Zoonotic Diseases : मंकीपॉक्स सहित अन्य जूनोटिक डिजीज बढ़ने के क्या हो सकते हैं कारण, बचाव के उपाय करना है जरूरी

Zoonotic Diseases : मंकीपॉक्स सहित अन्य जूनोटिक डिजीज बढ़ने के क्या हो सकते हैं कारण, बचाव के उपाय करना है जरूरी

Authored By: स्मिता

Published On: Wednesday, September 11, 2024

Updated On: Wednesday, September 11, 2024

zoonotic diseases
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पहले सिर्फ रैबीज के ही मामले मिलते थे, लेकिन अब कोविड-19, मंकीपॉक्स, स्लॉथ फीवर, बैट फीवर, बर्ड फ्लू के मामले में तेज़ी से वृद्धि देखी जा रही है। ज्यादातर जूनोटिक बीमारियां उपचार योग्य हैं। कुछ जूनोटिक बीमारियां बहुत गंभीर और जानलेवा भी हो सकती हैं। इसलिए इनसे बचाव करना जरूरी है।

Authored By: स्मिता

Updated On: Wednesday, September 11, 2024

भारत में हाल में मंकीपॉक्स का एक मामला मिला है। इसके कारण लोगों में ज़ूनोटिक डिजीज (zoonotic diseases) यानी पशुओं से होने वाली बीमारियों के प्रति आशंका बढ़ने लगी है। पहले सिर्फ रैबीज के ही मामले मिलते थे, लेकिन अब कोविड-19, मंकीपॉक्स, स्लॉथ फीवर, बैट फीवर, बर्ड फ्लू के मामले में तेज़ी से वृद्धि देखी जा रही है। ज्यादातर जूनोटिक बीमारियां उपचार योग्य हैं। कुछ जूनोटिक बीमारियां बहुत गंभीर और जानलेवा भी हो सकती हैं। वायरल रक्तस्रावी बुखार (Hemorrhagic Fevers) जैसे कि इबोला वायरस (Ebola virus) और मारबर्ग वायरस (Marburg virus) में मृत्यु दर बहुत अधिक होती है। जानते हैं कि ज़ूनोटिक डिजीज (zoonotic diseases) के मामलों में वृद्धि के क्या कारण हैं?

क्या है ज़ूनोटिक डिजीज (zoonotic diseases)

जर्नल ऑफ़ ज़ूनोटिक डिजीज में प्रकाशित शोध के अनुसार, जूनोसिस या जूनोटिक रोग मनुष्यों में होने वाला एक संक्रामक रोग है। यह किसी रोगाणु के कारण होता है, जो किसी गैर-मानव से दूसरे मानव में और इसके वाइस-वर्सा जा सकता है। इबोला और साल्मोनेलोसिस जैसी आधुनिक बीमारियां जूनोटिक हैं। ज़ूनोटिक डिजीज पशुओं से इंसानों में फैलते हैं। वायरस, बैक्टीरिया, फंगस या किसी अन्य प्रकार के परजीवी इसकी वजह बन सकते हैं। इंसान जब संक्रमित पशुओं के सीधे संपर्क में आते हैं, तो ये बीमारियां फैलती हैं। पशुओं के ब्लड, सैलाइवा, पूप और अन्य अपशिष्ट पदार्थ के माध्यम से ये इंसानों में फैलते है।

क्यों बढ़ रहे हैं ज़ूनोटिक डिजीज के मामले (increase in zoonotic diseases)

जर्नल ऑफ़ ज़ूनोटिक डिजीज के अनुसार, जंगली इलाकों के आस-पास या जंगली जानवरों की अधिक संख्या वाले सेमी-अर्बन इलाकों में रहने वाले लोगों को चूहों, लोमड़ियों या रैकून जैसे जानवरों से बीमारी का खतरा रहता है। शहरीकरण और प्राकृतिक आवासों के विनाश से मनुष्यों और जंगली जानवरों के बीच संपर्क बढ़ने से जूनोटिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। जलवायु परिवर्तन, मौसम के पैटर्न में बदलाव, कुछ पशुओं की प्रजातियों के विलुप्त होना भी इसका कारण हो सकता है। समय पर बीमारी की पहचान नहीं करने और बचाव के उपाय नहीं आजमाने के कारण भी ज़ूनोटिक डिजीज के मामले में तेज़ी से वृद्धि देखी जा सकती है।

बीमारी के क्या हो सकते हैं लक्षण (zoonotic diseases symptoms)

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाज़ेशन की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार ज़ूनोटिक डिजीज के कारण कुछ लक्षण दिखाई दे सकते हैं।

  • दस्त
  • पेट में ऐंठन
  • भूख कम लगना
  • मतली
  • उल्टी
  • दर्द
  • दस्त गंभीर रूप से भी हो सकता है।

जूनोटिक डिजीज से कैसे बचाव करें(zoonotic diseases prevention)?

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाज़ेशन (WHO) के अनुसार, जूनोसिस या जूनोटिक डिजीज से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए इनसे बचाव करना जरूरी है। ध्यान दें कि पशुओं के आस-पास रहने के बाद हमेशा अपने हाथ धोएं। भले ही आपने पशुओं को छुआ नहीं हो। साबुन और साफ बहते पानी से ठीक से हाथ न धोने से कई तरह के कीटाणु फैलते हैं। अगर साबुन और पानी आसानी से उपलब्ध न हो, तो अल्कोहल-आधारित हैंड सैनिटाइज़र का उपयोग किया जा सकता है। कम से कम 60% अल्कोहल वाले सैनिटाइज़र का उपयोग करना चाहिए। पशुओं के खाने-पीने का बर्तन और सोने की जगह इंसानों से अलग होनी चाहिए। उन्हें अपने बिस्तर पर नहीं सुलाना चाहिए।

About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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