Teacher’s day : जीवन के अनुभव शिक्षक बनकर आपको दे सकते हैं जरूरी सीख
Authored By: स्मिता
Published On: Wednesday, September 4, 2024
Updated On: Wednesday, September 4, 2024
महात्मा बुद्ध ने कहा-अप्प दीपो भवः। अपने दीपक स्वयं बनो। यह सच है कि हम खुद अपने अनुभव के आधार पर खुद को सिखा सकते हैं। हमें दूसरे लोग नहीं, बल्कि हम खुद अपना मार्गदर्शन कर सकते हैं। जीवन कर्म के दौरान की गई गलतियां हमारी शिक्षक बन कर हमें सही राह दिखा सकती हैं।जानें शिक्षक दिवस (Teacher'sDay-5 September) पर कैसे अनुभव हमारे शिक्षक बन सकते हैं।
महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा भावे, अब्राहम लिंकन, नेल्सन मंडेला, मदर टेरेसा…। इस फेहरिस्त में महापुरुषों के अनगिनत नाम शामिल हो सकते हैं। इन सभी के जीवन पर नजर डाली जाए, तो हम पाएंगे कि सभी के जीवन के कुछ अनुभव मीठे तो कुछ खट्टे भी। अगर कहें कि उनके सामने विषम परिस्थिति अधिक थी, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। ये महान इसलिए बने कि उन्होंने अपने बुरे अनुभवों से कुछ न कुछ सीखा। अपने संघर्ष के दिनों में इन बुरे अनुभवों या खराब परिस्थितियों को ही अपना शिक्षक मान लिया और जीवन में आगे बढ़े। हम साधारण इंसान भी दूसरों की सुनी-सुनाई बातों का अनुकरण करने की बजाय अपने बुरे अनुभवों से उपजे सकारात्मक विचार पर चलने की कोशिश करें। ये अनुभव हमारे शिक्षक बन सकते हैं। हम न सिर्फ उन्नति की राह पर आगे बढ़ सकते हैं, बल्कि एक अच्छे इंसान के तौर पर भी और अधिक निखर सकते हैं।
विषम परिस्थिति व्यक्ति को सक्षम बनाती है
यदि आप साहित्य के प्रेमी हैं, तो आपने फ्रेंच लेखक गाय डे मोपांसा (French writer Guy de Maupassant) की अनुदित कहानियां जरूर पढ़ी होंगी। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशकों में यथार्थवादी कहानियों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में नि:संदेह फ्रेंच लेखक गाय डे मोपांसा का बहुत बड़ा हाथ रहा। क्या आप जानते हैं कि उन्होंने मात्र 43 वर्ष की आयु में तीन सौ से अधिक कहानियां और छह उपन्यास लिख डाले थे। उनकी ज्यादातर कहानियां यथार्थ का चित्रण करती हैं। मोपांसा बहुत छोटे थे, तब उनके माता-पिता संबंध विच्छेद कर लिया था। माता- पिता के अलग होने की घटना ने मोपांसा के मन-मस्तिष्क को गहरे तक प्रभावित किया था। इसके परिणाम स्वरूप युवावस्था में वे कई गलत आदतों के शिकार हो गए। वे दिन भर यारों-दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करते रहते। इसी दौरान उन्हें एक लाइलाज बीमारी हो गई। इस बीमारी ने उन्हें सत्य से परिचय करा दिया। उन्हें यह एहसास होने लगा कि अब तक का जीवन उन्होंने व्यर्थ ही गंवा दिया। वे सोचने लगे कि अब वे कौन-सा काम करें, जिससे जीविकोपार्जन के साथ-साथ जीवन की सार्थकता भी सिद्ध हो। तभी उन्होंने निश्चय किया कि शेष जीवन को सृजनात्मक कार्यों में लगाया जाए। उनके पास विविध अनुभवों का खजाना था। इसके आधार पर उन्होंने न केवल व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक स्थितियों पर आधारित कहानियां लिखीं, बल्कि कहानियों में राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं को भी उजागर किया। मोपांसा की तरह कई अन्य महापुरुषों या पौराणिक पात्रों ने भी अपने अनुभवों और गलतियों से सीख ली और किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए स्वयं को सक्षम बनाया।
गलतियों से सीखने पर जीवन में मिलती है उन्नति
रूस और यूक्रेन के बीच वर्षों से युद्ध चल रहा है। दोनों तरफ जान और माल की भयंकर हानि हो रही है। युद्ध कभी-भी लाभकारी नहीं हो सकता है। लेकिन अब पछताय होत क्या जब चिडिय़ा चुग गई खेत…। काशीनाथ सिंह (Kashinath Singh) अपने उपन्यास ‘उपसंहार’ के माध्यम से बताते हैं- महाभारत युद्ध जीतने के बावजूद नायक श्रीकृष्ण को आत्मग्लानि हो रही है। विवशता उनके आभामंडल को निस्तेज कर रही है। महाभारत के दौरान उन्होंने जो छल किए थे, उसकी कीमत उन्हें अपनी नींद और चैन की बलि देकर चुकानी पड़ रही है। श्रीकृष्ण को ये बात ताउम्र सालती रही कि वे चाहते, तो युद्ध रुकवा सकते थे। यह सच है कि गलती हर इंसान से होती है। यदि वह उन गलतियों से सीख ले लेता है, तो उसे आगे पछताना नहीं पड़ता है। यहां गलती उसका शिक्षक बनकर आगे का सही राह दिखाती है। गलतियों से नहीं सीखने पर व्यक्ति वैसा ही बना रहता है, जैसा वह पहले था। वह जीवन में आगे नहीं बढ़ पाता है।
जीबन के कड़वे अनुभव हैं शिक्षक समान
पाब्लो पिकासो (Pablo Picasso) स्पेन के महान चित्रकार थे। वे न सही ढंग से बोल पाते थे और न ही सही ढंग से लिख पाते थे। स्कूल में भी उन्हें सही तरह से कार्य नहीं कर पाने के कारण अक्सर डांट मिलती थी। बड़े होने पर भी कमियों की वजह से उन्हें जीवन में बहुत सारे कड़वे अनुभव हुए, पर वे इससे हताश नहीं हुए और हमेशा उन अनुभवों से सीखने की कोशिश की। रामायण में मृत्युशैय्या पर पड़े रावण ने लक्ष्मण को उपदेश देते हुए कहा कि अपने साथ-साथ दूसरों के अनुभवों से भी सीख लेनी चाहिए। कड़वे अनुभव शिक्षक के समान हैं, जो हमें आगे गलतियां करने से रोकते हैं।
स्वयं का निर्णय महत्वपूर्ण
माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के फाउंडर बिल गेट्स (Bill Gates, founder of Microsoft) ने 1973 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई शुरू की। लेकिन उन्हें पढ़ाई से कहीं ज्यादा प्रोग्रामिंग में मन लगता था। वे इस बात पर असमंजस में थे कि आगे पढ़ाई जारी रखी जाए या फिर अंतर्मन की आवाज सुनकर मन का काम शुरू किया जाए। उन्होंने सभी पहलुओं का बारीकी से अवलोकन किया, ताकि आगे कोई पछतावा न हो। इसके बाद ही पढ़ाई छोडऩे का निर्णय लिया। 1975 में दोस्त पॉल ऐलन (Paul Allen) के साथ मिलकर खुद की कंपनी माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन की शुरुआत की। बिल गेट्स ने परंपरागत शिक्षा की जगह अपने सपनों के लक्ष्य को चुना। यही वजह है कि आज वे सॉफ्टवेयर जगत की दिग्गज शख्सियत हैं। व्यक्ति के स्वयं का निर्णय महत्वपूर्ण होता है। यह जरूरी नहीं है कि आप जो भी निर्णय लेंगे, उसमें सौ प्रतिशत सफलता मिल जाएगी। लेकिन इतना तय है कि अच्छे और बुरे अनुभव आपको बहुत कुछ सिखा जाते हैं।
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