कैसे लौटेंगे सुनहरे दिन!
Authored By: Soni Kumari
Published On: Monday, April 15, 2024
Updated On: Thursday, June 20, 2024
कुश्ती में चल रहे विवाद के बीच हाल के महीनों में कुछ युवा पहलवान विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं। इनमें पुरुष वर्ग में अमन सहरावत तो महिला वर्ग में अंतिम पंघाल का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है...
हॉकी के बाद ओलिंपिक में अगर किसी खेल में भारत ने लगातार मेडल जीते हैं तो वह कुश्ती है। बल्कि यूं कहें कि हॉकी के बाद सबसे ज्यादा मेडल ओलंपिक में भारत को अभी तक कुश्ती में ही मिले हैं। लेकिन, शायद अब भारतीय कुश्ती को किसी की नजर लग गई है। पिछले साल भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ महिला पहलवानों द्वारा यौन शोषण का आरोप लगाकर जंतर-मंतर पर जो प्रदर्शन किया गया था उसकी जद से अभी भी पूर्ण रूप से भारतीय कुश्ती उबर नहीं सका है। इसी का नतीजा है कि इस बार ओलिंपिक में पदक के दो सबसे बड़े दावेदार बजरंग पूनिया और रवि दहिया शायद मैट पर ना दिखें।
आखिर यह विवाद क्यों हुआ? कौन सही, कौन गलत? इस पर अब बहुत बात हो गई। इन सबके बीच अगर किसी का नुकसान हुआ है तो वह पहलवान ही हैं। बृजभूषण की राजनीति जैसे चल रही थी वैसे ही चल रही है। बंद दरवाजे से फेडरेशन पर भी उनका कब्जा बरकरार ही है। उनके करीबी संजय सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद इंडियन ओलिंपिक असोसिएशन (आईओए) ने कुश्ती महासंघ को भंग करके बृजभूषण पर कुछ सख्ती दिखाने की कोशिश जरूर की, लेकिन अंत में सरकार को भी झुकना पड़ा। भारतीय कुश्ती के संचालन के लिए नियुक्त एडहॉक कमिटी को उसने 18 मार्च को भंग कर दिया और संजय सिंह की अध्यक्षता वाली नवनियुक्त कमिटी को ही मान्यता दे दी। ऐसा करना आईओए की मजबूरी भी थी क्योंकि वर्ल्ड रेसलिंग फेडरेशन ने भी नवनियुक्त फेडरेशन को ही मान्यता दी थी। ऊपर से दिल्ली हाई कोर्ट ने भी फैसला रेसलिंग फेडरेशन के पक्ष में ही सुनाया था।
कहने वाले भले ही इसे बृजभूषण की जीत कहें, लेकिन भारतीय कुश्ती को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई करना इतना आसान नहीं होगा। बजरंग की अगुआई में साक्षी मलिक, विनेश फोगाट जैसे दिग्गजों के इस आंदोलन में अगर किसी का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ तो वह जूनियर पहलवान हैं। कोरोना की मार के बाद जब इन जूनियर पहलवानों को उम्मीद थी कि वह एज ग्रुप में चुनौती पेश कर देश के सामने अपना दमखम दिखाएंगे तभी इन पहलवानों का आंदोलन शुरू हो गया। नतीजा हुआ कि कई पहलवानों की उम्र बीत गई और वह एज ग्रुप टूर्नामेंट में अपनी चुनौती पेश नहीं कर सके। उन्हें इसका ताउम्र मलाल रहेगा। इतना ही नहीं, आंदोलन पर बैठे पहलवानों में साक्षी मलिक ने तो संन्यास ही ले लिया जबकि बजरंग और विनेश का प्रदर्शन भी पूरी दुनिया के सामने है। इनके साथ प्रदर्शन में शामिल रहे दिग्गज पहलवान जितेंद्र, साक्षी के पति सत्यव्रत कादियान भी अब शायद ही मैट पर दिखें।
बहरहाल, इन सबके बीच कुछ युवा पहलवान भी विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं। इनमें पुरुष वर्ग में अमन सहरावत तो महिला वर्ग में अंतिम पंघाल का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है। अंतिम तो ओलिंपिक के लिए कोटा हासिल भी कर चुकी हैं जबकि अमन के हालिया प्रदर्शन को देखते हुए उनसे भी इस बार ओलंपिक में मेडल की उम्मीद है।
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