अपना निर्णय स्वयं लेने का साहस : सद्गुरु जग्गी वासुदेव

Authored By: स्मिता

Published On: Tuesday, August 26, 2025

Last Updated On: Tuesday, August 26, 2025

Sadhguru Decision Making सद्गुरु जग्गी वासुदेव निर्णय.
Sadhguru Decision Making सद्गुरु जग्गी वासुदेव निर्णय.

Sadhguru Decision Making हमें सिखाता है कि अपने निर्णय स्वयं लेने का साहस जीवन में सफलता और आत्मनिर्भरता की कुंजी है. सद्गुरु जग्गी वासुदेव की शिक्षाओं से हम आत्मनिर्णय की शक्ति बढ़ा सकते हैं.

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Tuesday, August 26, 2025

आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव के अनुसार, मन यदि आपके वश में है, (Sadhguru Decision Making) तो आप साहसी भी बन सकते हैं. साहस के बल पर आप किसी तरह का दवाब नहीं मानते हुए अपना निर्णय स्वयं ले सकते हैं.

आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव एक किस्सा सुनाते हैं. एक बार की बात है. एक जेन शिष्य ज्ञान प्राप्ति को लेकर बहुत उत्सुक था. उसे जो भी मंत्र बताया जाता, वह पूरे जोश के साथ उसका जाप करने लगता. उस मंत्र का पूरी लगन के साथ जाप करते हुए उसे एक महीने से भी ज्यादा हो गया था. उसके गुरु ने उसकी इन कोशिशों को देखा. कुछ देर बाद वह एक ईंट लेकर उसके पास गए और ईंट को उसी लय के साथ पत्थर पर घिसना शुरू कर दिया. झर्र, झर्र, झर्र . . . यह आवाज सुनकर शिष्य को गुस्सा आने लगा. वह सोचने लगा कि कौन मेरे मंत्र जाप के वक्त मुझे परेशान कर रहा है?

मन को स्वच्छ तालाब की तरह है गढ़ना

वह अपनी आंखें नहीं खोलना चाहता था. जब उससे न रहा गया तो उसने आंखें खोल दीं. गुरु को सामने पाकर वह बोला – ‘यह सब क्या है? मैं मंत्र जाप कर रहा हूं और आप मुझे परेशान कर रहे हैं. क्या आप प्रतियोगिता से डर गए हैं?’

गुरु ने पूछा – ‘तुम क्या करने की कोशिश कर रहे हो?’ उसने कहा- ‘मैं अपने मन को गढ़ने की कोशिश कर रहा हूं. मैं उसे एक स्वच्छ तालाब जैसा बनाना चाहता हूं’. गुरु बोले – ‘मैं भी यही करना चाहता हूं. मैं इस ईंट को शीशे की तरह बनाना चाहता हूं’. हम दोनों ही अपना-अपना काम कर रहे हैं, लेकिन न तो मेरी ईंट शीशे के आसपास भी पहुंच पाई है और न ही तुम्हारा मन शांति और स्थिरता की ओर बढ़ पाया है. ऐसे में यह सब करने का क्या फायदा?’

साधना का मतलब

  • सद्गुरु के अनुसार, सवाल यह है कि साधना करने का मतलब क्या है? साधना के बिना कोई चारा नहीं है, लेकिन साधना रास्ता नहीं है. बिना इच्छा के कोई गति नहीं होती, लेकिन इच्छा कभी मुक्ति नहीं हो सकती.
  • बस इतना है कि इस तरह की चाहत के साथ, इस तरह के काम करके, इस तरह ईंट को घिसकर आप उसे थोड़ा पतला कर सकते हैं. अचानक आपको एहसास होता है कि आपको वह नहीं मिला, जो आप चाहते थे.
  • बिना इच्छा के बड़ी तीव्रता के साथ किसी काम को करने का मतलब है कि वह इंसान या तो पागल हो गया है या फिर किसी चीज या किसी इंसान के प्यार में बुरी तरह पड़ा हो.

होना होगा साहसी

फिर ऐसा भी हो सकता है कि वह आत्म-ज्ञानी हो. इन चीजों के अलावा कोई और रास्ता है ही नहीं. अब आप देखें कि आप इनमें से किस श्रेणी में आते हैं. आपको खुद को देखते रहना होगा. या तो आप पागल होंगे या किसी के प्यार में होंगे या आपको आत्म-ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी होगी, तभी आप यह सब कर सकते हैं, नहीं तो आप बगैर इच्छा के यह सब नहीं कर पाएंगे. बिना किसी जरूरत के लगातार उसी काम को करते जाने के लिए आपको इन तीन श्रेणियों में से किसी एक में होना होगा. इन तीनों चीजों को या कम-से-कम पहली दो चीजों को करने के लिए आपके भीतर एक खास किस्म का साहस होना चाहिए. किसी चीज के पीछे पागलों की तरह पड़ने के लिए एक विशेष तरह का साहस होना चाहिए. किसी के प्यार में बुरी तरह पागल होने के लिए आपके भीतर एक खास तरह की हिम्मत होनी चाहिए. ठीक इसी तरह आत्म-ज्ञानी होने के लिए भी साहस की जरूरत है, लेकिन वह अलग तरह का साहस होगा.

साहस का अर्थ हो सकता है अलग

एक बार आर्मी के तीन जनरल अपनी-अपनी शेखी बघार रहे थे कि उनकी रेजिमेंट के लोग कितने साहसी हैं. पहले जनरल ने अपनी बात साबित करने के लिए अपने एक जवान को बुलाया और कहा, ‘इधर आओ और इस गड्ढे को पार कर जाओ. जवान बिना किसी हिचक के कूद गया, लेकिन गड्ढे को पार नहीं कर पाया. वह गिरकर मर गया. जनरल ने कहा, ‘देखा, मेरी रेजिमेंट को!’ अब दूसरे जनरल ने अपने जवान को बुलाया और कहा, ‘हेडक्वॉर्टर के लिए एक संदेश है. मैं चाहता हूं कि तुम इस बारूदी सुरंग को पार कर तेजी से जाकर संदेश पहुंचाओ’. वह फौरन दौड़ पड़ा. आधे रास्ते में ही वह मारा गया. दूसरे जनरल ने भी कहा, ‘देखा मेरे सिपाही को!’

अपना निर्णय लेने का साहस

अब तीसरे जनरल ने अपने जवान को बुलाया और वहां से थोड़ी दूरी पर तेज गति से बहती नदी और वहां मौजूद एक तेज झरने की ओर इशारा करके बोला, ‘जवान, तुम्हें इस नदी को पार करना है और तुम्हारे पास बस एक छोटी सी नाव होगी’. जवान फौरन बोला, ‘लगता है आपने फिर पी ली है? आप पगला गए हैं क्या, जो आपको लगता है मैं ऐसा काम करूंगा? मैं यह काम नहीं करने वाला’. तीसरा जनरल अपने दोनों साथियों की ओर मुड़ा और बोला, ‘साहस इसे कहते हैं’. साहस अंतर्मन से उपजना चाहिए. ऐसा साहस, जिसकी मदद से आप अपना निर्णय खुद ले सकें. इसमें अपना काम करते हुए किसी तरह का दबाव अनुभव नहीं हो.

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About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।


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