लोक-व्यवहार का ज्ञान

लोक-व्यवहार का ज्ञान

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Published On: Saturday, April 13, 2024

Last Updated On: Thursday, June 20, 2024

lok-vyavahar ka gyaan
lok-vyavahar ka gyaan

एक नगर में चार मित्र रहते थे। उनमें से तीन बड़े वैज्ञानिक थे, किन्तु बुद्धिरहित थे। चौथा वैज्ञानिक नहीं था, किन्तु बुद्धिमान था। चारों ने सोचा कि विद्या का लाभ तभी हो सकता है, यदि वे विदेशों में जाकर धन संग्रह करें। इसी विचार से वे विदेश यात्रा को चल पड़े। कुछ़ दूर [...]

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Last Updated On: Thursday, June 20, 2024

एक नगर में चार मित्र रहते थे। उनमें से तीन बड़े वैज्ञानिक थे, किन्तु बुद्धिरहित थे। चौथा वैज्ञानिक नहीं था, किन्तु बुद्धिमान था। चारों ने सोचा कि विद्या का लाभ तभी हो सकता है, यदि वे विदेशों में जाकर धन संग्रह करें। इसी विचार से वे विदेश यात्रा को चल पड़े।

कुछ़ दूर जाकर उनमें से सब से बड़े ने कहा-हम चारों विद्वानों में एक विद्या-शून्य है, वह केवल बुद्धिमान है। धनोपार्जन के लिये और धनिकों की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिये विद्या आवश्यक है। विद्या के चमत्कार से ही हम उन्हें प्रभावित कर सकते हैं। अत: हम अपने धन का कोई भी भाग इस विद्याहीन को नहीं देंगे। वह चाहे तो घर वापिस चला जाये।

दूसरे ने इस बात का समर्थन किया। किन्तु, तीसरे ने कहा- यह बात उचित नहीं है। बचपन से ही हम एक दूसरे के सुख-दु:ख के सहभागी रहे हैं। हम जो भी धन कमायेंगे, उसमें इसका हिस्सा रहेगा। अपने-पराये की गणना छो़टे दिल वालों का काम है। उदार-चरित व्यक्तियों के लिये सारा संसार ही अपना कुटुम्ब होता है। हमें उदारता दिखलानी चाहिये।

उसकी बात मानकर चारों आगे चल पडे़। थोड़ी दूर जाकर उन्हें जंगल में एक शेर का मृत-शरीर मिला। उसके अंग-प्रत्यंग बिखरे हुए थे। तीनों विद्याभिमानी युवकों ने कहा, ‘आओ, हम अपनी विज्ञान की शिक्षा की परीक्षा करें। विज्ञान के प्रभाव से हम इस मृत-शरीर में नया जीवन डाल सकते हैं।यह कह कर तीनों उसकी हड्डियां बटोरने और बिखरे हुए अंगों को मिलाने में लग गये। एक ने अस्थिसंचय किया, दूसरे ने चर्म, मांस, रुधिर संयुक्त किया, तीसरे ने प्राणों के संचार की प्रक्रिया शुरू की। इतने में विज्ञान-शिक्षा से रहित, किन्तु बुद्धिमान मित्र ने उन्हें सावधान करते हुए कहा- जरा ठहरो। तुम लोग अपनी विद्या के प्रभाव से शेर को जीवित कर रहे हो । वह जीवित होते ही तुम्हें मारकर खाजायेगा।

वैज्ञानिक मित्रों ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। तब वह बुद्धिमान बोला – यदि तुम्हें अपनी विद्या का चमत्कार दिखलाना ही है तो दिखलाओ। लेकिन एक क्षण ठहर जाओ, मैं वृक्ष पर चढ़ जाऊँ।यह कहकर वह वृक्ष पर चढ़ गया। इतने में तीनों वैज्ञानिकों ने शेर को जीवित कर दिया। जीवित होते ही शेर ने तीनों पर हमला कर दिया। तीनों मारे गये।

अरुण श्रीवास्तव पिछले करीब 34 वर्ष से हिंदी पत्रकारिता की मुख्य धारा में सक्रिय हैं। लगभग 20 वर्ष तक देश के नंबर वन हिंदी समाचार पत्र दैनिक जागरण में फीचर संपादक के पद पर कार्य करने का अनुभव। इस दौरान जागरण के फीचर को जीवंत (Live) बनाने में प्रमुख योगदान दिया। दैनिक जागरण में करीब 15 वर्ष तक अनवरत करियर काउंसलर का कॉलम प्रकाशित। इसके तहत 30,000 से अधिक युवाओं को मार्गदर्शन। दैनिक जागरण से पहले सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल (हिंदी), चाणक्य सिविल सर्विसेज टुडे और कॉम्पिटिशन सक्सेस रिव्यू के संपादक रहे। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, करियर, मोटिवेशनल विषयों पर लेखन में रुचि। 1000 से अधिक आलेख प्रकाशित।
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