महाकुंभ 2025: जानें, कब हुई अखाड़ों की स्थापना और कौन हैं उनके इष्टदेव 

Mahakumbh 2025: Akhado ki sthapna aur unke ishtadev ke baare mein jaanein
Mahakumbh 2025: Akhado ki sthapna aur unke ishtadev ke baare mein jaanein

'अखाड़ा' मठों का ही एक विशिष्ट अंग है। अखाड़ों का जन्म परिस्थितियों की देन है। अखाड़ों की शुरुआत 8वीं शताब्दी में आद्य शंकराचार्य ने की थी। यह बातें श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बतायी।

दशनाम जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि अखाड़ों का यह स्वरूप 12वीं शताब्दी के पूर्व नहीं थे। सभी नागा अखाड़े मध्य काल में अकबर से औरंगजेब के काल के मध्य शनैः-शनैः विकसित हुए। उन्होंने बताया कि संभवतः ‘अखाड़ा’ शब्द संस्कृत के अखण्ड शब्द का विकृत रूप है, जिसका अर्थ है खण्डरहित अथवा साधुओं का संगठित समुदाय।

उन्होंने बताया कि इन अखाड़ों की अपनी पृथक परम्पराएं एवं विशेषताएं हैं। इनके अपने अलग-अलग रीति-रिवाज एवं संकल्प हैं। दस संघ अथवा दशनामी सन्यासी अखाड़े कर्म प्रधान इस जगत का त्याग कर गृहहीन, भ्रमणशील, धार्मिक, भिक्षुक-जीवन की स्वीकृति का अनुष्ठान, संन्यास का प्रचलन पुरातन मानव के अन्तरतम में ईश्वरवादी भावना के अरुणोदय काल से ही है। प्राचीनतम आर्ष ग्रन्थवेद में भी जटाधारी गेरुए चीर धारण करने वालों की उपमा आकाश स्थित सूर्य से दी जाती थी।

जानें, अखाड़ों की स्थपना तथा उनके इष्टदेव

  • श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा-सम्वत् 603 ज्येष्ठ कृष्णपक्ष, नवमी, शुक्रवार को इसकी स्थापना हरद्वार भारती ने किया था। इस अखाड़े के इष्टदेव श्री भैरवजी हैं।श्री पंचायती अटल अखाड़ा-सम्वत् 603 मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्थी, रविवार को इसकी स्थापना हुई थी। श्री गजानन (गणेशजी) इसके इष्टदेव हैं।
  • श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी-सम्वत् 805 मार्गशीर्ष दशमी, गुरुवार को श्री शुभकरनजी ने इस अखाड़े की स्थापना की थी। श्री कपिलमुनिजी इस अखाड़े के इष्टदेव हैं।
  • श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती-सम्वत् 912, (सन् 856) ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष, चतुर्थी रविवार को इस अखाड़े की स्थापना हुई थी। श्री सूर्यनारायण इस अखाड़े के इष्टदेव हैं।
  • श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी– सम्वत् १८० कार्तिक कृष्ण पक्ष, षष्ठी, सोमवार को इस अखाड़े की स्थापना कच्छ देश में माण्डवी नामक स्थान पर हुई। श्री स्वामी कार्तिकयजी इस अखाड़े के इष्टदेव हैं।
  • श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा– (प्रारंभिक नाम भैरव) सम्वत् 1202 कार्तिक शुक्ल पक्ष दशमी, मंगलवार को उत्तराखण्ड में कर्णप्रयाग में इस अखाड़े का निर्माण हुआ। श्रीगुरु दत्तात्रेयजी इस अखाड़े के इष्टदेव हैं।
  • श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़े -श्री पंच अग्नि अखाड़े की स्थापना विक्रम संवत् 1992 अषाढ़ शुक्ला एकादशी सन् 1136 में हुई। इनकी इष्ट देव गायत्री जी हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है।
  • बड़ा उदासीन अखाड़ा- इस अखाड़े की स्थापना 1788 ई. को आश्विन कृष्ण 9 को श्री प्रीतमदास जी ने किया। इस अखाड़े के इष्टदेव श्री चन्द्र भगवान हैं।
  • नया उदासीन अखाड़ा- सन् 1902 में प्रयागराज में उदासीन महात्मा सूरदास जी की प्रेरणा से हुआ। इस अखाड़े के इष्टदेव श्रीचन्द्र भगवान हैं।
  • श्री पंचायती निर्मल अखाड़ा- सन् 1816 में रमता निर्मल अखाड़े की रुपरेखा बनायी गई तथा सन् 1912 के हरिद्वार कुंभ में श्रीमहंत बाबा महताब सिंह की अध्यक्षता में निर्मल पंचायती अखाड़े की स्थापना हुई। इस अखाड़े का मुख्य केन्द्र कीडगंज, प्रयागराज है, इनके इष्टदेव ‘श्री गुरूनानक ग्रंथसाहिब’ हैं।

उल्लेखनीय है कि अखाड़े दो भागों में विभाजित हैं- शैव तथा वैष्णव। उपर्युक्त सात अखाड़े शैवों के हैं। इनमें अटल अखाड़ा आठ भागों में विभाजित हैं, जिन्हें ‘दावा’ कहते हैं। इनमें 52 ‘मढ़ी’ हैं। इसी तरह सभी अखाड़े 52 मढ़ियों में विभाजित हैं। वैष्णव अखाड़ों का जन्म शैवों के मत भिन्नता के विरुद्ध हुआ था। रामानन्दी सम्प्रदाय के बालानन्दजी ने तीन अनी दिगम्बर, निर्मोही एवं निर्वाणी अखाड़े का निर्माण किया। इनके इष्टदेव श्रीराम और श्रीश्याम(श्रीकृष्ण) हैं।

निर्मोही अखाड़े के अखिल भारतीय अध्यक्ष श्रीमहंत राजेन्द्र दास महाराज ने बताया कि अनी के तीनों अखाड़ों के अलग-अलग भी अखाड़े हैं। निर्मोही अनी के अखाड़ों के नाम इस प्रकार है-रामानन्दी निर्मोही, रामानन्दी महानिर्वाणी, रामानन्दी संतोषी, हरिव्यासी महानिर्वाणी, हरिव्यासी संतोषी, विष्णुस्वामी निर्मोही, मालाधारी निर्माही, राधावल्लभीय निर्मोही तथा झड़िया निर्मोही।

उन्होंने बताया कि ​दिगम्बर अनी में दो अखाड़े-रामजी दिगम्बर तथा श्यामजी दिगम्बर हैं, जबकि निर्वाणी अनी में सात अखाड़े हैं-रामानन्दी निर्वाणी, निरालम्बी, रामानन्दी खाकी, हरिव्यासी खाकी, हरिव्यासी ​निर्वाणी, बलभद्री और टाटाम्बरी। उन्होंने बताया कि इस प्रकार तीनों अनी के अन्तर्गत वर्तमान में 18 अखाड़ों में श्रीराम और श्रीश्याम (श्रीकृष्ण) की उपासना के भेद से 07 अखाड़ों की गणना रामोपासकों की है और 11 अखाड़ों की गणना श्यामोपासकों की है। उन्होंने बताया कि निर्मोही अनी में अखाड़ा नं. 1-2-3 ये तीन अखाड़े रामोपासक और 4-5-6-7 ये चार अखाड़े कृष्णोपासक हैं। इस प्रकार से तीनों अनियों में कुल 7 अखाड़े रामजी और 11 अखाड़े श्यामजी के हैं।

(हिन्दुस्थान समाचार एजेंसी के इनपुट के साथ)



About the Author: सतीश झा
सतीश झा की लेखनी में समाज की जमीनी सच्चाई और प्रगतिशील दृष्टिकोण का मेल दिखाई देता है। बीते 20 वर्षों में राजनीति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचारों के साथ-साथ राज्यों की खबरों पर व्यापक और गहन लेखन किया है। उनकी विशेषता समसामयिक विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत करना और पाठकों तक सटीक जानकारी पहुंचाना है। राजनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों तक, उनकी गहन पकड़ और निष्पक्षता ने उन्हें पत्रकारिता जगत में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है


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