Mahakumbh 2025 : प्रयागराज में पहली बार हो रहा बौद्ध सम्मेलन, बौद्ध भंते और लामा के क्या हैं विशेष अर्थ
Mahakumbh 2025 : प्रयागराज में पहली बार हो रहा बौद्ध सम्मेलन, बौद्ध भंते और लामा के क्या हैं विशेष अर्थ
Authored By: स्मिता
Published On: Friday, January 24, 2025
Updated On: Friday, January 24, 2025
प्रयागराज महाकुंभ 2025 (Mahakumbh 2025) कई मायने में खास है। महाकुंभ में पहली बार विश्व हिंदू परिषद की ओर से 10 फरवरी से तीन दिवसीए बौद्ध सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन में भारत के अलावा दुनिया के कई देशों के बौद्ध भंते व बौद्ध लामा बड़ी संख्या में शामिल होंगे।
Authored By: स्मिता
Updated On: Friday, January 24, 2025
विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय संगठन महामंत्री महामंत्री मिलिंद परांडे ने बताया, ‘कुंभ आध्यात्मिक एकत्रीकरण का स्थान है। शैव, जैन, सिख, बुद्ध इन सभी परंपराओं का जन्म भारत में हुआ है। अलग-अलग परंपरा के संतों का आपस में मिलना-जुलना सामान्य प्रक्रिया है। आगे के कालखंड में यह चर्चा बंद हो गई थी। मिलिंद परांडे के अनुसार, बौद्ध सम्मेलन में भारत के अलावा रूस, अमेरिका, जर्मनी, इटली, कोरिया, थाईलैंड, वर्मा, तिब्बत, नेपाल व श्रीलंका समेत कई देशों के अलग-अलग बौद्ध परंपराओं के बौद्ध भंते और लामा प्रयागराज महाकुंभ (Mahakumbh 2025) में आ रहे हैं।
पहली बार हो रहा बौद्ध सम्मेलन
विश्व हिंदू परिषद स्थापना काल से हिंदू सम्मेलनों का आयोजन करती आ रही है। 1966 में प्रयागराज कुंभ के अवसर पर प्रथम विश्व हिंदू सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक गुरुजी के प्रयासों के परिणामस्वरूप चारों शंकराचार्यों सहित हिंदू समाज के विभिन्न संप्रदायों के धर्माचार्य, साधु-संत आदि एक मंच पर आए थे। इस सम्मेलन में दुनिया के कई देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। इसके बाद प्रयाग में जब भी कुंभ व अर्धकुंभ लगे, विहिप की ओर से हिंदू सम्मेलन आयोजित किये गये। इस बार महाकुंभ में पहली बार बौद्ध सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।
एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन (Asian Buddhist Summit)
बौद्ध धर्म भारत और पूरे एशिया के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में एक अद्वितीय स्थान रखता है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) के सहयोग से 5-6 नवंबर, 2024 को नई दिल्ली में प्रथम एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन (Asian Buddhist Summit) का आयोजन हुआ। इस शिखर सम्मेलन का विषय ‘एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका’ रखा गया। शिखर सम्मेलन के माध्यम से यह एशिया भर में विभिन्न बौद्ध परंपराओं के संघ नेताओं, विद्वानों, विशेषज्ञों और चिकित्सकों के संवाद को बढ़ावा देने, समझ को बढ़ावा देने और बौद्ध समुदाय के सामने आने वाली समकालीन चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक साथ लाया गया।
बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण कार्य (Buddha Dhamma significance)
बुद्ध उनके शिष्यों और प्रचारकों की शिक्षाओं ने जीवन, देश और सामाजिक मूल्यों के प्रति एक समान दृष्टिकोण के माध्यम से एशिया को एकजुट रखने का कार्य किया। बुद्ध धम्म भारत की संस्कृति के एक मूल्यवान घटक के रूप में उभरा है। इसने देश को दृढ़ विदेश नीति और प्रभावी राजनयिक संबंध विकसित करने में सहायता की है। स्वतंत्र भारत की राष्ट्रीय पहचान के अंग के रूप में बौद्ध प्रतीकों को शामिल करने से लेकर अपनी विदेश नीति में बौद्ध मूल्यों को अपनाने तक, बुद्ध धम्म, भारत और एशिया एक दूसरे के पूरक हैं।
क्या है बौद्ध धम्म (Buddha Dhamma)
पाली भाषा में संस्कृत शब्द ‘धर्म’ को ‘धम्म’ कहा जाता है। बौद्ध धर्म में धर्म का अर्थ है ‘ब्रह्मांडीय कानून और व्यवस्था (Cosmic law and order)’ या बुद्ध की शिक्षा। पाली में ‘धर्म’ का उच्चारण ‘धम्म’ के रूप में किया जाता है। धम्म या धर्म एक अवधारणा है, जिसे आम तौर पर ‘बुद्ध की शिक्षाओं’ के रूप में जाना जाता है। बौद्ध शिक्षाओं का पालन करने से लोगों को अपने जीवन में अर्थ और समझ मिलती है।
भंते और लामा में अंतर (Bhante and Lama)
भंते संस्कृत में भवन्त: को पाली में भंते उच्चारण किया जाता है। इसे कभी-कभी भदंत भी कहा जाता है। विशेष रूप से थेरवाद परंपरा में यह एक सम्मानजनक उपाधि है। इसका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं, भिक्षुणियों और वरिष्ठों को संबोधित करने के लिए किया जाता है। ‘भंते’ शब्द का अंग्रेजी में अक्सर ‘आदरणीय’ के रूप में अनुवाद किया जाता है। लामा तिब्बती बौद्ध धर्म में धर्म के शिक्षक के लिए एक उपाधि है। यह नाम संस्कृत शब्द गुरु के समान है। इसका अर्थ है –महान गुणों से संपन्न ऐसा व्यक्ति, जिसे छात्र अंततः धारण करेगा।
(हिन्दुस्थान समाचार के इनपुट के साथ)
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