पश्चिमी यूपी में महाभारत का चक्रव्यूह

पश्चिमी यूपी में महाभारत का चक्रव्यूह

Authored By: Dr. Ravindra Pratap Rana, Political Analyst

Published On: Thursday, April 18, 2024

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19 अप्रैल को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण की आठ सीटों के लिए हो रहा है मतदान

पहला चरण

  • 19 अप्रैल को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण की आठ सीटों के लिए हो रहा है मतदान

  • पहले चरण की सीटें हैं : सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर, पीलीभीत

दूसरा चरण

  • 26 अप्रैल को दूसरे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर होगा चुनाव
  • दूसरे चरण की लोकसभा सीटें हैं : अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतम बुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा

  • महाभारत की धरती पर राम नाम से चक्रव्यूह भेदने की कोशिश
  • भाजपा प्रत्याशियों नहीं मोदी और योगी के चेहरे पर लड़ रही चुनाव
  • रालोद के साथ से भाजपा की बढ़ी ताकत तो बसपा के जातीय कार्ड ने बढ़ाई बेचैनी
  • समीकरणों का खेल, पहली बार वेस्ट यूपी में हाशिये पर मुस्लिम नेता

हस्तिनापुर की धरती पर सियासी महाभारत अब अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है। गंगा-यमुना के दोआबा में माहौल गर्म है। अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद बीजेपी ने रील लाइफ के राम अरुण गोविल को मेरठ से चुनावी मैदान में उतारा है। पीएम मोदी और सीएम योगी यहां खुद चक्रव्यूह भेदने मैदान में उतरे हैं। वहीं जातीय कार्ड खेलकर बसपा ने हाथी को कमल के खिलाफ दौड़ा दिया है। हाथ के साथ से साइकिल सवार अखिलेश ने आखिरी वक्त तक मोहरे बदलकर मुकाबले को दिलचस्प बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जाटलैंड कहे जाने वाले इस इलाके में हर सीट पर अति पिछड़े और मुस्लिम मत हवा का रुख तय करने में अहम हो गए हैं।

मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, आगरा, बरेली, अलीगढ़। इन छह मंडलों के 26 जिलों को यूपी से अलग प्रदेश बनाने की बरसों पुरानी मांग चुनाव में दम तोड़ चुकी है। मेरठ में हाईकोर्ट बेंच पर लाने मुददा भी दब गया है। जयंत चौधरी के एनडीए का हिस्सा बन जाने के बाद किसान आंदोलन से उपजी सत्ता विरोधी लहर भी थम सी गई है। दम तोड़ती हिंडन और काली जैसी नदियों के पुनर्जीवन पर कोई बात नहीं हो रही है। सपा मुखिया अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस इलाके में न कोई रैली की है और न ही रोड शो। दूसरी तरफ पीएम मोदी मेरठ और सहारनपुर में जनसभाएं एवं गाजियाबाद में रोड शो कर चुके हैं। पीएम मोदी ने 2014 और 2019 की तरह ही अपनी चुनावी रैलियों का आगाज इस बार भी 31 मार्च को मेरठ की धरती से किया। राम मंदिर, सीएए, भ्रष्टाचार पर वार, कानून व्यवस्था, चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न जैसे मुद़दों के जरिए उन्होंने वोटरों की नब्ज पर हाथ रखने की कोशिश की है। पीएम के साथ मेरठ में जयंत चौधरी, अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर, डॉ संजय निषाद और हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को भी मंच पर जगह दी गई। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अधिकतर सीटों पर अति पिछड़ों का वोट दो से चार लाख तक है। यह अब भाजपा के लिए एक ताकत बन चुका है। रैली का संचालन राज्यसभा सदस्य रह चुकीं दलित नेता कांता कर्दम ने किया यानी मंच के जरिये भी यहां जातीय गणित साधने की भरपूर कोशिश की गई।

सीटवार बात करें तो लगातार तीन बार से सांसद राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काटकर भाजपा ने मेरठ लोकसभा सीट पर लोकप्रिय रामायण सीरियल में श्रीराम का अभिनय करने वाले अरुण गोविल को मैदान में उतारा है। उनके सामने बसपा ने देवव्रत त्यागी को उतारा है। वहीं सपा कांग्रेस गठबंधन ने हस्तिनापुर के पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी सुनीता को टिकट दिया है। सुनीता 2017 में बसपा के टिकट पर मेरठ की मेयर चुनी गई थीं। उसी फार्मूले पर सपा ने यहां दलित मुस्लिम मतदाताओं का समीकरण साधने का दांव चला है। हालांकि दलित मतों पर बसपा का भी मजबूत दावा है पर उनके प्रत्याशी देवव्रत भाजपा का कोर वोटर समझे जाने वाले त्यागियों में सेंध लगाएंगे ही। ऐसे में यहां मुकाबला दिलचस्प हो गया है।

मेरठ से सटी बागपत सीट का किस्सा भी इस बार कम रोचक नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह इस सीट से तीन बार और उनके बेटे चौधरी अजित सिंह सात बार लोकसभा पहुंचे। मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर डॉ. सत्यपाल सिंह ने 2014 में बागपत से चौधरी अजित सिंह को और 2019 में उनके बेटे चौधरी जयंत सिंह को हराया। जयंत का आरएलडी इस बार राजग का हिस्सा है। जयंत ने इस बार यहां एक जमीनी और साधारण कार्यकर्ता डॉ. राजकुमार सांगवान को चुनाव मैदान में उतार दिया है। राजकुमार के सामने पहले सपा ने मनोज चौधरी को और फिर बाद में ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए अमरपाल शर्मा को टिकट दिया। अमरपाल गाजियाबाद की साहिबाबाद सीट से विधायक रह चुके हैं। बसपा ने दलित बेस के साथ गुर्जरों को जोड़ने की कोशिश में प्रवीण बंसल को टिकट दिया है। सांगवान के लिए सीएम योगी भी जयंत चौधरी के साथ बागपत में जनसभा कर चुके हैं।

इस बार भी मुजफ्फरनगर सबसे हॉट सीट बनी हुई है। साल 2013 में हुए दंगे बाद यहां से हुए ध्रुवीकरण ने ही भाजपा के चुनाव को धार दी थी। डॉ. संजीव बालियान यहां से 2014 के बाद 2019 में भी जीते। वह लगातार दूसरी बार केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं। उनकी मुश्किल यह है कि विधानसभा चुनाव में इस लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाली छह विधानसभा सीटों में से पांच में भाजपा हार गई थी। संजीव बालियान के काफिले पर ठाकुर बहुल मढ़करीमपुर गांव में हमला भी हुआ। ठाकुर मतदाताओं में उनके प्रति नाराजगी आम है। मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाली सरधना विधानसभा सीट से भाजपा के फायरब्रांड नेता संगीत सोम 2022 का चुनाव हार गए थे। तभी से बालियान और संगीत के रिश्तों में आई खटास जगजाहिर है। संगीत अभी तक बालियान के चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हुए। किसानों की नब्ज पर पकड़ रखने वाली सिसौली और भाकियू नेता चौधरी नरेश टिकैत और राकेश टिकैत से भी किसान आंदोलन के बाद से संजीव बालियान के रिश्ते पहले जैसे नहीं हैं। सपा ने यहां पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक को प्रत्याशी बनाया है। मलिक भी प्रभावशाली जाट नेता हैं और उनके बेटे पंकज मलिक चरथावल विधानसभा सीट से सपा के विधायक हैं। मुस्लिम मतदाताओें के बेस पर जाट मतों में बंटवारे के लिए उन्होंने पूरी ताकत झोंक रखी है। बसपा ने भी यहां मुस्लिम पर दांव नहीं लगाया। पार्टी ने यहां दलित बेस के दम पर दारा सिंह प्रजापति को उतारा है। प्रजापति समाज का रुझान भाजपा की ओर माना जाता रहा है पर इस बार दारा सिंह के आने से संजीव बालियान की मुश्किल बढ़ी है। इस तरह मुजफ्फरनगर सीट पर मुकाबला बेहद करीबी होने की वजह से भाजपा और बालियान की साख दांव पर है।

कौरवों पांडवों की राजधानी रहा हस्तिनापुर यूं तो मेरठ जिले में है पर ये बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में है। बिजनौर सीट भाजपा ने 2014 में जीती पर 2019 में बसपा के मलूक नागर से हार गई। इस बार गठबंधन में भाजपा ने ये सीट रालोद के चंदन चौहान को दी है। चंदन के पिता संजय चौहान 2009 में बिजनौर से रालोद के टिकट पर सांसद चुने गए थे। चंदन के दादा नारायण सिंह यूपी के पहले डिप्टी सीएम रहे हैं।

रालोद भाजपा के गुर्जर प्रत्याशी के सामने बसपा ने बिजनौर में बिजेंद्र चौधरी को प्रत्याशी बनाया है। बिजेंद्र जाट हैं और पहले सुनील सिंह के लोकदल में रहे हैं। वहीं सपा ने मुस्लिम बेस के दम पर दीपक सैनी को उम्मीदवार बनाया है। दीपक के पिता बिजनौर जिले की सीट से ही विधायक हैं। तिकोने मुकाबले में फंसी इस सीट पर जाट, मुस्लिम और दलित वोटरों का रुख अहम हो गया है। बिजनौर सीट पर मुस्लिम मतों की संख्या अच्छी खासी है। यही वजह है कि यहां चंदन के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ ने जनसभा कर ध्रुवीकरण को धार देने की कोशिश की है।

सहारनपुर सीट पर भी इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प है। कांग्रेस ने यहां इमरान मसूद को तो भाजपा ने राघव लखनपाल को प्रत्याशी बनाया है। राघव यहां से 2014 में जीते पर 2019 में बसपा से हार गए। बसपा ने यहां अपने सांसद फजलुर्रहमान की जगह माजिद अली को उम्मीदवार बनाया है। यहां मुस्लिम मतों का बंटवारा होता है या ध्रुवीकरण, इसी से नतीजे तय होंगे।

कैराना में भी है दिलचस्प मुकाबला

एक सीट कैराना की भी है जिसे विपक्षी गठबंधन अपने पक्ष में करने की पूरी कोशिश करेगा। क्योंकि कैराना का मिजाज कुछ ऐसा है कि वह बार हर नया सांसद चुनता है। 2009 में बसपा से तबस्सुम हसन सांसद बनी थीं।

2014 में भाजपा ने यह सीट जीत ली और हुकुम सिंह सांसद बने। हुकुम सिंह का 2018 में निधन हो गया तो यहां उपचुनाव हुआ। उप चुनाव में रालोद के टिकट पर तबस्सुम हसन फिर चुनाव जीत गईं। 2019 का चुनाव हुआ तो भाजपा ने पुन: बाजी मार ली और प्रदीप चौधरी सांसद बने। भाजपा ने इस बार फिर से प्रदीप चौधरी को टिकट दिया है। वहीं सपा ने तबस्सुम हसन की बेटी इकरा हसन को उम्मीदवार बनाया है। बसपा ने यहां ठाकुर श्रीपाल राणा को प्रत्याशी बनाया है।

गाजियाबाद-गौतमबुद्ध नगर सीट भाजपा के लिए कितनी मुफीद

अब बात करते हैं दिल्ली से सटी लोकसभा सीट गाजियाबाद की। यहां से भाजपा ने लगातार दो बार के सांसद और पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह का टिकट काटकर विधायक अतुल गर्ग को उतारा है। वहीं कांग्रेस ने डॉली शर्मा को तो बसपा ने नंद किशोर पुंडीर को टिकट दिया है। यहा अतुल के लिए रोड शो कर पीएम मोदी ने चुनाव में गर्मी ला दी है। बीजेपी गाजियाबाद को पूर्व में भी अपने लिए सुरक्षित मानती रही है।

गाजियाबाद से ही सटे गौतमबुदनगर में भाजपा ने लगातार तीसरी बार डॉ. महेश शर्मा पर दांव लगाया है। महेश 2014 के बाद 2019 में भी यहीं से लोकसभा पहुंचे थे। बसपा ने यहां राजेंद्र सिंह सोलंकी को तो सपा ने डॉ महेंद सिंह नागर को प्रत्याशी बनाया है।

सपा-बसपा गठबंधन ने पश्चिम की सात सीटों पर किया था कब्जा

2019 के चुनाव में सपा और बसपा ने पश्चिमी यूपी की सात सीटों पर कब्जा किया था। इसमें सपा ने रामपुर, मुरादाबाद, संभल सीट जीती थी जबकि बसपा ने सहारनपुर, बिजनौर, नगीना और अमरोहा सीट पर फतह हासिल की थी।

2014 के चुनाव में ये सभी सीटें मोदी लहर में भाजपा के खाते में गई थीं। इस बार सपा-बसपा का गठबंधन नहीं है तो भाजपा इसका लाभ लेने की पूरी कोशिश करेगी और दोबारा इन सीटों पर अपना कब्ज़ा जमाना चाहेगी।

इन सीटों पर कम अंतर से हुआ था हार जीत का फैसला

2019 के चुनाव में मेरठ और मुजफ्फरनगर ऐसी सीट थी जहां फैसला कम वोटों के अंतर से हुआ था। मुजफ्फरनगर में भाजपा के संजीव बालियान ने रालोद के अजित सिंह को 6526 वोटों से हराया था। वहीं मेरठ सीट को भाजपा ने बसपा के याकूब कुरैशी से 4707 वोटों के अंतर से जीती थी।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। पिछले 30 वर्ष से लेखन एवं पत्रकारिता में सक्रिय हैं।

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