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Women’s Day Special : बॉलीवुड में बढ़ रहा महिला निर्देशकों का दबदबा, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मिली नई पहचान
Women’s Day Special : बॉलीवुड में बढ़ रहा महिला निर्देशकों का दबदबा, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मिली नई पहचान
Authored By: अंशु सिंह
Published On: Tuesday, March 4, 2025
Updated On: Friday, March 7, 2025
हिंदी सिनेमा में पुरुष निर्देशकों का वर्चस्व सालों से रहा है. उन्हीं के बीच से फातिमा बेगम, शोभना समर्थ एवं जद्दनबाई जैसी निर्देशक निकलीं, जिन्होंने उस दौर में डायरेक्शन की कमान संभाली जब स्त्रियों का फिल्मी दुनिया में कदम रखना भी अच्छा नहीं समझा जाता था. फिर 70-80 के दशक में सई परांजपे, अरुणा राजे, सिमी ग्रेवाल, मीरा नायर सरीखी गिनी-चुनी महिला निर्देशक हुईं. दशकों बाद आज बॉलीवुड में महिला निर्देशकों की एक अच्छी-खासी फौज दिखाई देती है, जो सार्थक एवं अर्थपूर्ण सिनेमा से पूरी दुनिया को रू-ब-रू करा रही हैं. देश ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उनकी अपनी पहचान बन रही है.
Authored By: अंशु सिंह
Updated On: Friday, March 7, 2025
हाइलाइट्स
- बॉक्स ऑफिस पर महिला निर्देशित फिल्मों की कमाई
- निर्देशक फराह खान की फिल्म ‘हैपी न्यू ईयर’ ने जहां करीब 295 करोड़ रुपये कमाए थे.
- जोया की फिल्म ‘गली बॉय’ ने दुनिया भर में 238.16 करोड़ रुपये एवं ‘जिन्दगी न मिलेगी दोबारा’ ने 174.5 करोड़ रुपये की कमाई की थी.
- मेघना गुलजार की फिल्म ‘राजी’ ने 130 करोड़ रुपये एवं ‘सैम बहादुर’ ने 128.17 करोड़ रुपये की कमाई की थी.
- अभिनेत्री कंगना रनौत द्वारा निर्देशित फिल्म’ मणिकर्निका’ भी कुल 132 करोड़ रुपये कमाने में सफल रही थी.
Women’s Day Special: भारतीय महिला निर्देशक (Womens Day Special)अब देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपना परचम लहरा रही हैं. बीते वर्ष ही इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में उनका जलवा सबने देखा. निर्देशक पायल कपाड़िया की फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन एज लाइट’ को गोल्डन ग्लोब, बाफ्टा एवं कान्स के ग्रां पिक्स जैसे कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में नॉमिनेशंस मिले. ऐसे ही निर्देशक शुचि तलाटी की फिल्म ‘गर्ल्स विल बी गर्ल्स’ को सनडांस फिल्म फेस्टिवल में ड्रामेटिक वर्ल्ड सिनेमा के लिए ऑडिएंस अवॉर्ड मिला. निर्देशक किरण राव की फिल्म ‘लापता लेडीज’ को आलोचकों से लेकर आम दर्शकों ने खूब सराहा. मेलबर्न के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इसे बेस्ट फिल्म (क्रिटिक्स च्वाइस) का अवॉर्ड मिला. फिल्म की स्क्रीनिंग टोरंटो फिल्म फेस्ट में भी की गई. महिला निर्देशकों के बढ़ते दबदबे का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि धर्मशाला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीन की गई कुल 45 फीचर फिल्मों में 24 फिल्मों की निर्देशक महिला थीं.
अपनी शर्तों पर काम कर रहीं महिला निर्देशक
ये सच है कि फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले सपोर्ट एवं प्रोत्साहन कम मिलता है. फिर वह हॉलीवुड हो या बॉलीवुड. लेकिन समय बदल रहा है. आज की महिला निर्देशक किसी पर निर्भर नहीं हैं. वे अपनी शर्तों पर फिल्में बना रही हैं और उनके डायरेक्शन की डोर भी अपने हाथों में रख रही हैं. दिलचस्प ये है कि अब इंडस्ट्री के बड़े सितारे तक महिला निर्देशकों के साथ काम करने में पीछे नहीं रहे. फिर वह रणवीर सिंह हों, विक्की कौशल, रितिक रोशन, शाह रुख खान या अक्षय कुमार. बॉलीवुड की जानी-मानी निर्देशक जोया अख्तर की ‘लक बाई चांस’, ‘जिन्दगी न मिलेगी दोबारा’, ‘दिल धड़कने दो’ एवं ‘गली बॉय’ में बॉलीवुड के शीर्ष अभिनेताओं ने काम किया है. एक फिल्मी परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद जोया ने अपने दमखम पर इंडस्ट्री में जगह बनाई है.
मेघना ने खुद को इंडस्ट्री में किया स्थापित
राखी एवं गुलजार की बेटी, मेघना गुलजार की प्रतिभा से पूरी इंडस्ट्री वाकिफ है. लेखिका, कवित्री, निर्माता होने के साथ ही मेघना एक शानदार निर्देशक भी हैं. पिता की ‘माचिस’ एवं ‘हूतूती’ जैसी फिल्मों में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम करने वालीं मेघना द्वारा निर्देशित पहली फिल्म ‘फिलहाल’ साल 2002 में आई थी. हालांकि, बॉक्स ऑफिस पर वह फ्लॉप रही. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और फिल्म ‘तलवार’ से दमदार वापसी की. इसके बाद मेघना ने ‘गिल्टी’ एवं ‘राजी’ फिल्में बनाईं. ‘राजी’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. एक संवेदनशील निर्देशक के रूप में पहचान बनाने वालीं मेघना की ‘छपाक’ एवं ‘सैम बहादुर’ को भी सबने खूब सराहा.
सफल कोरियोग्राफर से फराह बनीं सफल निर्देशक
एक कोरियोग्राफर के रूप में इंडस्ट्री में नाम कमाने वाली फराह खान ने जब निर्देशन में हाथ आजमाने का फैसला लिया, तो यहां भी वे अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहीं. एक महिला निर्देशक के तौर पर उन्होंने कॉमर्शियल सिनेमा को अलग ऊंचाइयों पर पहुंचाया. फराह ने ‘मैं हूं ना’, ‘ओम शांति ओम’, ‘हैप्पी न्यू ईयर’ जैसी फिल्में दी हैं. अपने करियर में 40 से अधिक फिल्में कर चुकीं अभिनेत्री नंदिता दास एक लेखक भी हैं. उन्होंने साल 2008 में फिल्म ‘फिराक’ से निर्देशन में कदम रखा था. इसके दास साल बाद उन्होंने ‘मंटो’ का डायरेक्शन किया. इसकी स्क्रीनिंग कान्स फिल्म फेस्टिवल में की गई थी. इनकी आखिरी निर्देशित फिल्म ‘ज्वीगाटो’ थी, जो साल 2023 में रिलीज हुई थी. यह एक फूड डिलिवरी राइडर एवं उसके परिवार की कहानी थी.
गौरी शिंदे और अश्विनी अय्यर ने बनाई खास पहचान
महिला निर्देशकों की जब-जब बात चलेगी, तो कल्पना लाजमी, दीपा मेहता, अपर्णा सेन, तनुजा चंद्रा, पूजा भट्ट एवं कोंकणा सेन शर्मा का उल्लेख करना जरूरी होगा. इन सभी ने निर्देशन के क्षेत्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी है. हाल के दिनों में गौरी शिंदे, अश्विनी अय्यर तिवारी एवं अलंकृता श्रीवास्तव जैसी फिल्म निर्देशकों ने अपने काम से सबको प्रभावित किया है. फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ (2012) से निर्देशन में कदम रखने वाली गौरी ने अपने करियर की शुरुआत एडवर्टाइजिंग से की थी. उन्होंने 100 से अधिक एडवर्टाइजिंग फिल्म्स एवं शॉर्ट फिल्म्स का निर्माण किया है. उनकी शॉर्ट फिल्म ‘ओ मैन’ (2001) को बर्लिन फिल्म फेस्टिवल के लिए चुना गया था. गौरी की ‘डियर जिन्दगी’ भी एक संवेदनशील फिल्म थी, जिसमें शाह रुख खान और आलिया भट्ट थे. अश्विनी अय्यर तिवारी भी विज्ञापन के क्षेत्र से फिल्म निर्देशन में आईं. साल 2016 में उन्होंने पहली बार ‘निल बटे सन्नाटा’ का निर्देशन किया, जो एक कॉमेडी ड्रामा थी. इसके पश्चात् अश्विनी ने ‘बरेली की बर्फी’, ‘पंगा’ बनाई. बॉलीवुड की उभरती हुई महिला निर्देशकों में अब अलंकृता श्रीवास्तव का नाम भी शामिल हो चुका है. एक समय प्रकाश झा की सहायक निर्देशक रहीं अलंकृता ने फिल्म ‘टर्निंग 30’ से निर्देशन की कमान संभाली. उसके बाद ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ का निर्देशन किया. इसकी लेखिका भी वे खुद थीं. फिल्म को व्यापक प्रशंसा मिली.
फातिमा बेगम थीं देश की पहली महिला निर्देशक
फिल्मों में स्त्रियों का काम करना कभी आसान नहीं रहा. क्योंकि परिवार एवं समाज को ये कतई स्वीकार नहीं था कि उनके घर की स्त्रियां फिल्मी दुनिया से जुड़ें. इसलिए विरोध होता रहा. लेकिन साल 1926 में पहली बार फातिमा बेगम ने इस मान्यता को चुनौती दी. उन्होंने न सिर्फ फिल्मों में अभिनय किया, बल्कि पटकथा भी लिखी. इतना ही नहीं, वे पहली महिला डायरेक्टर भी बनीं, जिन्होंने फिल्म ‘बुलबुल-ए-पाकिस्तान’ का निर्देशन किया. हालांकि, इसके बाद उन्हें बहुत कुछ झेलना पड़ा. लेकिन फातिमा ने हार नहीं मानी. साल 1927 में ‘गॉडेस ऑफ लव’, 1928 में फिल्म ‘रांझा’, ‘चंद्रावली’ और इसके अगले ही साल 1929 में फिल्म ‘शकुंतला’, ‘मिलन’ एवं ‘कनकतारा’ का निर्देशन किया. आगे चलकर उन्होंने अपना एक प्रोडक्शन हाउस भी शुरू किया, जिसे विक्टोरिया फातिमा फिल्म्स के नाम से जाना गया.
जद्दनबाई को मिला दर्शकों का प्यार
फातिमा की तरह ही जद्दनबाई एक साहसिक महिला थीं, जिन्होंने काफी संघर्षों के बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपना एक स्थान बनाया. कहने को तो जद्दनबाई हर फन में माहिर थीं. लेकिन उन्होंने 1930 के दौर में कई सफल फिल्मों का निर्देशन किया. इनमें ‘मैडम फैशन’, ‘हृदय मंथन’, ‘मोता का हार’ एवं ‘जीवन स्वप्न’ जैसी फिल्में शामिल थीं. कमाल की बात ये है कि दर्शकों को उनका काम बेहद पसंद आया और वे एक स्थापित निर्देशक बन सकीं. जद्दनबाई अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री नरगिस की मां थीं. उन्होंने अपनी बेटी को भी पूरी आजादी दी थी, जिससे कि वे खुद को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर सकीं.
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शोभना समर्थ से लेकर साई परांजपे ने जमाई धाक
महिला निर्देशकों की बात हो रही है, तो अभिनेत्री शोभना समर्थ को कैसे भूल सकते हैं. एक मराठी कला प्रेमी परिवार से ताल्लुक रखने वाली शोभना ने बतौर अभिनेत्री फिल्मों में काम करना शुरू किया था. लेकिन उनका झुकाव निर्देशन की ओर भी हुआ. साल 1950 में उन्होंने फिल्म ‘हमारी बेटी’ से निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा. इसके दस साल बाद फिल्म ‘छबीली’ का निर्देशन किया, जिसमें उनकी दोनों बेटियों नूतन एवं तनुजा ने शानदार अभिनय किया. पद्मभूषण से नवाजी गईं सई परांजपे को उन निर्देशकों में गिना जाता है, जिन्होंने आर्ट सिनेमा को एक नया आयाम दिया. सई ने ‘चश्मे बद्दूर’, ‘कथा’, ‘साज’, ‘दिशा’ जैसी फिल्मों का सफल निर्देशन किया. उन्होंने कई मराठी नाटक भी लिखे और उन्हें निर्देशित किया. इसी तरह, अरुणा राजे ने ‘रिहाई’, ‘पतित पावन’, ‘शादी या…., ‘भैरवी’, ‘तुम एवं फायरब्रांड’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया.
बॉक्स
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला निर्देशकों को मिली मान्यता
- 1988 में निर्देशक मीरा नायर की ‘सलाम बॉम्बे’ ने वैश्विक सिनेमा पर अभूतपूर्व प्रभाव डाला था. 61वें अकादमी पुरस्कारों में इसने सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म श्रेणी में शीर्ष पांच में अपनी जगह बनाई थी.
- 1993 में निर्देशक कल्पना लाजमी की फिल्म ‘लज्जा’ को 66वें अकादमी पुरस्कार के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया था.
- दीपा मेहता की फिल्म ‘अर्थ’ को 1999 में ऑस्कर के लिए विचारार्थ पेश किया गया था.
- अनुषा रिजवी द्वारा निर्देशित ‘पीपली लाइव’ 2010 के ऑस्कर के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि थी.
- 2019 में जोया की ‘गली बॉय’ ऑस्कर में विचार के लिए भेजी गई थी.