क्या बांग्लादेश बनेगा एक और पाकिस्तान
Authored By: विशेष संवाददाता, गलगोटियाज टाइम्स
Published On: Wednesday, August 21, 2024
Updated On: Thursday, August 22, 2024
जब पड़ोस अस्थिर होता है, तब उसका असर हम पर भी पड़ता है। आइए इसे बांग्लादेश के हालात के संदर्भ में समझते हैं...
कहते हैं कि आपने जीवन में शांति कितनी होगी, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपके पड़ोसी कैसे हैं। यदि पड़ोस शांत, गंभीर और सद्व्यवहारी है तो मान लीजिए कि आपका जीवन भी सुकून के साथ गुजरने की प्रबल संभावना है। यदि बगल में खटपट होती रहती है और साजिशों वाला दिमाग काम करता हो तो आपके घर तक उसका असर आने की आशंका बहुत बढ़ जाती है। भारत के साथ भी कुछ इसी तरह की स्थिति है। हम वैश्विक ताकत बनने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहे हैं। आर्थिकी बेहतर हो रही है, लेकिन हमारा पड़ोस लंबे समय से चिंता का बड़ा कारण रहा है। पश्चिम में पाकिस्तान(Pakistan) और उत्तर और पूर्व में चीन (China) तथा इसी सीमा के आसपास रुख बदलता नेपाल। मोर्चे कम नहीं थे कि अब बांग्लादेश (Bangladesh) के रूप में एक और विकराल समस्या आती दिख रही है। दुनिया में तख्तापलट कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब वह ठीक आपके पड़ोस में हो तो चिंतित होना लाजिमी भी है और जरूरी भी। बांग्लादेश के साथ भारत (India) की यही कहानी है। कभी हम ही उसकी आजादी का आधार बने थे, लेकिन आज वहां जो स्थिति है, वह स्पष्ट संकेत कर रही है कि बांग्लादेश हमारे लिए नया खतरा हो सकता है। बड़ा सवाल है कि क्या बांग्लादेश एक और पाकिस्तान बनने की राह पर अग्रसर है?
यह बेहद अहम प्रश्न है। खासकर, दुनिया में बढ़ते कट्टरपंथ के बीच। जब बीते दिनों शेख हसीना की निर्वाचित सरकार को जबरन सत्ता से हटाया गया, वह भी अत्यंत हिंसक तरीके से तो बांग्लादेश में लोकतंत्र वेंटिलेटर पर चला गया। वहां सेना ने तख्तापलट तो नहीं किया, लेकिन शेख हसीना से महज 45 मिनट में इस्तीफा देकर देश छोड़ने को जरूर कह दिया। तथाकथित युवा आंदोलन के बीच जिस कदर वहां कत्ल-ए-आम और आगजनी व लूटपाट हुई. वह बताती है कि हालात अब भी ठीक नहीं हैं और न ही जल्द ठीक होने के आसार हैं। इसकी वजह है। भले ही बांग्लादेश में नोबल विजेता व प्रबुद्ध बैंकर मोहम्मद युनूस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार बन गई हो और वह अल्पसंख्यक हिंदुओं की रक्षा का वादा भी कर रही हो, लेकिन बीते कुछ दिनों की स्थितियां-परिस्थितयां देखते हुए बांग्लादेश में सौहार्द के लौटने की आशा बेमानी सी दिख रही है। इसके कारण भी हैं। पहला-बांग्लादेश से शेख हसीना सरकार को विद्रोह कर हटाने वाले युवा आंदोलनकारियों के अपनी पार्टी बनाने की खबरों का सामने आना। दूसरा-कल ही अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस की पहली बार यह कहना कि बांग्लादेश में जल्द चुनाव कराकर नई सरकार का गठन फिलहाल संभव नहीं है।
आइए इन दोनों कारणों के संबंध में थोड़ी बात करें। आंदोलनकारी छात्र नेताओं की यह इच्छा कि वे बांग्लादेश के संचालन के लिए खुद राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव में उतरेंगे, बहुत कुछ कहती है। जो खबरें बांग्लादेशी (Bangladeshi) और विदेशी मीडिया (Foreign Media) में आईं, उनके अनुसार छात्र नेता बांग्लादेश की कथित द्विदलीय राजनीतिक व्यवस्था में यकीन नहीं करते हैं। आगे बढ़ने के पहले यह जानना जरूरी है कि बांग्लादेश में शेख हसीना की अवामी लीग और खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ही अदल-बदल कर सत्ता संभालती रही हैं। इसमें बीते करीब डेढ़ दशक से अवामी लीग का शासन रहा है, शेख हसीना (Sheikh Hasina) पीएम रही हैं। पहले खालिदा जिया पीएम रह चुकी हैं। कुछ अन्य छोटे दल भी हैं, लेकिन उनकी बहुत प्रासंगिकता सत्ता हासिल करने के लिहाज से नहीं है। अतः छात्र आंदोलन से जुड़े प्रमुख चेहरों का नई पार्टी बनाकर सत्ता में साझेदार या कब्जेदार बनने की बात के गहन निहितार्थ हैं। यह अब पूरी दुनिया जान चुकी है कि कैसे बांग्लादेश में छात्रों का आंदोलन कट्टरपंथी और विदेशी शक्तियों के हाथ में चला गया और परिणामस्वरूप भयानक हिंसा और कत्ल-ए-आम हुआ। शेख हसीना ने सत्ता तो छोड़ ही दी थी, यदि छात्र आंदोलन कर रहे थे तो इसके बाद शांत हो जाते। किंतु लगता है कि वहां योजना कुछ और ही थी, और है। बांग्लादेश के पिता माने जाने वाले शेख मुजीबुर्रहमान (Sheikh Mujibur Rehman) की प्रतिमा पर जिस तरह पेशाब की गई और तोड़ा गया, वह बताता है कि उग्रता किस स्तर तक है, घृणा किस स्तर तक है। पीएम आवास से महिलाओं के अंतः वस्त्र लेकर उनका खुला प्रदर्शन दिखाता है कि यह छात्र आंदोलन से बहुत आगे की बात थी। इसके बाद भी आंदोलन का शांत न होना और शहर-शहर, गांव-गांव हिंदू अल्पसंख्यकों से बलात्कार, हत्या और मंदिरों में तोड़फोड़ बताती है कि साजिश कितनी गहरी है। राजनीतिक पार्टी बनाने का अधिकार किसी को भी है, लेकिन जिस तरह की हिंसा हुई, उसके क्या छात्र आंदोलन एक शुचिता वाले राजनीतिक दल की गारंटी दे सकता है। पूरी आशंका है कि कट्टरपंथी बांग्लादेश की सत्ता की तरफ कदम बढाएंगे और यह भारत के लिए खासा चिंतानजक होगा।
अब दूसरी बात-मोहम्मद यूसुफ (Mohammed Yusuf) द्वारा जल्द चुनाव न होने की बात कहना भी इस बात का संकेत है कि बांग्लादेश को सामान्य होने में अभी समय लगेगा। यूसुफ ने संकेत किया है कि बांग्लादेश में शेख हसीना के कार्यकाल में हुए बदलावों को सही करना होगा। चुनाव आयोग से लेकर मीडिया तक को सही करना होगा। यह सही करने की प्रक्रिया जाहिर है कि लंबी चलेगी और तब तक बांग्लादेश अंतरिम सरकार के भरोसे ही रहेगा। भले ही छात्रों की पसंद पर मोहम्मद यूसुफ को अंतरिम सरकार का प्रमुख सलाहकार बनाया गया है, लेकिन जिस तरह से कुछ छात्र नेताओं ने बांग्लादेश की दोनों पार्टियों पर भरोसे से इन्कार कर दिया है, वैसे ही वे अंतरिम सरकार पर भी कुछ समय बाद अविश्वास प्रकट कर दें। तब फिर एक बार अनिश्चतितता की स्थिति होगी।
एक और बात। जैसे बांग्लादेश में छात्रों का आंदोलन हुआ, सत्ता पलटी, वैसा ही 2010 से अरब क्षेत्र में हुआ था। अरब स्प्रिंग नाम की कथित क्रांति ट्यूनीशिया से आरंभ हुई थी जिसने सालेह की सत्ता गिराने के बाद फैलते हुए मिस्र में हुस्ने मुबारक और लीबिया में कर्नल गद्दाफी को सत्ता से बेदखल कर दिया था। गद्दाफी तो भयावह मौत मारे गए थे। यह क्रांति सीरिया, यमन समेत दस से अधिक देशों तक पहुंची थी। लोकतंत्र की बातें की गई थीं. आज आप देखेंगे तो इनमें से अधिकांश देशों में स्थिति पहले से बदतर ही है। यानी क्रांति ने सत्ता तो बदली, स्थिति पूरी तरह नहीं बदल सकी। इसी तरह की आशंका अब बांग्लादेश में दिखती है। दरअसल जिस युवा भीड़ ने प्रतिमा तोड़ी, आगजनी की, पीएम आवास पर कब्जा किया, उसमें से अधिकांश अपने देश के मुक्ति अभियान के गौरवमनयी इतिहास से परिचित ही नहीं लगते। वर्ना शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा के साथ इस कदर घिनौना व्यवहार न होता। नौकिरयों में जिस कोटे के लिए आंदोलन आरंभ हुआ था, वह बहुत पहले ही वापस ले लिया था, लेकिन फिर भी कथित आंदोलन जारी रहा। जाहिर है कि यह आगे के लिए भी सचेत करता है
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