्चित आपूर्ति प्रदान करती है। पर हम जब पशुओं के रहने के स्थान पर कब्ज़ा खेती करने लग जाते हैं, तो खेती उनके लिए बुरी हो जाती है। क्योंकि कृषि के कारण पशु अपने जंगल और चरागाह खो देते हैं।

About the Author: स्मिता
धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोध परक पत्रकारिता का लंबा अनुभव। समसामयिक मुद्दों पर आम और ख़ास से बातचीत करना और उन्हें नए नजरिये के साथ प्रस्तुत करना यूएसपी है।

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