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सावन में शिव के 12 Jyotirling द्वार: बारह ज्योतिर्लिंगों की एक आध्यात्मिक यात्रा
सावन में शिव के 12 Jyotirling द्वार: बारह ज्योतिर्लिंगों की एक आध्यात्मिक यात्रा
Authored By: Nishant Singh
Published On: Wednesday, July 9, 2025
Last Updated On: Wednesday, July 9, 2025
सावन के इस पावन महीने में शिवभक्तों के लिए ये ज्योतिर्लिंग (12 Jyotirling) केवल तीर्थ नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ने का माध्यम हैं. यह लेख आपको भगवान शिव के बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों की अलौकिक यात्रा पर ले जाएगा, जहां हर स्थल एक नई आध्यात्मिक कहानी कहता है. हर ज्योतिर्लिंग की अपनी महिमा, ऊर्जा और इतिहास है, जो भक्तों के जीवन को नई दिशा देते हैं. शिव की अनंत शक्ति से आपको रूबरू कराएगा. हर शब्द शिव की कृपा का स्पर्श है.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Wednesday, July 9, 2025
सावन का महीना आते ही वातावरण शिवमय हो जाता है- हर ओर “हर हर महादेव” की गूंज, बेलपत्र की खुशबू और शिवभक्तों की टोलियां भगवान भोलेनाथ के दरबार की ओर चल पड़ती हैं. यही वो पावन समय होता है जब शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों (12 Jyotirling) की यात्रा का महत्व कई गुना बढ़ जाता है. ये बारह दिव्य स्थान केवल मंदिर नहीं, बल्कि वो शक्तिपीठ हैं जहां स्वयं महादेव ने अपने प्रकाशस्वरूप से प्रकट होकर धरती को पवित्र किया. इन स्थलों की ऊर्जा, वहां की कथाएं और भक्ति का माहौल मन, मस्तिष्क और आत्मा को शिवत्व से जोड़ देता है. तो आइए, इस सावन में शिव की उन बारह अद्भुत ज्योतिर्लिंग यात्राओं की ओर चलें, जो मोक्ष का द्वार खोलती हैं.
क्रमांक | ज्योतिर्लिंग का नाम | स्थान (राज्य) |
---|---|---|
1 | सोमनाथ ज्योतिर्लिंग | प्रभास पाटन, सौराष्ट्र, गुजरात |
2 | मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग | श्रीशैलम, आंध्र प्रदेश |
3 | महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग | उज्जैन, मध्य प्रदेश |
4 | ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग | खंडवा, मध्य प्रदेश |
5 | केदारनाथ ज्योतिर्लिंग | रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड |
6 | भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग | पुणे, महाराष्ट्र |
7 | काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
8 | त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग | नासिक, महाराष्ट्र |
9 | वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग | देवघर, झारखंड |
10 | नागेश्वर ज्योतिर्लिंग | द्वारका, गुजरात |
11 | रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग | रामनाथस्वामी मंदिर, तमिलनाडु |
12 | घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग | एलोरा, महाराष्ट्र |
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, जो कि गुजरात के तट पर सोमनाथ नगर में विराजमान है, बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम मानी जाती है. यह लहरों के बीच खड़ा एक प्रकाश स्तंभ है, जहां समुद्र की गूंज शिव की वीरगाथा सुनाती प्रतीत होती है. यहां की मिट्टी, मंदिर की दीवारें, और भक्तों का उत्साह,सबकुछ ईश्वरीय शक्ति का संदर्भ देता है. इस स्थली की विशेषता है बार-बार हुई पुनर्निर्माण की गाथा, जिसने इसे अविनाशी बना दिया. यहां आने वाले श्रद्धालु अक्सर भावविभोर हो जाते हैं और कहते हैं, “जैसे यहीं शिव की अनंत शक्ति गुजरती हुई प्रतीत होती है.” सोमनाथ की यात्रा से भक्तों की आत्मा में अचूक विश्वास पैदा होता है कि कठिनाई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, फिर भी सत्य और ईश्वर की शक्ति कभी नहीं क्षयी होती.
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग- श्रीशक्ति का समन्वय

दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग शिव व शक्ति का अद्भुत साङ्गम है. यह साकेत क्षेत्र के पास उभरता प्रकाश स्तंभ है, जिसमें भगवान शिव “मल्लिकार्जुन” एवं देवी पार्वती “भीमाशंकर” के रूप में विराजमान हैं. कहा जाता है, ऋषि पुलस्त्य के तप से यहां यह आलोकित हुआ और शिव-शक्ति की पूजा का केंद्र बना. भक्तगण यहां आते हैं तो मंत्रोच्चारण, जलाभिषेक, फूल-भोजन से अपनी आस्था व्यक्त करते हैं. मल्लिकार्जुन के दर्शन से जीवन समृद्धि, आत्मिक शांति और समरसता की प्राप्ति होती है. यह स्थान प्रकृति की गोद में बसा होने के कारण भी अनूठा अनुभव देता है,जहां पहाड़ों की गहराई और विश्राम की गंध शिव की महत्ता को और भी बढ़ा देती है.
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन का वह अद्वितीय तीर्थस्थान है, जहां भोलेनाथ शिव को महाप्रभु के रूप में पूजित किया जाता है. यह मंदिर उत्तर भारतीय धार्मिक मानकों में एक शीर्ष स्थान रखता है क्योंकि यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. उज्जैन, जिसे प्राचीन काल में उदयगिरि–अद्यगिरि के नामों से जाना जाता था, मध्यप्रदेश के चार पवित्र तीर्थों में से एक है. यहां की पवित्रता का अहसास हर श्रद्धालु को मिलता है जब वो मंदिर की घंटियों, मंत्रों और धूप-दीप की गंध में डूबकर परमात्मा से जुड़ता है. यही कारण है कि महाकालेश्वर सिर्फ एक मंदिर नहीं, अपितु आत्मा की शांति, मोक्ष और आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत माना जाता है
वैद्यनाथ- स्वास्थ्य का ज्योतिर्लिंग

झारखंड के देवघर जिले में स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग “आयुर्वेदिक चिकित्सा का दिव्य रूप” है. इस स्थान पर भगवान शिव ने आप-बसर में वैद्यनाथ के रूप स्वरूप चिकित्सा शक्ति का प्रकाश स्तंभ धारण किया था. वैद्यनाथ की महिमा इसलिए अधिक उजागर होती है क्योंकि यह भक्तों की शारीरिक और मानसिक पीड़ाओं को दूर करने की क्षमता रखता है. यहां पर आने वाला प्रत्येक श्रद्धालु अपनी आयु, स्वास्थ्य, और मानसिक संतुलन के लिए प्रार्थना करता है. भक्तों की मान्यता है,“जब हम वैद्यनाथ के सामने अपना सिर झुकाते हैं, तब हमारा शरीर पुनः जीवंत हो उठता है.” भस्मार्चन, दमटा और जलाभिषेक जैसे अनुष्ठान यहां की विशिष्टता हैं, जो इस ज्योतिर्लिंग के दर्शनों को और भी प्रभावशाली बनाते हैं.
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग- गंगा-गौतम का संगम

महाराष्ट्र के त्र्यंबक में स्थित यह ज्योतिर्लिंग ब्रह्मा, विष्णु और शिव के त्रिदेव स्वरूप का एक संयुक्त प्रतीक है. गंगा-गौतम नदी के तट पर उभरा यह प्रकाश स्तंभ आलोचनास्तर पर भगवान त्र्यंबकेश्वर की महिमा को बढ़ाता है. माना जाता है कि यहां भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु को सम्मिलित होकर शिष्यत्व का रहस्य समझाया था. यहां दस सिंधु जातियों के लोगों का विशेष दर्शन होता है, जो इसे एक अंतरजातीय प्रतीक भी बनाता है. भक्त जाते हैं तो “त्र्यंबकं यजामहे” मंत्र का जाप करते हुए मन की शुद्धि और आत्म-आलोचना का आनंद अनुभव करते हैं. यहां की देवी-देवताओं और स्थान की शक्तियों का अनुभव आत्मिक उत्थान के लिए अनिवार्य लगता है.
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है और यह समुद्र तल से लगभग 3,583 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ है. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और चारधाम यात्रा का प्रमुख हिस्सा भी माना जाता है. पांडवों से जुड़ी कथा अनुसार, उन्होंने अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए शिव की खोज की, जो अंततः केदारनाथ में उन्हें मिले. मंदिर का निर्माण आदिगुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में कराया था, और यह पत्थरों से बनी एक अद्भुत स्थापत्य कला का उदाहरण है. चारों ओर फैले ग्लेशियर, ऊंची चोटियां और शुद्ध वातावरण इसे आस्था के साथ-साथ प्रकृति प्रेमियों के लिए भी स्वर्ग बना देते हैं. यहां हर पत्थर शिव की उपस्थिति का एहसास कराता है
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग- प्राकृतिक ऊर्जा केंद्र

पश्चिमी घाट की हरी-भरी गोद में बसा भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से मन में प्राकृतिक ऊर्जा की लहर दौड़ जाती है. महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित यह स्थल, जहां शक्ति और शिव का मिलन होता है, भूतपूर्व काल से ही वीरता और प्रतिरोध का प्रतीक रहा है. यहां के अनुष्ठानों में विशेष रूप से जप, धूप-दीप, और प्राचीन संगीत का समावेश होता है, जिससे भक्तों का मन आध्यात्मिक उन्नति महसूस करता है. कहते हैं, भीमाशंकर की शरण में आये तो सभी भय, चिंता मिट जाते हैं. भक्तों को यहां का हर पत्थर, हर हरा-भरा पेड़, शिव-कथा की गाथा सुनाता है. मंदिर से निकलने पर महसूस होती है,हमारा व्यक्तित्व स्वाभाविक रूप से ऊर्जावान, शांत और दृढ़ हो गया है.
काशी विश्वनाथ- आत्मा का केंद्र

काशी, जिसे वाराणसी भी कहते हैं, का विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग हिन्दू धर्म का हृदय मंदिर है. ऊष्मा की लपटों में नहाया काशी विश्वनाथ, अपने भक्तों को जन्म-जन्मांतर की मुक्ति का मार्ग दिखाता है. यहां की गलियां, गंगा आरती, और मंदिर की घंटियां,सब मिलकर भक्तों को भावबुद्धि और आत्म-शुद्धि की बेला में ले आती हैं. पुराणों में कहा गया है कि जिसने एक बार भी काशी में शिवलिंग स्पर्श किया, उसे मृत्यु का भय नहीं सताता. प्रयोगों में यह माना जाता है कि यहां की धरती वह ऊर्जा सहेजती है जिसमें आत्मा आराम करती है. काशी विश्वनाथ मंदिर किसी भी तरह से केवल एक स्थापत्य नहीं,यह एक भावनात्मक और आध्यात्मिक अनुभव का केन्द्र है.
रामेश्वरम – समुद्री परिधि का ज्योतिर्लिंग

तमिलनाडु स्थित रामेश्वरम का ज्योतिर्लिंग समुद्री तट के समीप विराजमान है. यह स्थान श्रीराम वलि के समुद्री अनुष्ठान और गंगा की सुगम सुविधा के रूप में प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि भगवान राम ने श्रीलंका जाने से पहले यहीं अन्नपूर्णेश्वर की पूजा करके शिवलिंग की स्थापना की थी. यह समुद्री वायु में घुली भक्ति को और भी महत्त्वपूर्ण बनाती है. भक्त यहां आते हैं तो सभी मनोकामनाओं की पूर्ति की कामना करते हैं,शांत, स्पष्ट और सुकूनदायक. समुद्र की लहरें, नीला आकाश और कृष्णकमल,ये सब मिलकर भक्तों को आध्यात्मिक आनंद का उपहार देते हैं. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग एक ऐसा स्थल है जहां धरती, जल और आकाश में शिव की उपस्थिति सार्थक होती है.
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग- स्वर लिंग का संदर्भ

गुजरात के द्वारका से थोड़ी दूरी पर स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग शिव के नाग-आश्रित रूप का प्रतीक है. कहा जाता है कि यहां भगवान शिव ने नागों के संग आराधना की थी, जिससे उन्होंने उन्हें आशीर्वादित किया. भक्त यहां नाग-चित्र, नाग-आभूषण, और नाग-रक्षक मंत्रों के साथ शिव पूजा अदा करते हैं. इसलिए इस स्थल को “नागेश्वर” कहा गया. यह ज्योतिर्लिंग भक्तों को परि और आत्मा के सम्मिलन की अनुभूति दिलाता है. यहां के लोग मानते हैं,“शिव ने जब नागों के साथ अपनी उपस्थिति व्यक्त की, तब सृष्टि में उनका संरक्षण दो गुणा हो गया.” भक्तों को यहां का नागमण्डल बहुत आकर्षक लगता है, जहां नागों के प्रतीक एवं मंत्र जीवन में सुरक्षा और साहस का संकल्प जगाते हैं.
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग – ओंकार का रहस्य

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के नर्मदा नदी के एक सुंदर द्वीप पर स्थित है. “ओंकार” का उच्चारण ही ईश्वर की सर्वोच्च ध्वनि माना जाता है. यहां का यह ज्योतिर्लिंग ओंकार के रहस्य को उद्घाटित करता है,जो अस्तित्व की मूल ध्वनि भी हो सकती है. श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जब वे “ओं” का उच्चारण करते हैं, तो ऊर्जा कंपन उनके भीतर घूमने लगती है. ओंकारेश्वर की शिवलिंग पत्थर की बनी होती है, जिसके चारों ओर भक्ति मन को शांत करती है. नदी की मुलायम गिड़गिड़ाहट, आसपास की हरी-शुभ्र प्रकृति, और मंदिर की शांति सब मिलकर एक दिव्य वातावरण तैयार करते हैं. ऐसी जगह पर खुद को खो देने का भाव स्वाभाविक है, और यही भक्ति भावना की चरम अनुभूति कही जाती है.
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

भारतवर्ष की पवित्र धरती पर जब भी शिव-भक्ति की बात होती है, तो द्वादश ज्योतिर्लिंगों की महिमा स्वतः मुखर हो उठती है. इन्हीं में से एक, सबसे अंतिम और अत्यंत शक्तिशाली -घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र की भूमि पर स्थित है. यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और आध्यात्मिक ऊर्जा का संगम है. पार्वती नदी के किनारे स्थित यह स्थान शिवभक्तों के लिए एक दिव्य तीर्थ है, जहां पहुंचते ही आत्मा जैसे पवित्र हो उठती है. घृष्णा नामक भक्त के तप से उत्पन्न यह शिवलिंग, भक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक है. यहां की वास्तुकला, पूजा विधि, और लोककथाएं मिलकर इस स्थल को केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर भी बनाती हैं.
जाने का उचित समय और तैयारी
ज्योतिर्लिंग यात्रा की तैयारी केवल सामान की नहीं,मन की भी तैयारी करनी होती है. बरसात में भीमाशंकर, रामेश्वरम जैसे स्थानों की सुंदरता में वृद्धि होती है, लेकिन वहां पहुंचना कठिन भी हो सकता है. वहीं सावन, महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर लोग भारी संख्या में आते हैं और उस समय यात्रा भूलने-योग्य अनुभव होती है. इसलिए यात्रा वह करे जो मन पढ़कर निर्णय करे,हल्की संडे-एयर पोशाक, आरामदायक जूते, मंत्र की सूची, और निर्जल व्रत की योजना. साथ ही श्रद्धा, प्रेम और विनय का भाव साथ लेकर चलें. यात्रा को एक तीर्थयात्रा न मानकर, एक योग-यात्रा समझें,जहां मन, शरीर और आत्मा को शिव के अलोकिक प्रकाश में आत्मसात किया जा सके.