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कम्युनिटी रेडियो का बढ़ता प्रभाव : गांव-पंचायत और महिला सशक्तीकरण को लेकर शुरू हुई जन-जन जानकारी श्रृंखला
कम्युनिटी रेडियो का बढ़ता प्रभाव : गांव-पंचायत और महिला सशक्तीकरण को लेकर शुरू हुई जन-जन जानकारी श्रृंखला
Authored By: अंशु सिंह
Published On: Thursday, September 19, 2024
Last Updated On: Thursday, September 19, 2024
पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को आरक्षण मिलने से उनकी भागीदारी तो बढ़ी है, लेकिन ‘सरपंच पति’ की प्रथा अब भी कायम है। फिर वह देश का कोई भी राज्य क्यों न हो। सरपंच, मुखिया जैसे पदों पर आसीन होने के बावजूद महिलाएं निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं। इन निर्वाचित महिला सरपंचों के बदले उनके ‘सरपंच पति’ ही पंचायत के विकास से संबंधित फैसले लेते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में प्रचलित ऐसी तमाम प्रथाओं एवं अन्य मुद्दों को लेकर जागरूकता लाने के लिए पंचायती राज मंत्रालय ने सामुदायिक रेडियो (community radio) का सहारा लिया है। इसके लिए बिहार, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के 5-5 कम्युनिटी रेडियो का चयन किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों एवं छोटे कस्बों में परिवर्तन लाने में सामुदायिक रेडियो की इस बढ़ती भूमिका पर एक रिपोर्ट....
Authored By: अंशु सिंह
Last Updated On: Thursday, September 19, 2024
Highlights:
देश में इस समय 500 के करीब सामुदायिक रेडियो संचालित किए जा रहे हैं, जहां स्थानीय भाषा एवं बोली में कार्यक्रम तैयार किए जाते हैं। इससे श्रोताओं से कनेक्ट करना सहज होता है। समुदाय द्वारा संचालित होने के कारण सामुदायिक रेडियो ये सुनिश्चित करते हैं कि स्थानीय आवाजों एवं अति स्थानीय समाचारों को सटीक रूप से सबके समक्ष लाया जा सके। यही वजह रही कि पंचायती राज मंत्रालय ने सामुदायिक रेडियो की मदद से स्थानीय लोगों को सरकार द्वारा संचालित विभिन्न गतिविधियों, हस्तक्षेपों एवं पहलों के बारे में अवगत कराने का निर्णय लिया है। बीते 15 अगस्त को लॉन्च हुए इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत बिहार के पांच सामुदायिक रेडियो स्टेशन (सीवान का रेडियो स्नेही, भागलपुर का रेडियो एक्टिव, गोपालगंज का रेडियो रिमझिम, छपरा का रेडियो मयूर एवं मुंगेर का रेडियो रिसर्च), कर्नाटक के 5 कम्युनिटी रेडियो (रेडियो सारंग, रेडियो मणिपाल, रेडियो शिवमोग्गा, रेडियो नामध्वनि एवं रेडियो अंतरवाणी) एवं महाराष्ट्र के भी 5 सामुदायिक रेडियो स्टेशन (जलगांव का रेडियो मनभावन, कल्याण का गुरुवाणी सीआरएस, नासिक का रेडियो विश्वास, वर्धा का रेडियो वर्धा एवं अहमदनगर का रेडियो नगर) का चुनाव किया गया। ये तमाम कम्युनिटी रेडियो स्टेशंस पंचायती राज व्यवस्था में महिला सरपंचों को सशक्त बनाने से लेकर पंचायत से जुड़े अन्य बुनियादी मसलों को लेकर ‘जन-जन तक जानकारी’ नाम से एक श्रृंखला चला रहे हैं। मंत्रालय के अधिकारियों की मानें, तो यह पहल स्थानीय समुदाय को स्मार्ट पंचायतों के आत्मनिर्भर मॉडल की ओर आगे बढ़ाने के प्रयास का एक हिस्सा है।
‘रेडियो विश्वास’ ने दिया महिला सरपंचों को मंच
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित ‘रेडियो विश्वास’ (radio vishwas) कम्युनिटी रेडियो की प्रोग्राम संयोजक रुचिता विश्वास ठाकुर के अंदर समाज के लिए कुछ करने का जुनून सवार था। इसलिए लंदन से शिक्षा-दीक्षा हासिल करने के बावजूद उन्होंने पिता द्वारा शुरू किए गए सामुदायिक रेडियो के साथ जुड़ने का निर्णय लिया। ‘जन-जन तक जानकारी’ श्रृंखला के बारे में रुचिता बताती हैं, ‘पंचायती राज मंत्रालय की ओर से हमें 10 अलग-अलग मुद्दों पर एक श्रृंखला तैयार करने को कहा गया है। सतत् विकास के लक्ष्यों के अनुरूप विषय उन्होंने ही दिए हैं। जैसे- स्वस्थ एवं हरा-भरा गांव कैसे बने, बच्चों के लिए आदर्श गांव कैसा हो, पर्याप्त पीने के पानी एवं उचित बुनियादी सुविधाएं पंचायत में कैसे पहुंचे, पंचायतों का राजस्व मॉडल, प्रशासनिक कार्य कैसे बेहतर हों। इसके अलावा, महिला मुखिया पर सरपंच पति का प्रभाव एवं महिलाओं के लिए सुरक्षित गांव का निर्माण आदि। इन्हीं मुद्दों पर आधारित एपिसोड का प्रसारण किया जाना है। दरअसल, तमाम प्रयासों के बावजूद आज भी निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधि स्वतंत्र रूप से प्रशासनिक निर्णय नहीं लेती हैं। उनके बदले पति ही सारे फैसले लेते हैं। ऐसी महिलाओं को आगे लाने, उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए ही हम उन्हें रेडियो का मंच दे रहे हैं।‘ इसके अलावा, आउटरीच प्रोग्राम के तहत पंचायत समितियों के सहयोग से उन गांवों की महिला सरपंचों को सम्मानित किया जाएगा, जो गांव के विकास के लिए सराहनीय कार्य कर रही हैं। रुचिता की मानें, तो इस प्रोग्राम के माध्यम से महिला सरपंचों को अपनी बात रखने का अवसर मिला है। लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है।
‘जन-जन जानकारी श्रृंखला’ में भागीदार बना ‘रेडियो मयूर’

‘जन-जन जानकारी’ (Jan Jan Jankari) श्रृंखला के लिए पंचायती राज मंत्रालय एवं कम्युनिटी रेडियो एसोसिएशन द्वारा चयनित रेडियो स्टेशंस में बिहार के छपरा स्थित ‘रेडियो मयूर’ (radio mayur) भी शामिल है। इसके सीओओ अभिषेक बताते हैं, ‘हमें पंचायत से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर श्रृंखला तैयार करने को कहा गया है।15 मिनट के एपिसोड में हम कहानी एवं विशेषज्ञों के साक्षात्कार के जरिये विषय पर परिचर्चा करते हैं। अब तक तीन एपिसोड का प्रसारण हो चुका है। रेडियो के अलावा सोशल मीडिया से भी लाइव प्रसारण किया जाता है। काफी अच्छी प्रतिक्रिया आई है। कई महिला मुखिया हमसे जुड़कर अपनी बात रखना चाह रही हैं। हमारी भी कोशिश है कि महिला सरपंचों की सफलता की कहानी को दुनिया के सामने लाया जा सके। लेकिन ये मसला सिर्फ मुखिया, सरपंच या वार्ड पार्षद तक सीमित नहीं है। कई महिला विधायक भी खुद से निर्णय नहीं ले पातीं। उनका कामकाज पति या प्रतिनिधि संभालते हैं। अगर कोई शिक्षित महिला भी पंचायती राज व्यवस्था में अपनी भागीदारी निभाना चाहती है, तो उन्हें तमाम प्रकार की चुनौतियों से रू-ब-रू होना पड़ता है।‘ विगत वर्षों में इस कम्युनिटी रेडियो ने युवाओं के करियर, साइबर अपराध, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे तमाम विषयों पर कार्यक्रमों का निर्माण किया है। हाल ही में यहां सोशल मीडिया फ्रॉड को लेकर ‘टेक सखी’ नाम से 15 एपिसोड का प्रसारण हुआ, जिसमें महिलाओं ने खुलकर बताया कि कैसे वे साइबर ठगी की शिकार हो रही हैं। 400 लड़कियों के बीच की गई आउटरीच एक्टिविटी में उन्होंने स्वीकार किया कि वे कैसे वॉलेट पेमेंट, यूपीआई करने से हिचकती हैं। पढ़ी-लिखी लड़कियां भी एटीएम के इस्तेमाल से डरती हैं। इस कार्यक्रम के बाद काफी जागरूरता आई है। अभिषेक बताते हैं, ‘इस प्रोग्राम की सफलता के बाद रेडियो मयूर को इस वर्ष राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है। दिलचस्प ये है कि रेडियो मयूर की कुल श्रोताओं में 50 फीसदी महिलाएं हैं। अपने कार्यक्रमों में हम महिलाओं से संबंधित मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं। क्योंकि एक महिला को जागरूक करने से पूरे परिवार में जागरूकता आ जाती है। जैसे कोविड के दौरान जब गांव-कस्बे के पुरुष टीका लेने से मना कर रहे थे, तो रेडियो के जरिये जानकारी प्राप्त कर घर की महिलाओं ने उन्हें वैक्सीन लेने के लिए तैयार किया।‘
सीमित संसाधनों के साथ अपनी जिम्मेदारी निभा रहा ‘रेडियो एक्टिव’
टीवी चैनल, मल्टीमीडिया के युग में कम्युनिटी रेडियो ने अपनी एक अलग जगह बना ली है। मुख्यधारा की मीडिया से इतर यह एक ऐसा प्रभावशाली माध्यम बन चुका है जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर चर्चा के अलावा सरकारी योजनाओं की जानकारी ग्रामीण स्तर तक पहुंचायी जा रही है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ होने वाले कार्यक्रमों से किसानों एवं समाज के अन्य वर्ग लाभ उठा रहे हैं। महिलाओं को आर्थिक, शारीरिक और मानसिक तौर पर सशक्त बनाने में यह अहम भूमिका निभा रहा है। टीवी की तरह रेडियो में चेहरा दिखाई नहीं देने के कारण ग्रामीण महिलाएं एवं लड़कियां खुलकर अपनी बात रख पाती हैं। वर्ष 2011 में बिहार के भागलपुर से संचालित हो रहे रेडियो एक्टिव (radio active) के स्टेशन हेड संदीप का कहना है, ‘सामुदायिक रेडियो चलाना आसान नहीं है। फंड्स की दिक्कत रहती है। सरकारी विज्ञापन बहुत कम मिलते हैं। लोकल विज्ञापन एक सीमा तक ही ले सकते हैं। स्पॉन्सरशिप एवं स्थानीय प्रबुद्ध लोगों द्वारा मिलने वाले वित्तीय सहयोग से काम चलता है। इस प्रकार, अपने सीमित संसाधनों में हम स्थानीय सभी मुद्दों पर कार्यक्रम तैयार करने की कोशिश करते हैं। जैसे बाल विवाह, स्कूल ड्रॉप आउट, स्वास्थ्य समस्याएं, शहर में चलायी जाने वाली स्वास्थ्य योजनाएं आदि। पांच लोगों की टीम के अलावा कुछ वॉलंटियर्स के सहयोग से कार्यक्रम तैयार किए जाते हैं। आज करीब 15 किलोमीटर के दायरे में स्थित 100 से अधिक गांवों के लोग उनके कार्यक्रम सुनते हैं और समय-समय पर अपना फीडबैक भी देते हैं।‘
पंचायती राज व्यवस्था के प्रति जागरूकता लाने में जुटा ‘रेडियो रिमझिम’
मुख्यधारा की मीडिया से अलग स्थानीय समुदाय की आवाज को बुलंद करने में सामुदायिक रेडियो अहम भूमिका रहा है। यह न सिर्फ क्षेत्रीय भाषा में संस्कृतियों, कहानियों को आवाज देता है, बल्कि कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं महिला सशक्तीकरण जैसे स्थानीय मुद्दों पर भी प्रकाश डालता है। अपने व्यापक दृष्टिकोण के कारण कम्युनिटी रेडियो विकास से जुड़े कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी भी बढ़ा सकता है। गांव-पंचायत को स्वच्छ कैसे रखा जाए, वहां के मसलों का निष्पादन कैसे हो, युवाओं के लिए रोजगार सृजन कैसे हो, ऐसे तमाम मुद्दों पर जब रेडियो पर चर्चा होती है, तो स्थानीय लोग उसे बहुत ध्यान से सुनते हैं। बिहार के गोपालगंज में वर्ष 2009 से ‘रेडियो रिमझिम’ (radio rimjhim) का संचालन कर रहे कृपाशंकर श्रीवास्तव के शब्दों में, ‘कम्युनिटी रेडियो समुदाय को जोड़ने वाला एक धागा है, बेजुबानों की आवाज है। इसलिए पंचायती राज मंत्रालय ने हमें भी पंचायती राज व्यवस्था के प्रति लोगों में जागरूकता लाने की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। अब तक हम तीन एपिसोड का प्रसारण कर चुके हैं, जिसमें पंचायतों की स्व-आय के स्त्रोतों के बारे में जानकारी दी गई। इसमें बताया गया कि किस प्रकार पंचायतें अपने वित्तीय संसाधनों का कुशल प्रबंधन कर सकती हैं। क्योंकि जब पंचायतें मजबूत होंगी, तो देश भी मजबूत होगा। जन-जन जानकारी कार्यक्रम के माध्यम से हम लोगों को बता रहे हैं कि पंचायतों का आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तीकरण कितना जरूरी है। इसके साथ ही यह कार्यक्रम नागरिकों को अपनी पंचायतों के विकास में सक्रिय भागीदारी निभाने के लिए भी प्रेरित करेगा।‘ रेडियो स्टेशन के प्रमुख ने बताया कि प्रत्येक एपिसोड में एक सवाल पूछा जाएगा। सही उत्तर देने वाले श्रोता को विशेष पुरस्कार के साथ रेडियो पर अपनी आवाज बुलंद करने का अवसर भी दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व भी 2013-14 में ‘ऱेडियो रिमझिम’ को मंत्रालय के साथ कार्य करने का अवसर मिला था।