भारतीय राजनीति में खासकर आदिवासियों के लिए शिबू सोरेन होने का ये है मतलब
Authored By: सतीश झा
Published On: Monday, August 4, 2025
Last Updated On: Monday, August 4, 2025
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक नेता शिबू सोरेन (Shibu Soren) का सोमवार को निधन हो गया. उन्होंने 81 वर्ष की उम्र में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली. वह पिछले करीब एक महीने से किडनी संबंधी बीमारी से पीड़ित थे और अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. वे न केवल राज्य की राजनीति के दिग्गज नेता थे, बल्कि आदिवासी समाज की आवाज़ और संघर्ष के प्रतीक भी थे.
Authored By: सतीश झा
Last Updated On: Monday, August 4, 2025
शिबू सोरेन के पार्थिव शरीर को रांची लाया जाएगा, (Shibu Soren Tribal Politics) जहां राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. पूरे झारखंड में शोक की लहर है और हजारों की संख्या में लोग उन्हें अंतिम विदाई देने की तैयारी कर रहे हैं. शिबू सोरेन भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन आदिवासी स्वाभिमान, अधिकारों और न्याय के लिए उनका संघर्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा.
भारतीय लोकतंत्र में अनेक नेताओं ने अपने-अपने समाज और वर्ग की आवाज़ को मंच दिया है, लेकिन जब बात आदिवासी समाज की होती है, तो शिबू सोरेन (Shibu Soren) का नाम एक ऐसे पुरोधा के रूप में सामने आता है, जिन्होंने न केवल जंगल और ज़मीन की लड़ाई लड़ी, बल्कि भारतीय राजनीति में आदिवासियों के लिए एक मजबूत पहचान भी गढ़ी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिबू सोरेन के निधन पर जताया शोक
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ आदिवासी नेता शिबू सोरेन (Shibu Soren) के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने गहरा शोक व्यक्त किया है. उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि शिबू सोरेन एक ज़मीनी नेता थे, जिन्होंने पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ सार्वजनिक जीवन में काम किया. प्रधानमंत्री ने लिखा, “शिबू सोरेन जी एक ज़मीनी नेता थे, जिन्होंने जनता के प्रति अटूट समर्पण के साथ सार्वजनिक जीवन में तरक्की की. वे आदिवासी समुदायों, गरीबों और वंचितों को सशक्त बनाने के लिए विशेष रूप से प्रतिबद्ध थे. उनके निधन से दुःख हुआ. मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं.”
इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (CM Hemant Soren) से फोन पर बात कर संवेदना भी व्यक्त की. उन्होंने लिखा, “झारखंड के मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन जी से बात की और संवेदना व्यक्त की. ओम शांति.”
प्रधानमंत्री के इस संदेश से स्पष्ट है कि शिबू सोरेन का राजनीतिक और सामाजिक योगदान राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया और उनकी छवि एक जननेता के रूप में व्यापक थी.
शिबू सोरेन: संघर्ष से नेतृत्व तक
झारखंड के आदिवासी इलाके से निकले शिबू सोरेन (Shibu Soren) सिर्फ एक राजनीतिक नेता नहीं हैं, बल्कि एक आंदोलन की पहचान हैं. उन्होंने उस दौर में आदिवासियों के अधिकारों की बात की जब देश की मुख्यधारा राजनीति में आदिवासी मुद्दों को हाशिए पर रखा जाता था. चाहे वह संथाल परगना में आदिवासियों की जमीन की रक्षा की लड़ाई हो या झारखंड राज्य की मांग—शिबू सोरेन ने हमेशा एक निडर योद्धा की तरह मोर्चा संभाला.
राजनीति में आने की पृष्ठभूमि: पिता की हत्या से उपजा विद्रोह
शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन संघर्षों से भरा रहा. उनके पिता सोबरन मांझी की हत्या ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी. उनके पिता महाजनी शोषण के खिलाफ आवाज़ उठा रहे थे. उस दौर में महाजन आदिवासियों को कर्ज के जाल में फंसाकर उनकी जमीनें हड़प लेते थे. ब्याज के नाम पर डेढ़ गुना वसूली आम बात थी. कई बार खेत में फसल उगाने के बावजूद आदिवासियों को उसका हिस्सा नहीं मिल पाता था. सोबरन मांझी ने इस अन्याय का जमकर विरोध किया, जिसकी कीमत उन्हें जान देकर चुकानी पड़ी. पिता की इस शहादत ने युवा शिबू को आंदोलित किया और उन्होंने अन्याय के खिलाफ लड़ाई का बीड़ा उठाया. यहीं से उन्होंने धनकटनी आंदोलन की शुरुआत की और आदिवासी चेतना को जागृत करते हुए राजनीतिक सफर शुरू किया.
नेताओं की ओर से दी जा रही है श्रद्धांजलि
- कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के निधन पर कहा, “शिबू सोरेन जी केवल झारखंड ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियों की सबसे बड़ी आवाज, पहचान और सम्मान के प्रतीक थे. मैं उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देता हूं.”
- JDU नेता नीरज कुमार ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के निधन पर कहा, “झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन केवल एक व्यक्ति नहीं थे, समाज का ऐसा तबका जो जीवन की चुनौतियों से जूझता है. समाज के सबसे निचले पायदान पर रहने वाला व्यक्ति, आदिवासी समुदाय जिसकी अस्मिता की रक्षा करते हुए और सामाजिक संघर्ष को झेलते हुए वे राजनीति के मुकाम पर पहुंचे, लेकिन साथ ही साथ उन्होंने आदिवासी समुदाय को राजनीतिक स्वाभिमान के रूप में स्थापित करने का काम किया.
- शिवसेना(UBT) सांसद संजय राउत ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के निधन पर कहा, “शिबू सोरेन को हम हमेशा याद करते हैं. जिस राज्य से वे आते हैं और जिस राज्य से उनका नेतृत्व है, वह झारखंड आदिवासी राज्य है. वहां के आदिवासी समुदाय के लिए शिबू सोरेन भगवान से कम नहीं थे. शिबू सोरेन राज्यसभा के सदस्य हैं और उनकी सीट मेरे ठीक बगल में है. मैं हमेशा उनकी पार्टी के सांसदों से उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछता रहता था. शिवसेना और हमारा पूरा परिवार उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है.
‘गुरुजी’ का सामाजिक प्रभाव
शिबू सोरेन को आदरपूर्वक ‘गुरुजी’ कहा जाता है. यह केवल एक उपनाम नहीं, बल्कि उस विश्वास का प्रतीक है जो झारखंड के लाखों आदिवासी उनके नेतृत्व पर करते हैं. उन्होंने जनजातीय संस्कृति, पहचान और अधिकारों को राजनीतिक एजेंडा बनाया, जो पहले हाशिए पर थे. उनके नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) सिर्फ एक पार्टी नहीं रही, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन बन गई.
राजनीतिक विरासत और प्रतीकात्मकता
आज जब हम भारत की राजनीति में विविधता और समावेशिता की बात करते हैं, तो शिबू सोरेन जैसे नेताओं की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. वे केवल एक मुख्यमंत्री या सांसद नहीं रहे, बल्कि भारतीय लोकतंत्र में आदिवासी समुदाय की आवाज़ को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने वाले प्रतीक बन चुके हैं.
नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन
उनकी राजनीतिक यात्रा आज की युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है. झारखंड में हेमंत सोरेन (Hemant Soren) के रूप में उनकी राजनीतिक विरासत आगे बढ़ रही है, लेकिन यह भी सच है कि ‘गुरुजी’ जैसे नेताओं की उपस्थिति भारतीय राजनीति में एक संतुलन बनाए रखती है, जो यह याद दिलाती है कि लोकतंत्र का असली अर्थ सभी वर्गों की समान भागीदारी है.
भारतीय राजनीति में शिबू सोरेन (Shibu Soren) का होना सिर्फ एक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व नहीं करता, बल्कि यह उस आदिवासी अस्मिता, संघर्ष और आत्मगौरव का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे अक्सर मुख्यधारा में नजरअंदाज किया गया. उनके होने का मतलब है – जंगल की पुकार, जमीन का हक़, और समाज की आवाज़ को संसद तक पहुंचाना.
शिबू सोरेन भारतीय राजनीति में उस आदिवासी चेतना का नाम है, जो अब थमती नहीं—बल्कि पीढ़ियों को मार्ग दिखा रही है.