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Sawan Somwar 2025: कब से शुरू हो रहा है सावन, जानें पूजा विधि, सोमवारी व्रत, त्योहार
Sawan Somwar 2025: कब से शुरू हो रहा है सावन, जानें पूजा विधि, सोमवारी व्रत, त्योहार
Authored By: Nishant Singh
Published On: Thursday, July 3, 2025
Last Updated On: Friday, July 4, 2025
जब बादल गरजते हैं और धरती हरियाली से सज जाती है, तब आता है सावन - आस्था, भक्ति और प्रकृति के मिलन का महीना. 2025 में सावन का शुभ आरंभ 11 जुलाई से होगा और यह 9 अगस्त को रक्षाबंधन के साथ समाप्त होगा. यह केवल बारिश का मौसम नहीं, बल्कि शिवभक्ति, रिश्तों और त्योहारों का उत्सव है. कांवड़िए गंगाजल लेकर शिव को अर्पित करते हैं, महिलाएं तीज मनाकर सौभाग्य की कामना करती हैं, और रक्षाबंधन भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है. सावन की सोमवारी व्रतों से लेकर शिवरात्रि तक, हर दिन आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा होता है. प्रकृति मुस्कुराती है, मन शांत होता है, और हर दिल शिवमय हो जाता है. यही है सावन- भावनाओं का पर्व.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Friday, July 4, 2025
जब आसमान से टप-टप बारिश की बूंदें गिरती हैं और धरती हरियाली की चादर ओढ़ लेती है, तब शुरू होता है सावन- भक्ति, प्रेम और प्रकृति के उत्सव का महीना. यह केवल एक मौसम नहीं, बल्कि आस्था और श्रद्धा का पर्व है. सावन आते ही मंदिरों में “ॐ नमः शिवाय” की गूंज सुनाई देने लगती है, हर सोमवार को भोलेनाथ के दर्शन और व्रत का विशेष महत्व होता है. चारों ओर शिवभक्ति की लहर दौड़ जाती है. गांव-शहर, गली-मोहल्ले सब शिवमय हो उठते हैं. साथ ही यह महीना वर्षा ऋतु का भी प्रतीक है, जब प्रकृति सबसे सुंदर रूप में खिल उठती है. महिलाएं हरियाली तीज मनाती हैं, और कांवड़िए गंगा जल लेकर लंबी यात्राएं करते हैं. सावन का हर दिन खास होता है. चाहे धार्मिक दृष्टिकोण से देखें या प्राकृतिक सुंदरता से. यही कारण है कि यह महीना हर उम्र और वर्ग के लोगों के लिए बेहद खास होता है.
इस साल (2025) कब से शुरू हो रहा है सावन

सावन का पवित्र महीना 2025 में शुक्रवार, 11 जुलाई को शुरू होकर शनिवार, 9 अगस्त को रक्षाबंधन के त्यौहार के साथ समाप्त होगा. इस दौरान चार प्रमुख सोमवार- 14, 21, 28 जुलाई और 4 अगस्त को- भक्ति रस में डूबे व्रती शिवलिंग पर जलाभिषेक एवं उपवास अर्पित करेंगे. सावन की शुरुआत होते ही चारों ओर हरियाली, मंदिरों में ‘ॐ नमः शिवाय’ की गूंज और कांवड़ यात्रा की तैयारियां नजर आती हैं. यह महीना देवी–देवों की कृपा पाने का समय होता है, जब भक्त धूप-दीप, बेलपत्र, दूध-भांग आदि अर्पित करते हैं. सावन की ये चार सोमवारी व्रत विशेष रूप से परेशानियों दूर करने और सुख-शांति की कामना करने के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इसी माह की समाप्ति पर रक्षाबंधन आता है, जो भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है.
सावन 2025 के सोमवार (Somvar) की तिथियां
सावन 2025 में कुल चार सोमवार पड़ेंगे, जो भगवान शिव की भक्ति के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं. ये सोमवारी व्रत क्रमशः 14 जुलाई, 21 जुलाई, 28 जुलाई, और 4 अगस्त 2025 को संपन्न होंगे. इन दिनों शिवलिंग पर विशेष पूजा-अर्चना, व्रत और जलाभिषेक किए जाते हैं. इन सोमवारों पर भक्त ‘ॐ नमः शिवाय’ की आर्तिमें लीन रहते हैं और मनोकामना पूर्ति की कामना करते हैं.
सोमवार व्रत तिथि
तारीख |
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14 जुलाई 2025 |
21 जुलाई 2025 |
28 जुलाई 2025 |
4 अगस्त 2025 |
सावन 2025: प्रमुख व्रत‑त्योहार

सावन 2025 में धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता की झलक मिलती है. महीने में ‘हरियाली तीज’, ‘सावन शिवरात्रि’, ‘नाग पंचमी’ और समाप्ति पर ‘रक्षाबंधन’ जैसे मुख्य व्रत-त्योहार आते हैं. हर त्योहार अपनी कथा, पूजा और उत्सव के साथ इस माह को चारों ओर भक्ति और उल्लास से भर देता है.
त्योहार | तारीख | तिथि विवरण |
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हरियाली तीज | 27 जुलाई 2025 | शुक्ल पक्ष तृतीया |
सावन शिवरात्रि | 23 जुलाई 2025 | कृष्ण पक्ष चतुर्दशी |
नाग पंचमी | 29 जुलाई 2025 | कृष्ण पंचमी |
रक्षाबंधन | 9 अगस्त 2025 | सावन पूर्णिमा |
ये त्योहार सावन महीने को सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक मेलजोल का भी उत्सव बनाते हैं.
सावन क्यों है खास?
सावन का महीना सिर्फ एक कैलेंडर की तारीख नहीं, बल्कि श्रद्धा, सौंदर्य और संबंधों का जीवंत उत्सव है. इस महीने में जहां एक ओर भगवान शिव की आराधना पूरे चरम पर होती है, वहीं दूसरी ओर प्रकृति अपनी सबसे सुंदर वेशभूषा में दिखाई देती है. झरनों का कल-कल संगीत, खेतों में लहराती हरियाली और मंद-मंद वर्षा सब कुछ मन को प्रसन्न कर देते हैं. महिलाएं हरियाली तीज जैसे त्योहारों में सजती-संवरती हैं, कांवड़िए गंगा जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं और परिवारजन मिलकर रक्षाबंधन जैसे रिश्तों के पर्व मनाते हैं. इस महीने में भक्त सिर्फ पूजा नहीं करते, बल्कि प्रकृति के प्रति आभार, रिश्तों में मधुरता और आत्मशुद्धि की साधना भी करते हैं. यही सब मिलकर सावन को विशेष, पवित्र और हृदय को छूने वाला महीना बनाते हैं.
1. धार्मिक दृष्टिकोण से
- सावन भगवान शिव को समर्पित है.
- सोमवारी व्रत, शिवरात्रि, और कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व होता है.
- माना जाता है इस महीने में की गई भक्ति जल्दी फल देती है.
2. प्रकृति और मौसम के कारण
- मानसून की रिमझिम बारिश से धरती हरी-भरी हो जाती है.
- नदियां, झरने, और खेत जीवन से भर उठते हैं.
- प्रकृति का यह रूप मन को शांति और ताजगी देता है.
3. सामाजिक-सांस्कृतिक महत्त्व
- हरियाली तीज और रक्षाबंधन जैसे त्योहार संबंधों को मज़बूत करते हैं.
- महिलाएं गीत-संगीत और मेहंदी के साथ उत्सव मनाती हैं.
- पारिवारिक मेल-जोल, भजन, कीर्तन और मेलों का आयोजन होता है.
सावन पूजा विधि और क्या चढ़ाएं भोलेनाथ को?

सावन का पावन महीना आते ही श्रद्धालु ‘भोलेनाथ’ की भक्ति में डूब जाते हैं. विशेषकर सोमवार के दिन शिवजी को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखा जाता है और विशेष पूजन किया जाता है. सावन की सोमवारी का व्रत भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है. शिवलिंग पर विशेष सामग्री अर्पित कर भोलेनाथ की कृपा प्राप्त की जाती है.
सोमवारी व्रत की विधि (Sawan Somwar Vrat Vidhi)
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें.
- घर या मंदिर में शिवलिंग की स्थापना करें.
- व्रत का संकल्प लें – “मैं आज का व्रत शिवजी को समर्पित करता/करती हूं.”
- शिवलिंग पर जल, दूध या गंगाजल से अभिषेक करें.
- ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार जप करें.
- कथा सुनें या पढ़ें – “सावन सोमवारी व्रत कथा”
- शाम को दीप जलाकर आरती करें और फलाहार लें.
शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाली पूजन सामग्री
- बेलपत्र- शिवजी को अत्यंत प्रिय, त्रिदेवों का प्रतीक
- गंगाजल- पवित्रता का प्रतीक, शिव की जटाओं से जुड़ा
- दूध- शांति और शीतलता देने वाला
- भस्म / विभूति- शिव का श्रृंगार और वैराग्य का प्रतीक
- धतूरा- विष का प्रतीक, जिसे शिवजी ने स्वीकार किया
- भांग- शिव का प्रिय पेय, भक्ति भाव का संकेत
- फल और मिठाई- प्रसाद के रूप में अर्पित
- दिया और अगरबत्ती– वातावरण को पवित्र और भक्तिमय बनाते हैं.
सावन से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
सावन मास की पवित्रता और महिमा अनेक प्राचीन कथाओं से जुड़ी है, जो इसे और भी खास बनाती हैं.
1. समुद्र मंथन की कथा
पौराणिक कहानियों के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था. इस मंथन से कई अमूल्य वस्तुएं निकलीं, लेकिन सबसे खतरनाक था हलाहल विष. यह विष इतना प्रचंड था कि उसने सारा ब्रह्मांड जहर देने की धमकी दी.
2. शिव जी ने हलाहल विष क्यों पिया?
देवताओं और असुरों की तबाही रोकने के लिए भगवान शिव ने उस विष को अपने गले में धारण कर लिया. इससे वह विष उनके शरीर को हानि नहीं पहुंचा पाया, लेकिन उनका गला नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा जाता है. यह बलिदान सावन माह की विशेष महत्ता को दर्शाता है.
3. देवी पार्वती और शिव विवाह की कथा
सावन के पवित्र माह में ही देवी पार्वती ने कठोर तपस्या कर शिवजी का हृदय जीता था. उनका विवाह इसी मास में हुआ, जो प्रेम, समर्पण और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है. इस कारण सावन मास को शिव-पार्वती की पूर्णता का भी प्रतीक माना जाता है.
इन कथाओं के कारण सावन मास में भगवान शिव की पूजा और व्रतों को अत्यंत फलदायी माना जाता है. भक्त इस महीने में विशेष रूप से शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं, जिससे उन्हें आध्यात्मिक लाभ और मानसिक शांति मिलती है.
कांवड़ यात्रा से होती है मनोकामना पूर्ति
सावन महीने में शिवभक्तों की आस्था और भक्ति का अद्भुत रूप देखने को मिलता है – कांवड़ यात्रा. यह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि भक्ति, त्याग और तप का उदाहरण है. लाखों श्रद्धालु सिर पर कांवर उठाकर सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा नंगे पांव तय करते हैं, ताकि गंगा जल लाकर भगवान शिव के शिवलिंग पर अर्पित कर सकें. माना जाता है कि यह जलाभिषेक मनोकामनाओं को पूर्ण करता है और पुण्य फल प्रदान करता है.

कांवड़ यात्रा का इतिहास
कांवड़ यात्रा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. मान्यता है कि जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को पिया, तब उनके ताप को शांत करने के लिए देवताओं ने गंगा जल अर्पित किया था. तभी से यह परंपरा भक्तों द्वारा निभाई जा रही है.
कैसे लाते हैं भक्त गंगाजल?
- भक्त हरिद्वार, गंगोत्री, सुल्तानगंज जैसे तीर्थों से पवित्र गंगाजल लेते हैं.
- गंगाजल को कांवड़ में भरकर दोनों कंधों पर समान वजन में लटकाते हैं.
- श्रद्धालु यह यात्रा नंगे पांव, उपवास के साथ, और “बोल बम” के जयघोष करते हुए पूरी करते हैं.
- जल लाकर उसे स्थानीय शिव मंदिर या ज्योतिर्लिंगों में अर्पित किया जाता है.
प्रसिद्ध कांवड़ यात्राएं – प्रमुख स्थल
स्थान | विशेषता |
---|---|
हरिद्वार (उत्तराखंड) | सबसे बड़ी और प्रसिद्ध कांवड़ यात्रा का केंद्र |
देवघर (झारखंड) | बाबा बैद्यनाथ धाम – 12 ज्योतिर्लिंगों में एक |
उज्जैन (मध्यप्रदेश) | महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए कांवड़ यात्रा |
वाराणसी (उत्तर प्रदेश) | काशी विश्वनाथ मंदिर – गंगाजल से जलाभिषेक |
त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र) | गोदावरी नदी से जल लेकर शिव को अर्पित करते हैं |
सावन में हरियाली तीज और रक्षाबंधन का महत्त्व
सावन का महीना न केवल शिवभक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह रिश्तों और सौंदर्य का उत्सव भी है. इस महीने में मनाए जाने वाले दो प्रमुख त्योहार – हरियाली तीज और रक्षाबंधन – सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं.
महिलाओं के लिए तीज का व्रत – सौभाग्य और समर्पण का प्रतीक
हरियाली तीज सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है. यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और दांपत्य प्रेम के लिए रखा जाता है. कुंवारी कन्याएं भी शिव-पार्वती जैसा जीवनसाथी पाने की कामना से यह व्रत करती हैं.
महिलाएं हरी चूड़ियां, मेहंदी और नए वस्त्र पहनती हैं, झूले झूलती हैं और पारंपरिक लोकगीत गाकर तीज को आनंदमय बनाती हैं. यह पर्व केवल व्रत नहीं, बल्कि स्त्री सशक्तिकरण और आत्मिक सौंदर्य का उत्सव भी है.
भाई-बहन के रिश्ते का पर्व – रक्षाबंधन
सावन पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रक्षाबंधन भाई-बहन के अटूट प्रेम और रक्षा के वचन का पर्व है. इस दिन बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं. बदले में भाई बहनों को उपहार देकर उनकी सुरक्षा और सम्मान का वचन देते हैं.
यह पर्व केवल एक रस्म नहीं, बल्कि भारतीय पारिवारिक मूल्यों की झलक है – जिसमें रिश्तों में समर्पण, प्रेम और परस्पर सम्मान सबसे ऊपर होता है.