Vaikuntha Chaturdashi 2024 : श्रीविष्णु और शिव शंकर दोनों को है समर्पित वैकुंठ चतुर्दशी
Authored By: स्मिता
Published On: Wednesday, November 13, 2024
Updated On: Wednesday, November 13, 2024
कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को मनाया जाता है वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi 2024)। इस वर्ष वैकुंठ चतुर्दशी गुरुवार 14 नवंबर को मनाई जाएगी। विशेष महत्व वाला यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों को समर्पित है। इसलिए इस दिन इनकी पूजा एक साथ की जाती है।
किसी विशेष दिन पालनकर्ता श्रीविष्णु और संहारकर्ता शिव शंकर दोनों की एक साथ पूजा की जा सकती है। यह दिन वैकुंठ चतुर्दशी है। यह पवित्र दिन कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष चतुर्दशी के दौरान मनाया जाता है। इस वर्ष वैकुंठ चतुर्दशी गुरुवार, 14 नवंबर को मनाई जाएगी। यह पवित्र दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों के भक्तों को एक साथ लाता है। दोनों की एक साथ पूजा की जाती है। हिंदू अनुष्ठानों में यह एक दुर्लभ दिन संयोग (Vaikuntha Chaturdashi 2024) है।
श्रीविष्णु ने अपनी आंख शिव को किया अर्पित (Lord Shiva Puja)
शिव पुराण के अनुसार वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi 2024) एक पवित्र दिन है। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए भगवान विष्णु वाराणसी गए थे। पूजा-प्रार्थना स्वरुप भगवान विष्णु भगवान शिव को एक हज़ार कमल का फूल चढ़ाना चाहते थे। अनुष्ठान के दौरान उन्होंने पाया कि एक कमल गायब है। भक्ति के एक गहन कार्य में भगवान विष्णु ने अपनी एक आंख निकाल ली और पूजा को पूरा करने के लिए इसे अर्पित कर दिया। क्योंकि श्रीविष्णु के आंखों की तुलना कमल के फूल से की जाती है। उन्हें कमलनयन कहा जाता है। इस सर्वोच्च बलिदान से अभिभूत होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु की आंख पहले जैसी कर दी।
भक्ति और अध्यात्म का पाठ (Lesson of Spiritualism)
शिवजी ने विष्णुजी को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। यह कहानी न केवल भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच के गहरे बंधन को उजागर करती है, बल्कि सच्ची भक्ति और बलिदान की भावना के महत्व को भी दर्शाती है। वैकुंठ चतुर्दशी देवताओं के बीच दुर्लभ और पवित्र रिश्ते की याद दिलाती है। इसके द्वारा ईश्वर भक्तों को भक्ति, एकता और अध्यात्म का पाठ पढ़ाते हैं।
क्या है अनुष्ठान (Vaikuntha Chaturdashi Rituals)
वैकुंठ चतुर्दशी को दिन के विशिष्ट समय पर प्रत्येक देवता को समर्पित विभिन्न अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है। भगवान विष्णु की पूजा (निशिथ पूजा): भक्त निशीथ के दौरान भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, जो मध्यरात्रि का समय है। इस अनुष्ठान के भाग के रूप में भगवान विष्णु को एक हजार कमल के फूल अर्पित किए जाते हैं। साथ ही विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है। यह भगवान विष्णु के एक हजार नाम हैं। ऐसा माना जाता है कि इस अनुष्ठान से ईश्वर सुरक्षा और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
अरुणोदय पूजा (Arunodaya Puja)
भगवान शिव की पूजा (अरुणोदय पूजा): भगवान शिव के भक्त भोर में अपने अनुष्ठान शुरू करते हैं, जिसे अरुणोदय के रूप में जाना जाता है। यह सुबह की पूजा विशेष रूप से वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर महत्वपूर्ण है। यहां भक्त मणिकर्णिका स्नान के रूप में जाना जाने वाला पवित्र स्नान करते हैं। कार्तिक चतुर्दशी पर यह अनुष्ठान स्नान अत्यधिक शुभ माना जाता है। माना जाता है कि यह पापों को नष्ट कर देता है, जिससे भक्तों को एक नई शुरुआत मिलती है।
वाराणसी में वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi 2024 in Varanasi)
वाराणसी में यह त्यौहार बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। वाराणसी के अधिकांश मंदिरों में वैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है। काशी विश्वनाथ मंदिर इस दिन मुख्य भूमिका निभाता है। इस दिन, मंदिर को भगवान विष्णु के निवास स्थान वैकुंठ जितना ही पवित्र माना जाता है। इस अवसर पर मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। यह अनुष्ठान दो देवताओं के बीच परस्पर श्रद्धा का प्रतीक है, जिसमें भगवान विष्णु भगवान शिव को तुलसी के पत्ते चढ़ाते हैं और भगवान शिव भगवान विष्णु को बेल के पत्ते चढ़ाते हैं।[/fusion_text]
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