‘दिव्यांगों का मजाक उड़ाना सहीं नहीं..’, समय रैना सहित 5 सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स पर SC सख्त
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Monday, August 25, 2025
Updated On: Monday, August 25, 2025
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिव्यांगजनों और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे व्यक्तियों का मजाक उड़ाने के मामले में सख्त रुख अपनाया. अदालत ने स्टैंडअप कॉमेडियन्स समय रैना, विपुल गोयल, बलराज घई, सोनाली ठक्कर और निशांत तंवर को अपने यूट्यूब चैनल पर सच्चे मन से माफी मांगने का निर्देश दिया. साथ ही कोर्ट ने सरकार को सोशल मीडिया कंटेंट के लिए स्पष्ट गाइडलाइंस बनाने की सलाह दी.
Authored By: Ranjan Gupta
Updated On: Monday, August 25, 2025
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कॉमेडी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में दिव्यांगजनों का मजाक उड़ाने पर कड़ा रुख दिखाया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मनोरंजन के नाम पर किसी की शारीरिक समस्या या बीमारी (Samay Raina controversy) को निशाना बनाना न तो सामाजिक रूप से स्वीकार्य है और न ही कानूनी दृष्टि से.
इस मामले में स्टैंडअप कॉमेडियन्स समय रैना, विपुल गोयल, बलराज घई, सोनाली ठक्कर और निशांत तंवर को अदालत ने अपने यूट्यूब चैनल्स पर सार्वजनिक माफी जारी करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक गंभीर प्रवृत्ति बताते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर कंटेंट बनाने वालों को अधिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए और दिव्यांगों के सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा ?
- कोर्ट ने साफ कहा है कि कॉमेडी के नाम पर किसी की तकलीफ का मजाक नहीं उड़ाया जा सकता. यह न तो सामाजिक रूप से सही है और न ही कानूनी रूप से. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह माफी सिर्फ दिखावे की न हो, बल्कि सच्चे मन से होनी चाहिए ताकि इससे समाज में एक सकारात्मक संदेश जाए. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि हम किसी की शारीरिक कमजोरी या बीमारी का मजाक उड़ाएं.
- इस मामले की सुनवाई के दौरान सभी कॉमेडियन्स कोर्ट में मौजूद रहे. वहीं सोनाली ठक्कर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुईं, जबकि बाकी कलाकार व्यक्तिगत रूप से उपस्थित थे.
सुप्रीम कोर्ट ने गैर-जिम्मेदार रवैया बताया
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान नाराजगी जताते हुए कहा कि जब इन कलाकारों पर शिकायत दर्ज हुई तो उन्होंने सबसे पहले माफी मांगने की बजाय अपना बचाव करना शुरू कर दिया. अदालत ने इसे गैर-जिम्मेदाराना रवैया करार दिया और कहा कि जब किसी की भावनाएं आहत होती हैं, तो सबसे पहले सच्चे मन से माफी मांगना ही सही रास्ता होता है.
सोशल मीडिया पर गाइडलाइंस बनाने के निर्देश
इस मामले को गंभीर मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह सोशल मीडिया के लिए ठोस और स्पष्ट गाइडलाइंस तैयार करे. अदालत ने साफ किया कि नीतियां सिर्फ किसी एक घटना को ध्यान में रखकर नहीं बननी चाहिए, बल्कि आने वाले समय की जरूरतों को देखते हुए बनाई जाएं. इसके लिए जरूरी है कि सभी स्टेकहोल्डर्स कंटेंट क्रिएटर्स, सोशल मीडिया कंपनियां, सरकारी एजेंसियां और आम लोगों की राय ली जाए ताकि मजबूत और संतुलित कानून बन सके.
हलफनामा दाखिल करने का आदेश
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि जब सोशल मीडिया अब सिर्फ मनोरंजन का जरिया नहीं रहा, बल्कि बड़ी कमाई का माध्यम बन चुका है, तो इसके साथ जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है. किसी भी लोकप्रिय शख्सियत को यह हक नहीं है कि वह कंटेंट के नाम पर दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाए.
इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स को आदेश दिया कि वे एक हलफनामा दाखिल करें. इस हलफनामे में यह स्पष्ट होना चाहिए कि वे अपने प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल दिव्यांगजनों के अधिकारों और सम्मान को सुरक्षित रखने के लिए किस तरह करेंगे.
मामला कैसे शुरू हुआ
गौरतलब है कि स्टैंडअप कॉमेडियन समय रैना और कुछ अन्य कॉमेडियन्स के वीडियो सामने आए थे, जिनमें उन्होंने ‘स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी’ से पीड़ित लोगों और नेत्रहीनों का मजाक उड़ाया था. इस पर एक फाउंडेशन ने कड़ी आपत्ति जताई और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.
याचिका में कहा गया कि इस तरह का मजाक न केवल दिव्यांगजनों का अपमान है, बल्कि समाज में एक खतरनाक प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है. अगर इस पर सख्त कदम नहीं उठाए गए तो कमजोर वर्गों को बार-बार हंसी का पात्र बनाया जाता रहेगा.