डॉक्टर ने बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए दिए 4 टिप्स, जो हर पेरेंट्स को जानना है जरूरी
Authored By: Galgotias Times Bureau
Published On: Friday, November 21, 2025
Updated On: Friday, November 21, 2025
बचपन वह दौर है जब बच्चे सबसे ज़्यादा सीखते और विकसित होते हैं. ऐसे में सही पालन-पोषण बेहद ज़रूरी है. डॉ. सूद ने चार अहम टिप्स बताए हैं जो हर माता-पिता को जानने चाहिए, जो बच्चों की मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास में बड़ी मदद कर सकते हैं.
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Updated On: Friday, November 21, 2025
Child Growth Development Tips: बचपन विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण समय होता है, लेकिन कई बार माता-पिता अनजाने में ऐसी छोटी-छोटी गलतियाँ कर देते हैं जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास को प्रभावित कर सकती हैं. कुछ सरल और प्रमाण-आधारित आदतें अपनाकर बच्चों की ग्रोथ को बेहतर बनाया जा सकता है. ये छोटे कदम न केवल उनके स्वस्थ विकास में मदद करते हैं, बल्कि उन्हें अधिक आत्मविश्वासी, समझदार और खुशहाल बनाते हैं. माता-पिता का सही मार्गदर्शन बच्चों के भविष्य की मजबूत नींव रखता है.
एनेस्थिसियोलॉजिस्ट और इंटरवेंशनल पेन मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. कुणाल सूद ने बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए चार महत्वपूर्ण सुझाव साझा किए हैं, जिन्हें हर माता-पिता को जानना चाहिए. 18 नवंबर को इंस्टाग्राम पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में उन्होंने कहा कि रोजमर्रा की साधारण आदतें बच्चों के भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक विकास में बड़ा बदलाव ला सकती हैं. इन आदतों के लिए किसी खास उपकरण की जरूरत नहीं होती, बस माता-पिता का समय, ध्यान और नियमितता ही काफी है.
हर दिन एक घंटा बाहर खेलना क्यों जरूरी है
डॉ. सूद बताते हैं कि रोज़ सिर्फ एक घंटा बाहर खेलने से बच्चों में रचनात्मकता बढ़ती है और एडीएचडी के लक्षण कम हो सकते हैं. उनका कहना है कि प्रकृति बच्चों के तंत्रिका तंत्र को शांत करती है और उनकी एकाग्रता बढ़ाती है. एक अध्ययन में पाया गया कि एडीएचडी वाले बच्चों के लक्षण हरे-भरे खुले स्थानों में खेलने के बाद कम दिखे, जबकि घर के अंदर या निर्माणाधीन जगहों में खेलने से ऐसा लाभ नहीं मिला.
दो साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन से दूर रखें
डॉ. सूद बताते हैं कि दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम बिल्कुल सीमित होना चाहिए, क्योंकि शिशुओं का दिमाग अभी डिजिटल स्क्रीन से सीखने के लिए विकसित नहीं हुआ होता. वे कहते हैं कि कम उम्र में ज़्यादा स्क्रीन देखने से भाषा विकास में देरी, कम बातचीत और खराब नींद जैसी समस्याएँ हो सकती हैं. एक अध्ययन में पाया गया कि एक साल के बच्चों में हर 30 मिनट अतिरिक्त स्क्रीन टाइम से भाषा में देरी का खतरा लगभग 50% बढ़ जाता है.
तीन साल की उम्र से बच्चों को छोटे-छोटे काम सिखाएँ
डॉ. सूद बताते हैं कि बच्चों को तीन साल की उम्र से ही घर के आसान कामों में शामिल करना बहुत फायदेमंद होता है. जैसे, अपने खिलौने समेटना या मोज़े अलग करना. ये छोटे-छोटे काम बच्चों में मोटर कौशल को विकसित करते हैं, जिम्मेदारी का भाव पैदा करते हैं और अनुक्रम व वर्गीकरण जैसे शुरुआती संज्ञानात्मक कौशलों को मजबूत बनाते हैं.
सोने से पहले बच्चों को कहानियाँ ज़ोर से पढ़कर सुनाएँ
डॉ. सूद के अनुसार, बच्चों को ज़ोर से कहानी पढ़कर सुनाने से उनकी शब्दावली मौन पढ़ने की तुलना में दोगुनी तेजी से बढ़ती है. इससे बच्चों को समृद्ध भाषा सुनने का मौका मिलता है, जिससे उनकी याददाश्त, समझ और बोलने की क्षमता बेहतर होती है. शुरुआती उम्र में पढ़कर सुनाने की आदत स्कूल शुरू होने पर उनके प्रदर्शन को भी मजबूत बनाती है.
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